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A gentle reply to Journalist Tavleen Singh

  ट्विटर पर यह वीडियो देखने को मिला, जज साहब की टिप्पणी के बाद वहाँ, आम जनों के ठहाके सुनिए…किसी भी व्यक्ति का मोराल क्या ऐसे ही नहीं तोड़ा जाता…दिन-ब-दिन…अफ़सोस है कि यह होता आया है। रविवार के इण्डियन एक्सप्रेस में ओपिनियन सेक्शन में 'पत्रकार' तवलीन सिंह का लेख छपा था-" Time to end reservations" इस लेख से उनके पत्रकार कम और 'सिल्वर स्पून परवरिश' की झलक और एक मनुवादी नज़रिया ज़्यादा दिख रहा है।जातिगत हिंसाओं पर तवलीन सिंह ने कभी कोई कॉलम लिखा है मेरी नज़र में तो नहीं है।उनके ताज़ा लेख के    पीछे उनका क्या रिसर्च या डेटाबेस रहा है, मेरी समझ से बाहर है।उन्हीं के शब्दों में अब सारे तरह के आरक्षणों को ख़त्म कर देना चाहिए, वो अपने लेख में डॉo अंबेडकर का भी ज़िक्र करती है।जिसके हिसाब से हर दस वर्ष में आरक्षण की पुनः समीक्षा की जानी चाहिए, पहली बात तो यह है कि, सामाजिक आरक्षण और राजनैतिक आरक्षण में वो शायद फ़र्क़ नहीं समझती या समझना नहीं चाहती।दूसरा उन्हें लगता है कि बाबासाहब अंबेडकर के आरक्षण के पक्ष में जो तर्क या विचार थे वे पूरे हो चुके है और समाज इतना समरस हो चु...