Nobel Prize in Physics 2024
चित्र: geeksforgeeks.org |
Artificial Intelligence (AI) इस दौर का सबसे चर्चित विषय है।इसने इंटरनेट की दुनिया में आमूल परिवर्तन कर दिए हैं।इसे आप सोशल मीडिया में लगातार बढ़ रहे 'AI courses' के विज्ञापनों से समझ सकते हैं।आपको ऐसा दिखाया जा रहा है कि अगर आपको AI नहीं समझ आता तो आने वाले सालों में आप साक्षरों के बीच के निरक्षर रह जाएँगे!
बीती रोज़ भौतिक विज्ञान में मिले नोबेल प्राइज को देखकर यह कितना महत्वपूर्ण है इसकी पुष्टि स्वतः हो जाती है।प्रिंस्टन विश्वविद्यालय के 91 वर्षीय प्रोफ़ेसर जॉन हॉपफील्ड और टोरंटो विश्वविद्यालय के 76 वर्षीय प्रोफ़ेसर जियोफ़्री हिंटन को संयुक्त रूप से भौतिकी के नोबेल के लिए चुना गया।” For the fundamental discoveries and inventions that enable machine learning with artificial intelligence neural networks" के शीर्षक के तहत यह पुरस्कार दिया जा रहा है।
1980 के दशक में दोनों वैज्ञानिको ने अलग अलग तरीके से इस क्षेत्र में कार्य करना शुरू किया।दोनों वैज्ञानिको ने ऐसा कंप्यूटर एल्गोरिदम या तरीका ईजाद किया जो बिल्कुल किसी कार्य को करने में मानव मस्तिष्क की नकल था।जैसे हमारे दिमाग में तंत्रिका कोशिकाएं कार्य करती हैं इसी तर्ज़ पर कंप्यूटर में ANN यानी आर्टिफ़िशियल न्यूरल नेटवर्क होता है।
हॉपफ़ील्ड एक थ्योरेटिकल भौतिकविज्ञानी है, जिन्हें मॉलिक्यूलर बायोलॉजी और न्यूरोसाइंस का भी कार्यक्षेत्र पसंद है।इन्होंने ही ANN ईज़ाद किया, जो किसी कंप्यूटर को 'याद रखने' और 'सीखने' के काबिल बनाता है।यह पूरे नेटवर्क से सूचनाओं को सम्पादित करके परिणाम देता था।जब इस नेटवर्क (ANN) को कोई नई सूचना जैसे कोई तस्वीर या कोई गाना दिया जाता तो यह उसके अंशों को समझने में कारगर था। यह उस डेटा के आपसी संबंधों को पहचानने में भी कारगर था।
उदाहरण के तौर पर यदि आपको किसी गाने के कुछ शब्द बताए जायें तो आप पूरा गाना बता देते हैं।इसलिए यह खोज कंप्यूटर साइंस की दुनिया में एक मील का पत्थर साबित हुई।आज आपके फ़ोन में आपके चेहरे को पहचानकर अनलॉक करना इसी की देन है।
हिंटन ने हॉपफील्ड के कार्य को एक कदम आगे बढ़ाते हुए और बेहतर 'कृत्रिम नेटवर्क' बनाया जो आवाज़ें और चित्रों की पहचान कर सकता था।यह 'डीप लर्निंग' का भाग है।
जैसे लगातार ट्रेनिंग के द्वारा हम किसी कार्य में महारत हासिल करते हैं, उसी प्रकार यह नेटवर्क भी लगातार और बेहतर होते जाता है जैसे जैसे इसे और डेटा दिया जाता रहे।हिंटन ने यहाँ तक 'बैक प्रोपोगेशन' नामक एक तरीका बनाया जिससे यह नेटवर्क अपनी पुरानी गलतियों से सीख सकता था और ख़ुद में सुधार कर सकता था।
उम्र के साथ साथ हमारा चेहरा लगातार बदलता जाता है, हर रोज़ बदलता है।सर्दियों में आवाज़ थोड़ा बदल सकती है। फिर भी वॉइस असिस्टेंट जैसे गूगल या सिरी अथवा फेस रिकॉग्निशन हमें पहचान लेता है।यह सब इन्ही खोजों की बदौलत संभव हो पाया है।
जहाँ हिंटन का कार्य पूर्ण रूप से कंप्यूटर साइंस में है वहीं , हॉपफील्ड का कार्य भौतिकी के साथ जीव विज्ञान में भी है।वर्ष 2007 में भी डेटा स्टोरेज के लिए भौतिकी का नोबेल दिया गया है, जिसने कंप्यूटर्स की दुनिया में क्रांति ला दी।
Reference: Indian Express
AI के इतिहास को जाने के लिए आप मेरा यह ऑडियो सुन सकते हैं-
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