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आईआईटी के नौनिहाल: तब और अब!

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Arvind Gupta Prof. Mahan Mj ?  भारत में अच्छे शिक्षण संस्थान सबको सुलभ नहीं है।आर्थिक और सामजिक विषमता इसमें एक बड़ा कारण है। एक दलित छात्र अतुल कुमार को सुप्रीम कोर्ट में अपील करनी पड़ती है IIT धनबाद में प्रवेश पाने के लिए क्योंकि वह तयशुदा वक़्त पर 17500 रूपये फीस जमा नहीं करवा पाया! अब आते है एक नई नई ख़बर पर जो समूचे इंटरनेट पर तांडव किए हुए है।"कुम्भ में IITian बाबा"; इस हैशटैग को  फेसबुक और व्हट्सएप पर देखकर इतनी खीज हो गई है कि लिखना जरूरी लगा। जब भी आईआईटी पढ़ता हूँ मेरा ध्यान हमेशा सबसे पहले अरविंद गुप्ता जी पर जाता है।1975 में आईआईटी कानपुर से स्नातक पूरा करने के बाद 1978 में TELCO से  अवकाश ले लिए ताकि, होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम का हिस्सा बन सकें। इस कार्यक्रम का उद्येश्य मध्यप्रदेश के जनजातीय जिले होशंगाबाद में बच्चों को विज्ञान शिक्षण प्रदान करना था।अपने सामाजिक विचारों के कारण अरविंद गुप्ता जी ने अपने आगे का जीवन बच्चों के लिए ही समर्पित कर दिया। 'कबाड़ से जुगाड़' और खिलौनों से पढ़ाना उनका शग़ल बन गया।अपने इन्ही कामों में लिए अनेक सम्मानों से नव...

उत्तराखण्ड : किसका राज्य?

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क्या केवल सीमाओं से बनता है एक राज्य? या नाम से? या…कुछ समय बाद नाम बदल देने से! साल 2000! दिन 9 नवम्बर। एक उद्घोषणा कि अब हमारा पता उत्तर प्रदेश नहीं, उत्तरांचल होगा।राज्य का ठप्पा बदल गया।दो मछलियों और एक तीर की जगह तीन पहाड़ियों और चार जल धाराओं ने ले ली।नये साल में आकर अक्सर पिछला साल दिनांक में लिख कर काट के ठीक करने वालों जैसे क्या किसी ने पुराने राज्य का नाम भी काटकर  सुधारा  होगा? कुछ इस तरह की काग़ज़ के दोनों तरफ़ सुराख़ बन जाये! वर्ष 1994 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की सरकार के ओबीसी आरक्षण के 27 प्रतिशत किए जाने के आदेश के ख़िलाफ़( ओबीसी जिनकी संख्या तब राज्य की 37 प्रतिशत थी) उत्तराखंड का सवर्ण समाज( पहाड़ का 80 प्रतिशत) अपनी 'अलग पहचान' के लिए सड़कों पर उतर गया। उस दौर में पहाड़ में ओबीसी की हिस्सेदारी  मात्र  दो प्रतिशत थी।इसलिए राज्य आंदोलन असल में एक ‘आरक्षण विरोधी' आंदोलन था( Joanne Moller, 2000)। जिस गर्व के साथ अधिकांश लोग आज के दिन राज्य स्थापना दिवस मनाते है; इस बात से वे या तो बेख़बर है या बनते है। हाल में राष्ट्रीय...

अध्यापक के नाम पत्र: बारबियाना स्कूल के छात्र

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 Letter to a teacher:  वर्ष 2024 में शिक्षक दिवस के दिन अरविंद गुप्ता सर से पहली बार इस किताब का नाम सुना।अंग्रेजी में उनकी ही  website से डाउनलोड भी की, पर हिंदी में पढ़ने के आदतन वही छोड़ दी। धन्यवाद हमारे मित्र, Kamlesh Joshi जी का इसका हिंदी तर्जुमा उपलब्ध कराने के लिए। यूँ तो शिक्षा पर कई किताबें लिखी गई। तोत्तो चान, पहला अध्यापक से लेकर समरहिल  तक कई मुख़्तलिफ़ देशों,जगहों पर कई विचारणीय किताबें लिखी गई है।पर 'अध्यापक के नाम पत्र- बारबियाना स्कूल के छात्र' अपनी एक अलहदा पहचान रखती है।कारण है कि बाक़ी किताबें जहाँ समाधान रखती या स्कूल विशेष की तारीफ़ में लिखी गई है उसके बरक्स यह स्कूली छात्रों के रोष को प्रकट करती है।यह किताब असल में एक लंबा पत्र है, जो बारबियाना स्कूल (इटली) के गरीब खेतों में काम करने वाले छात्रों ने अपनी शिक्षिका को लिखा; अपने क्रोध और रोषपूर्ण तरीके से।पर यह जितना रोषपूर्ण है उतना ही तथ्यपूर्ण और विश्लेषणात्मक भी है।इसमें केवल अपना गुस्सा ज़ाहिर नहीं किया गया है वरन छात्रों के नजरिये से समाधान भी सुझाए गयें है। हिंदी में अनूदित किताब की प्रस्...

Nobel Prize in Physics 2024

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  चित्र: geeksforgeeks.org Artificial Intelligence (AI) इस दौर का सबसे चर्चित विषय है।इसने इंटरनेट की दुनिया में आमूल परिवर्तन कर दिए हैं।इसे आप सोशल मीडिया में लगातार बढ़ रहे 'AI courses' के विज्ञापनों से समझ सकते हैं।आपको ऐसा दिखाया जा रहा है कि अगर आपको AI नहीं समझ आता तो आने वाले सालों में आप साक्षरों के बीच के निरक्षर रह जाएँगे! बीती रोज़ भौतिक विज्ञान में मिले नोबेल प्राइज को देखकर यह कितना महत्वपूर्ण है इसकी पुष्टि स्वतः हो जाती है।प्रिंस्टन विश्वविद्यालय के 91 वर्षीय प्रोफ़ेसर जॉन हॉपफील्ड और टोरंटो विश्वविद्यालय के   76 वर्षीय   प्रोफ़ेसर जियोफ़्री हिंटन को संयुक्त रूप से भौतिकी के नोबेल के लिए चुना गया।” For the fundamental discoveries and inventions that enable machine learning with artificial intelligence neural networks" के शीर्षक के तहत यह पुरस्कार दिया जा रहा है। 1980 के दशक में दोनों वैज्ञानिको ने अलग अलग तरीके से इस क्षेत्र में कार्य करना शुरू किया।दोनों वैज्ञानिको ने ऐसा कंप्यूटर एल्गोरिदम या तरीका ईजाद किया जो बिल्कुल किसी कार्य को करने में मानव मस...

Pseudoscience will be New Science and Mythology will be History now!

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चित्र साभार: इंटरनेट वर्तमान में विज्ञान और तर्क बेहद  नाज़ुक हालातों के दौर से गुज़र रहे हैं, जिसके परिणाम प्रतिगामी होंगे और यह देश और युवाओं को कई साल पीछे ले जाएगा। AIPSN यानी ऑल इंडिया पीपल्स साइंस नेटवर्क ने देश के दो प्रतिष्ठित संस्थानों; आईआईटी मंडी और बीएचयू के हाल में अपने यहाँ बतौर, IKS( इण्डियन नॉलेज सिस्टम) के तहत् शामिल किए गये पुनर्जन्म( Reincarnation) और पारलौकिक अनुभव( Out of the body experiences) और भूतविद्या जैसे अवैज्ञानिक तर्कों के ज्ञान को अपने पाठ्यक्रम में 'अनिवार्य कोर्स' के रूप में शामिल किया है।AIPSN के अनुसार यह सारे छद्मविज्ञान( Pseudoscience) फैलाने वालों के लिए एक तरह का 'मुफ़्त भोज' सरीख़ा है। विश्व की शीर्ष   विश्वविद्यालयों की सूची ( QS World University Ranking) में भारत का एक भी संस्थान शामिल नहीं है।मौजूदा हालातों के आधार पर तो यह भविष्य में हो भी नहीं पाएगा।ऐसा लगता है जैसे हमारे यहाँ की शीर्ष संस्थाएँ कितनी अवैज्ञानिक हो सकती है, इसकी प्रतिस्पर्धा चल रही है। पहले बीएचयू और आईआईटी मंडी! इसके कारण क्या है? कुछ कारण स्पष्ट तौर पर दिखते...

मानव और पर्यावरण का एक अद्भुत सहजीवन

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  Kalij Peasant हॉलीवुड की मशहूर फ़िल्म है-इंटरस्टेलर। शुरुआत में ही एक संवाद होता है प्रोफ़ेसर ब्रैण्ड और नायक के बीच-"We don’t need Engineers, we need Farmers"  इन शब्दों के खेल की गहराई हम समझ पाए या नहीं, पर आज जब शहरों का तापमान दिन-ब-दिन नये रिकॉर्ड क़ायम कर रहा है तब लोगों की ज़ुबान पर स्वतः ही पर्यावरण और पारिस्थितिकी जैसे शब्द दस्तक देने लगे है। शहर लगातार कंक्रीट के जंगल में बदलते जा रहें है।किसी भी बड़े पहाड़ी शहर को किसी ऊँचाई के स्थान से देखिए, उसके बाद इसी का व्युत्क्रम किसी पहाड़ी गाँव में जाकर देखिए! मकानों और वृक्षों की संख्या एक दूसरे के विपरीत पायेंगे।साल दर साल यह हालात बद से बदतर होते जाएँगे।वृक्ष नहीं होंगे तो  जैव-विविधता स्वतः ही नष्ट हो जायेगी, और इसका विपरीत भी उसी अनुपात में सच होता नज़र आएगा। सरकारों और पूँजीवादियों से अगर आप इस उम्मीद में हैं कि वो इसके लिए सोच रहे हैं या होंगे तो आप आप बड़ी गफ़लत में हैं।बड़े शहरों या महानगरों में एक कमरे में चार-चार एसी लगाकर पर्यावरण पर बातचीत करने वाले वैज्ञानिक, प्रोफ़ेसर्स या मंत्री बस काग़ज़ी पर्यावरणवि...

छिपलाकेदार: कुमाऊँ का सबसे दुर्गम और ख़ूबसूरत ट्रैक

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  जब कभी आप कहीं लंबा निकलने की योजना बनाते हैं , तो अमूमन वह मुश्किल से ही पूरी हो पाती है। हम तीन दोस्तों के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। मई 2023 में जाने का प्लान था। मगर एक तो मंज़िल की ओर नज़र डालने पर बर्फ़ की सफ़ेद चादर तनी दिखाई पड़ती थी और दूसरे कोई न कोई मसला किसी न किसी के साथ ऐसा उलझता कि जाना स्थगित हो जाता था। बेशक जाना तीनों को साथ था- अनिल, प्रकाश और मुझे।       यह बात हमें पता थी कि सफ़र बहुत मुश्किल होगा। पर अहमद फ़राज़ की यह नसीहत भला किस ट्रैकर की जुबान में नहीं चढ़ी रहती है:       न मंज़िलों को , न हम रहगुज़र को देखते है       अजब सफ़र है कि बस हमसफ़र को देखते हैं       हमारी मुलाक़ात साल 2016 जुलाई में हुई थी , जब हम तीनों गणित के सहायक अध्यापक के तौर पर नियुक्त हुए थे। प्रकाश जौलजीबी और अनिल व मैं जीआईसी बरम में। तबसे हमारी दोस्ती क़ायम है। बहरहाल काफ़ी जद्दोजेहद और ख़ासकर मेरे व प्रकाश के बीच चले वाकयुद्धों का नतीजा यह निकला कि 05 अक्तूबर को विश्वविद्यालय की प...