अध्यापक के नाम पत्र: बारबियाना स्कूल के छात्र


 Letter to a teacher: 

वर्ष 2024 में शिक्षक दिवस के दिन अरविंद गुप्ता सर से पहली बार इस किताब का नाम सुना।अंग्रेजी में उनकी ही  website से डाउनलोड भी की, पर हिंदी में पढ़ने के आदतन वही छोड़ दी।
धन्यवाद हमारे मित्र, Kamlesh Joshi जी का इसका हिंदी तर्जुमा उपलब्ध कराने के लिए।
यूँ तो शिक्षा पर कई किताबें लिखी गई। तोत्तो चान, पहला अध्यापक से लेकर समरहिल  तक कई मुख़्तलिफ़ देशों,जगहों पर कई विचारणीय किताबें लिखी गई है।पर 'अध्यापक के नाम पत्र- बारबियाना स्कूल के छात्र' अपनी एक अलहदा पहचान रखती है।कारण है कि बाक़ी किताबें जहाँ समाधान रखती या स्कूल विशेष की तारीफ़ में लिखी गई है उसके बरक्स यह स्कूली छात्रों के रोष को प्रकट करती है।यह किताब असल में एक लंबा पत्र है, जो बारबियाना स्कूल (इटली) के गरीब खेतों में काम करने वाले छात्रों ने अपनी शिक्षिका को लिखा; अपने क्रोध और रोषपूर्ण तरीके से।पर यह जितना रोषपूर्ण है उतना ही तथ्यपूर्ण और विश्लेषणात्मक भी है।इसमें केवल अपना गुस्सा ज़ाहिर नहीं किया गया है वरन छात्रों के नजरिये से समाधान भी सुझाए गयें है।
हिंदी में अनूदित किताब की प्रस्तावना मशहूर शिक्षाविद् कृष्ण कुमार जी ने लिखी है। उन्ही के शब्दों में,"यदि किताब में से इतालवी संदर्भ और स्थान हटा दिए जाये तो आपको यह भारतीय लगेगी"
बतौर छात्र, शिक्षा प्रक्रिया अपने आपमें पक्षपात लिए हुए है।शिक्षा का पाठ्यक्रम हो या तरीकें  दोनों ही सामाजिक न्याय के विपरीत है।स्कूल ऐसे अस्पताल है जो रोगियों के लिए नहीं बल्कि स्वस्थ व्यक्तियों के लिए हों। यानी कक्षा में शिक्षक का ध्यान सबसे ज़्यादा तेज़ बच्चों पर रहता है जबकि होना बिल्कुल इसका उलट चाहिए।और हममें से असल में हर शिशक यही तो कर रहा है।कक्षा के सबसे कमजोर बच्चें हमारी नज़र से दूर होते होते कब ओझल हो जाते है हमें पता ही नहीं चलता।कम से कम मैं ख़ुद को तो शिक्षकों की उसी भीड़ का हिस्सा पाता हूँ।पढ़ते हुए महसूस हुआ अनजाने में ही सही पर उन बच्चों के साथ अन्याय तो मैंने भी किया ही है।ख़ुद में लज्जित महसूस भी कर रहा हूँ।
किताब में मूल्यांकन प्रणाली पर विशेष टिप्पणी की गई है।परीक्षा देते समय क्या कभी हाल के अखबारों का कोई रिफरेन्स उस परीक्षा में उपयोग होता है? लगभग नहीं।
यानी हमारी शिक्षा का दैनिक जीवन और वर्तमान घटनाओं से दूर दूर तक कोई तारतम्य है ही नहीं।
यह एक विषय में नहीं है।लगभग हर विषय में यही हाल है।भौतिक विज्ञान की बात करूँ तो वैज्ञानिक 'स्ट्रिंग थ्योरी' पर बात कर रहे है और हमारे यहाँ स्नातक का छात्र अभी प्रोटॉन और इलेक्ट्रान से आगे ना जानता है, ना सोचता है!
बहरहाल, एक सवाल जिसने मुझसे सबसे ज़्यादा सोचने पर मजबूर किया कि, जो विद्यार्थी स्कूल द्वारा फेल कर दिए जाते हैं या स्कूल छोड़ देते है; क्या स्कूल कभी भी यह जानने की इच्छा रखता है कि वे कहाँ गए? उसके बाद उनके साथ क्या हुआ?
छात्र कहते हैं," फेल किए जाने वाले बच्चों की जगहों पर समाधि बना देनी चाहिए ताकि वह शिक्षक को उसके कृत्यों की याद दिलाता रहे"
विश्व में कोई भी समाज एकरूप नहीं है।वर्ग विभेद कई रूपों में है।एक अमीर बच्चा अपने बचपन से ही एक संस्कृति लेकर पैदा होता है; उसका घर किताबों से भरा है, वह लोगों को पढ़ते हुए देखता है।
उसके उलट एक मजदूर का बच्चा; बहुत सीमित संसाधनों में अपना बचपन जीता है।पर दोनों के लिए परीक्षा एक ही है! यानि दोनों के संघर्षों में ज़मीन आसमान का फ़र्क़ होने पर भी हमारे यहाँ दोनों को एक ही परीक्षा से गुजरना है।
किताब में एक सवाल और है छात्रों का अपनी शिक्षिका से-"जब आप एक छोटे लड़के को सब्ज़ी बेचते हुए देखती हैं तो आपके मन में विचार नहीं आता कि आपने उसे फेल किया है?"
क्या शिक्षक जिन बच्चों को पढ़ाते हैं वे उनके लिए उतनी ही मेहनत करते हैं जितना अपने बच्चों के लिए? कुछ समय पहले मैं ख़ुद एक अध्यापिका से मिला जो अपने बच्चों की सफलता पर मिठाई बांट रही थी।पर मैंने उसी विषय के किसी भी छात्र से नहीं सुना कि वह अध्यापिका मेहनत से हमें पढ़ाती है।वह अपनी कक्षाएं समय पर लेती भी है; मुझे तो इसमें भी संशय है।
सरकारी खामियाँ है इससे इनकार नहीं किया जा सकता है।पर असल में हम शिक्षक अपने पेशे के प्रति कितने ईमानदार है? बहुत सारे शिक्षकों को तो मैं स्वयं अधिकांशतः जिला/राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों में ही शिरकत करते पाता हूँ। वो कब अपनी कक्षाएं सुचारूँ रूप से ले पाते है, इसमें मुझे बहुत अधिक संदेह है।
किताब में कोचिंग पर भी आक्षेप किए गए है; जो मेरी नज़र में बिल्कुल सही है।कई शिक्षक अपनी कक्षाओं से अधिक ट्यूशन पढ़ाने को तवज्जो देते है, मैं निजी तौर पर कई ऐसों को जानता हूँ।ट्यूशन पढ़ाने के लिए उन्होंने कभी थकान को बहाना नहीं बनाया!
क्या वे उस वर्ग विभेद को नहीं बढ़ा रहे हैं?
दिन-ब-दिन शिक्षा जितनी महंगी हो गई है, क्या यह अमीरों का ज़्यादा फ़ायदा देकर वर्गविभेद को बढ़ाने का कार्य नहीं कर रही है?
ऐसे ही कई सवालों का तथ्यों के साथ यह किताब विश्लेषण करती है।अगर आप एक शिक्षक हैं तो यह आपको सोचने पर मजबूर कर देगी।ये किताब हर शिक्षक को पढ़नी चाहिए जो अभी अभी पेशे में आया हो या उन्हें भी जो शिक्षक बनने की ओर अग्रसर है।जो पहले से शिक्षक हैं उन्हें तो पढ़नी ही चाहिए; ताकि अगर हमसे ग़लतियाँ हुई भी है तो समय पर उन्हें सुधारा जा सके।

टिप्पणियाँ

  1. This post represents a bold and powerful voice from students, highlighting the inequalities and biases present in the education system.

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  2. बहुत शानदार विश्लेषण किया है , आपने वर्तमान शिक्षा व्यवस्था का । वर्तमान की स्थिति यह है, कि कई लोग केवल सिस्टम की आलोचना करते हैं, पर अपना कार्य ईमानदारी से नही करते । शिक्षण की बजाय मेलो , महोत्सवों में ड्यूटी करना उनके गौरवपूर्ण उपलब्धि होती है । आपकी समीक्षा पढ़ के किताब पढ़ने की रुचि जाग्रत हो गयी है । जल्दी आर्डर जाएगी ।

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  3. बहुत सुंदर विश्लेषण। पहली बार कैसी टीचर को इतना सुंदर और सत्य लिखते हुए देखा हैं।

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