ज़िंदगी और सफलता
आख़िर सफलता के मायने क्या? हर उम्र, हर दौर में इसकी परिभाषा बदलती रहती है।आज सुबह ही अपने मित्र नवीन जी के व्हाट्सप स्टेटस पर कोई पूरन सिंह बिष्ट जी के स्टेटस की नक़ल देखी, तो उसी की प्रेरणा से इस ब्लॉग का मजमून! पिछले दो तीन दिनों में दो घटनायें घटी है।पहला संघ लोक सेवा आयोग का सिविल सर्विस का परिणाम घोषित हुआ और उत्तराखण्ड बोर्ड के दसवीं और बारहवीं के परिणाम घोषित हुए। मीडिया ने इन दोनों परिणामों के टॉपर्स को हीरो बनाकर पेश किया।अख़बार में बोर्ड रिज़ल्ट के होनहारों के तो ,सोशल मीडिया और चैनल्स पर सिविल सर्विस के मेधावियों के आख्यान और संघर्ष नमूदार होते दिखते है।क्या आपने उन्मे से एक को भी ये कहते सुना कि वो सामाजिक ग़ैरबराबरी को मिटाने के लिए कुछ 'बनना' या करना चाहता है? मुझे याद है; बचपन में जब कभी शिक्षक कक्षा में पूछते थे कि बड़े होकर क्या बनोगे? तो जवाब भी रटे रटाये होते थे।आपकी गणित अच्छी है तो इंजीनियर और नहीं है तो डॉक्टर। और अगर ख़ुद को थोड़ा अलग दिखाना है तो पायलट! इसके सिवा कोई विकल्प मैंने कहा या सुना, मुझे याद नहीं।तब इंजीनियर का मतलब हमारे लिए मकान बनाने से ज़