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युद्धों की विभीषिका और बचपन

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  "जंग तो ख़ुद ही एक मसअला है जंग क्या मसअलों का हल देगी आग और ख़ून आज बख़्शेगी भूक और एहतियाज कल देगी" - साहिर लुधियानवी  किसी भी जंग में कोई जीते, कोई हारे पर इसमें हारती हमेशा इंसानियत ही है।अख़बार की सुर्खियो में किसी जंग की तस्वीरें देखना और जंग के हालातों में ख़ुद मौजूद होने में बड़ा फ़र्क़ है।जंग के ही ख़ौफ़, इसकी विभीषिका और संवेदना पर बनाई गयी ईरानी-कुर्दिश निर्देशक बहमन    गोबाडी की फ़िल्म है- Turtles can fly! 2003 में अमेरिकी आक्रमण के बाद सद्दाम हुसैन के इराक़ की सत्ता से बेदख़ल होने के बाद बनी यह पहली फ़िल्म थी। ईरान का सिनेमा विश्वभर में अपने वैचारिक, सामाजिक और बालकेंद्रित फ़िल्मों के लिए मशहूर है।यह सिनेमा अपने नायकों के बरक्स अपने निर्देशकों के लिए जाना जाता है।माज़िद मज़ीदी, असगर फ़रहादी, अब्बास किरियोस्तामी और बहमन गोबाडी इस सिनेमा के बड़े नाम है। Turtles can fly, का प्लॉट साल 2003 है। Turtles can fly यानि एक असंभव स्थिति।फ़िल्म में यह स्थिति एक लड़की के माज़ी यानी बीते दिनों के मानसिक प्रताड़ना की है।इराक़ के शरणार्थी शिविरों में रह रहे बच्चे जिनक...

Photobook of Niti Valley, Uttarakhand

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Niti valley is situated in Chamoli district of Uttarakhand. First or you can call it among last villages of India. Niti village is situated at 3600 mts and Niti Pass is at elevation of 5800 mts. The best time to visit is May-June and October to December. Rainy seasons may be dangerous to be there as of many sliding areas in the valley. You can find homestays in the route from Joshimath to Niti. The valley is known for its scenic beauty and for wildlife with rich flora and aromatic plants.This region connects India to Tibet by Niti & Barahoti pass.     The valley is about 90 Kms from Joshimath,which is the last town in the route. NH-107B is to Niti-Malari while NH-58 is to Badrinath  & Mana Pass from Joshimath. The villages in the valley are migratory as of the severe cold conditions from January to mid April or even lasts to May. below is the map of the valley. If you want to travel to Niti Pass, Barahoti Pass or Parwati Kund you must have Inner Line Permit (IL...

क्या इंसान सिर्फ कुछ पुर्जों का एक ढाँचा भर है? Ship of Theseus

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  अगर आप आर्ट फ़िल्मों के शौकीन है, तो ये फ़िल्म आपके लिए है। अगर आप जीवन कोई बहुत गहराई से सोचते हैं तो यह फ़िल्म आपके लिए है। अगर आप नैतिकता और भौतिक द्वन्द के बीच उलझे हैं तो यह फ़िल्म आपके लिए है। साल 2012 में आई आनंद गांधी की फ़िल्म-Ship of Theseus इस फ़िल्म को देखने के लिए धैर्य चाहिए, और क्योंकि फ़िल्म का अधिकांश हिस्सा अंग्रेज़ी में है,तो थोड़ा बहुत अंग्रेज़ी में पकड़ भी। तीन इंसानों की ज़िंदगी के फ़्रेम और विचारों को दिखाती फ़िल्म-एक लड़की जो दृष्टिहीन है और फ़ोटोग्राफ़ी जिसका शग़ल है।एक जैन साधु जो संसार के हर कण में पूरे जगत के अस्तित्व को देखता है और एक व्यक्ति की कहानी जो पूरी तरह से भौतिक संसार के इलावा किसी पर यक़ीन नहीं करता। Ship of Theseus एक Thought Experiment है कुछ यूँ- "एक जहाज़ जिसके पुर्ज़े लगातार यदि बदलते रहे तो आख़िर में जब उसका हर पुर्जा बदल चुका    हो तो क्या उसके बाद भी वो वही पुराना जहाज़ रहेगा या अब वो नया जहाज़ होगा?" हिन्दी सिनेमा में ऐसा नायाब सिनेमा भी बना है सोचकर आश्चर्य होता है।यह फ़िल्म उपरोक्त तीनों जिंदगियों के अस्तित्व, सामाजिक न...

आईआईटी के नौनिहाल: तब और अब!

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Arvind Gupta Prof. Mahan Mj ?  भारत में अच्छे शिक्षण संस्थान सबको सुलभ नहीं है।आर्थिक और सामजिक विषमता इसमें एक बड़ा कारण है। एक दलित छात्र अतुल कुमार को सुप्रीम कोर्ट में अपील करनी पड़ती है IIT धनबाद में प्रवेश पाने के लिए क्योंकि वह तयशुदा वक़्त पर 17500 रूपये फीस जमा नहीं करवा पाया! अब आते है एक नई नई ख़बर पर जो समूचे इंटरनेट पर तांडव किए हुए है।"कुम्भ में IITian बाबा"; इस हैशटैग को  फेसबुक और व्हट्सएप पर देखकर इतनी खीज हो गई है कि लिखना जरूरी लगा। जब भी आईआईटी पढ़ता हूँ मेरा ध्यान हमेशा सबसे पहले अरविंद गुप्ता जी पर जाता है।1975 में आईआईटी कानपुर से स्नातक पूरा करने के बाद 1978 में TELCO से  अवकाश ले लिए ताकि, होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम का हिस्सा बन सकें। इस कार्यक्रम का उद्येश्य मध्यप्रदेश के जनजातीय जिले होशंगाबाद में बच्चों को विज्ञान शिक्षण प्रदान करना था।अपने सामाजिक विचारों के कारण अरविंद गुप्ता जी ने अपने आगे का जीवन बच्चों के लिए ही समर्पित कर दिया। 'कबाड़ से जुगाड़' और खिलौनों से पढ़ाना उनका शग़ल बन गया।अपने इन्ही कामों में लिए अनेक सम्मानों से नव...

उत्तराखण्ड : किसका राज्य?

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क्या केवल सीमाओं से बनता है एक राज्य? या नाम से? या…कुछ समय बाद नाम बदल देने से! साल 2000! दिन 9 नवम्बर। एक उद्घोषणा कि अब हमारा पता उत्तर प्रदेश नहीं, उत्तरांचल होगा।राज्य का ठप्पा बदल गया।दो मछलियों और एक तीर की जगह तीन पहाड़ियों और चार जल धाराओं ने ले ली।नये साल में आकर अक्सर पिछला साल दिनांक में लिख कर काट के ठीक करने वालों जैसे क्या किसी ने पुराने राज्य का नाम भी काटकर  सुधारा  होगा? कुछ इस तरह की काग़ज़ के दोनों तरफ़ सुराख़ बन जाये! वर्ष 1994 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की सरकार के ओबीसी आरक्षण के 27 प्रतिशत किए जाने के आदेश के ख़िलाफ़( ओबीसी जिनकी संख्या तब राज्य की 37 प्रतिशत थी) उत्तराखंड का सवर्ण समाज( पहाड़ का 80 प्रतिशत) अपनी 'अलग पहचान' के लिए सड़कों पर उतर गया। उस दौर में पहाड़ में ओबीसी की हिस्सेदारी  मात्र  दो प्रतिशत थी।इसलिए राज्य आंदोलन असल में एक ‘आरक्षण विरोधी' आंदोलन था( Joanne Moller, 2000)। जिस गर्व के साथ अधिकांश लोग आज के दिन राज्य स्थापना दिवस मनाते है; इस बात से वे या तो बेख़बर है या बनते है। हाल में राष्ट्रीय...

अध्यापक के नाम पत्र: बारबियाना स्कूल के छात्र

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 Letter to a teacher:  वर्ष 2024 में शिक्षक दिवस के दिन अरविंद गुप्ता सर से पहली बार इस किताब का नाम सुना।अंग्रेजी में उनकी ही  website से डाउनलोड भी की, पर हिंदी में पढ़ने के आदतन वही छोड़ दी। धन्यवाद हमारे मित्र, Kamlesh Joshi जी का इसका हिंदी तर्जुमा उपलब्ध कराने के लिए। यूँ तो शिक्षा पर कई किताबें लिखी गई। तोत्तो चान, पहला अध्यापक से लेकर समरहिल  तक कई मुख़्तलिफ़ देशों,जगहों पर कई विचारणीय किताबें लिखी गई है।पर 'अध्यापक के नाम पत्र- बारबियाना स्कूल के छात्र' अपनी एक अलहदा पहचान रखती है।कारण है कि बाक़ी किताबें जहाँ समाधान रखती या स्कूल विशेष की तारीफ़ में लिखी गई है उसके बरक्स यह स्कूली छात्रों के रोष को प्रकट करती है।यह किताब असल में एक लंबा पत्र है, जो बारबियाना स्कूल (इटली) के गरीब खेतों में काम करने वाले छात्रों ने अपनी शिक्षिका को लिखा; अपने क्रोध और रोषपूर्ण तरीके से।पर यह जितना रोषपूर्ण है उतना ही तथ्यपूर्ण और विश्लेषणात्मक भी है।इसमें केवल अपना गुस्सा ज़ाहिर नहीं किया गया है वरन छात्रों के नजरिये से समाधान भी सुझाए गयें है। हिंदी में अनूदित किताब की प्रस्...

Nobel Prize in Physics 2024

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  चित्र: geeksforgeeks.org Artificial Intelligence (AI) इस दौर का सबसे चर्चित विषय है।इसने इंटरनेट की दुनिया में आमूल परिवर्तन कर दिए हैं।इसे आप सोशल मीडिया में लगातार बढ़ रहे 'AI courses' के विज्ञापनों से समझ सकते हैं।आपको ऐसा दिखाया जा रहा है कि अगर आपको AI नहीं समझ आता तो आने वाले सालों में आप साक्षरों के बीच के निरक्षर रह जाएँगे! बीती रोज़ भौतिक विज्ञान में मिले नोबेल प्राइज को देखकर यह कितना महत्वपूर्ण है इसकी पुष्टि स्वतः हो जाती है।प्रिंस्टन विश्वविद्यालय के 91 वर्षीय प्रोफ़ेसर जॉन हॉपफील्ड और टोरंटो विश्वविद्यालय के   76 वर्षीय   प्रोफ़ेसर जियोफ़्री हिंटन को संयुक्त रूप से भौतिकी के नोबेल के लिए चुना गया।” For the fundamental discoveries and inventions that enable machine learning with artificial intelligence neural networks" के शीर्षक के तहत यह पुरस्कार दिया जा रहा है। 1980 के दशक में दोनों वैज्ञानिको ने अलग अलग तरीके से इस क्षेत्र में कार्य करना शुरू किया।दोनों वैज्ञानिको ने ऐसा कंप्यूटर एल्गोरिदम या तरीका ईजाद किया जो बिल्कुल किसी कार्य को करने में मानव मस...