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क्या इंसान सिर्फ कुछ पुर्जों का एक ढाँचा भर है? Ship of Theseus

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  अगर आप आर्ट फ़िल्मों के शौकीन है, तो ये फ़िल्म आपके लिए है। अगर आप जीवन कोई बहुत गहराई से सोचते हैं तो यह फ़िल्म आपके लिए है। अगर आप नैतिकता और भौतिक द्वन्द के बीच उलझे हैं तो यह फ़िल्म आपके लिए है। साल 2012 में आई आनंद गांधी की फ़िल्म-Ship of Theseus इस फ़िल्म को देखने के लिए धैर्य चाहिए, और क्योंकि फ़िल्म का अधिकांश हिस्सा अंग्रेज़ी में है,तो थोड़ा बहुत अंग्रेज़ी में पकड़ भी। तीन इंसानों की ज़िंदगी के फ़्रेम और विचारों को दिखाती फ़िल्म-एक लड़की जो दृष्टिहीन है और फ़ोटोग्राफ़ी जिसका शग़ल है।एक जैन साधु जो संसार के हर कण में पूरे जगत के अस्तित्व को देखता है और एक व्यक्ति की कहानी जो पूरी तरह से भौतिक संसार के इलावा किसी पर यक़ीन नहीं करता। Ship of Theseus एक Thought Experiment है कुछ यूँ- "एक जहाज़ जिसके पुर्ज़े लगातार यदि बदलते रहे तो आख़िर में जब उसका हर पुर्जा बदल चुका    हो तो क्या उसके बाद भी वो वही पुराना जहाज़ रहेगा या अब वो नया जहाज़ होगा?" हिन्दी सिनेमा में ऐसा नायाब सिनेमा भी बना है सोचकर आश्चर्य होता है।यह फ़िल्म उपरोक्त तीनों जिंदगियों के अस्तित्व, सामाजिक न...