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Darma Valley to Narayan Ashram: A Journey to the End

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  कंच्योती तक के सफ़र को मेरे पुराने ब्लॉग- Closest to Himalaya: Panchachuli trek, में पढ़ा जा सकता है, उससे आगे का सफ़र, तफ़सील से यहाँ लिख रहा हूँ…इसकी भी गुज़ारिश कुछ मित्रों की थी,इसलिए…  मेरी अकेली यात्रा में मिले दो बेहतरीन नौजवान…हिमांशु और सैंडी, जिनका मन लगभग वापसी का था अपनी अपनी मंज़िलों की तरफ़।और मैं अपने अधूरे सफ़र को पूरा करना चाहता था, नारायण आश्रम के लिए। तो पंचाचूली बेस फ़तह करने के बाद दुग्तू पहुँचकर, रात की सूखी रोटियाँ और हरी मिर्च के क़हर में तपी हुई मैगी हलक से नीचे उतारकर, हमारी मोटरसाइकिल तैयार थी वापसी के लिए। साथ में होमस्टे वाले प्रकाश भाई को भी साथ आना था वापस धारचूला की ओर। मोटरसाइकिल 3 और लोग 4 थे। हिमांशु भाई का बैग अपनी बाइक पर बांधकर, हिमांशु भाई की बाइक पर हो लिए प्रकाश भाई भी। क्योंकि हिमांशु भाई की बाइक 300cc की थी। होने को ये रास्ते बाइक में doubling के लिए बिल्कुल मुफ़ीद नहीं लगते मुझे।थोड़ा बहुत डर था कि, सूरज निकले क्योंकि 4 घंटे हो चुके थे तो कहीं नांगलिंग का कटा हुआ glacier सड़क पर आ ना गया हो, अगर ऐसा होता तो फिर फँसना तय था। ख़ैर, ह...

Dr. Ambedkar & Annihilation of Caste

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  चित्र: इंटरनेट ये जानते हुए भी कि मेरा ये ब्लॉग, अभी तक के सबसे कम पढ़े जाने वाले ब्लॉग में होने वाला है; सोचा अपनी समझ के अनुसार डॉ अंबेडकर के बारे में कुछ लिखा जाये। 14 अप्रैल 1891 में  जन्मे अंबेडकर एक महान विचारक, दार्शनिक, अर्थशास्त्री, क़ानूनविद और अंततः एक दलित क्रांति के अग्रदूत हैं।लेकिन आज के बदलते हिंदुस्तान में हिंदुओ के भीतर उनकी छवि बस एक दलित नेता और विचारक से ज़्यादा कुछ नहीं है। जनगणना 1911 के अनुसार, महार जाति का साक्षर प्रतिशत 1% था, जबकि चितपावन ब्राह्मणों में साक्षरता 63% थी। इन सूचनाओं का स्रोत, डॉ अंबेडकर की जीवनी ( क्रिस्टोफ़ जेफ्रलो) में मिलता है।जो कि डॉ अंबेडकर की सबसे प्रामाणिक जीवनी मानी जाती है।उस दौर में बिल्कुल विपरीत परिस्थितियों से निकलकर देश के संविधान निर्माता एवं क़ानून मंत्री तक का सफ़र डॉ अंबेडकर के लिए कभी आसान नहीं रहा। कुछ घटनायें, जैसे कक्षा के बाहर बैठाना या बैलगाड़ी में ना बैठने देना जैसी घटनायें आज हमें पढ़ने पर बड़ी आम या मामूली लगती है, पर ये घटनायें एक बच्चे के मन में बहुत बुरा असर डालती है।समाज में प्रिविलेज क्लास के लोग इसकी...

Closest to Himalaya: Panchachuli Trek

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  " सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ, ज़िंदगानी ग़र रही तो नौजवानी फिर कहाँ" ख़्वाजा मीर दर्द का ये शेर हर दौर में उतना ही मौंजूँ रहेगा।सफ़रनामों का उद्येश्य सबके लिए अलग अलग हो सकता है।मेरे लिए इसका हासिल ख़ुद को बेहतर जान पाना रहा है।इसका कारण ये है, मेरे किए या किए जा रहे सफ़रों में एकांत पहाड़ी जगहें ज़्यादा रहीं है या होती है, वहाँ बस आप होते है इसलिए ख़ुद को बेहतर तरीक़े से सोचने विचारने का समय ज़्यादा होता है, क्योंकि तब हम भीड़ का हिस्सा नहीं होते। मेरी तरह ज़्यादातर सरकारी नौकरों के लिए अगर गैजेटेड छुट्टियों के बीच अगर एक दो CL लेकर छुट्टियाँ बढ़ सकें, तो इससे बेहतर कुछ नहीं होता।इसमें दो ऑप्शंस होते है या तो घर चले जाओ या फिर अपना बैग बाँधों और कहीं निकल पड़ो।मैं दूसरे वालों में हूँ।इसलिए इस बीच भी जब 3 दिन थे तो सोचा एक किताब ( पथरीली पगडंडियों पर-खड़ग सिंह वल्दिया) की किताब बैग में डालकर सोचा था कि चौदास घाटी के दूरस्थ स्थान नारायण आश्रम में 3 दिन बिताऊँगा। इसलिए बैग अपनी मोटरसाइकिल पर बांधकर मैं निकल पड़ा, अपनी कर्मस्थली से गंतव्य की ओर। डीडीहाट से 28 ...