प्रेम की क़ीमत मृत्यु!
दृश्यः मसान फ़िल्म |
यहाँ प्रेम में सफ़ल और जीवित बस वो ही रहेंगे जिन्होंने प्रेम भी 'सेफ़ साइड' पर खेला है। यानी पहले धर्म का फ़िल्टर लगाओ, फिर जाति के फ़िल्टर से गुज़रते हुए बाक़ी प्रियोरिटीज़ तय करो उसके बाद प्रेम करने की ज़हमत उठाओ!
आज सुबह का अख़बार पढ़ा, तो अमर उजाला की ख़बर पर नज़र रुकी-“कथावाचक प्रेमी ने ही मारा था बबीता को”।यह घटना चम्पावत की है।वही चम्पावत जहां पिछले वर्ष छटाँग भर के बच्चों ने एक दलित भोजन माता सुनीता देवी के हाथों से बना भोजन खाने से मना कर दिया था, जिसके लिये उनके घर से ख़ासा ट्रेन किया जाता है।अभियुक्त गौरव पांडे और मृतिका बबीता पुत्री सुरेश राम।कथावाचकों की कथाएँ केवल दूसरों को ‘ज्ञान देने मात्र’ के लिए होती है।नाम पर गौर किए जाने की ख़ासा ज़रूरत है।इस घटना ने मुझे पूर्व की दो घटनाओं की सहसा याद दिला दी।
पहला मसला बीते साल जगदीश चंद्र (नेता उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी) की हत्या का था जिसे केवल लड़की के सौतेले बाप ने इसलिए मार दिया क्योंकि वो दलित था और उसने अपनी प्रेमिका गुड्डी (ठाकुर) से शादी कर ली। और उसके सौतेले बाप को ये बात हज़म नही हुई।
दूसरा मसला था नवोदय में ही हमारी कक्षा की टॉपर और प्रिंसिपल सर की बेटी योगिता गौतम का। योगिता हमेशा से मेधावी छात्रा रही और डॉक्टरी की पढ़ाई कर रही थी। जहां उसी के प्रेमी विवेक तिवारी ने उसकी हत्या कर दी, क्योंकि योगिता अपने प्रेमी से शादी के लिए कह रही थी।
ऐसे कई मामले होंगे, कुछ दर्ज होते है कुछ नहीं। पर इन सभी में एक ने अपने प्रेम की क़ीमत चुकाई…अपनी जान देकर।
अपने देश में बहुसंख्यकों को अपने धर्म पर बड़ा गर्व है, पर ध्यान देने वाली बात ये है कि, वो गर्व केवल उन्हें है जिन्हें ‘उच्च जाति का ठप्पा’ हासिल है।क्यों एक व्यक्ति ख़ुद को यहाँ फ़लाँ जगह का ‘जोशी या पाठक’ बताने में गर्व महसूस करता है और दूसरा व्यक्ति अपने सरनेम ऐसे रखने की कोशिश करता है ताकि उसकी जाति पता ना चले!
हाल में मैंने अपने एक पूर्व शिक्षक का ‘शादी का बायोडेटा’ व्हाट्सप पर देखा जिसमें विशेषकर उद्धृत था- फ़लाँ जगह के जोशी।ये जातीय घमंड आख़िर क्या इन्होंने मेहनत से कमाया है? या ख़ैरात में पाया है।मेरे ही एक नवोदय के मित्र (ब्राह्मण) का कहना था कि, “ घरवाले शादी को राज़ी नहीं हो रहे, कैसे मनाऊँ उन्हें?” उसका कहना है कि घरवाले नीची जाति की लड़की से शादी करने को क़तई राज़ी नहीं है, चाहे वो ताउम्र कुंवारा रहे। एक दूसरे साथी की भी यही समस्या है, उसकी माँ को लड़की कि नीची जाति से समस्या है। जबकि दोनों मामलों में लड़की शैक्षणिक और आर्थिक स्तर से बहुत ऊँचे स्तर पर है।
आजकल 'लव मैरिज' का बिज़नेस बढ़िया फल फूल रहा है, पर इसे नज़दीकी से विश्लेषण की ज़रूरत है।इसे बिज़नेस सोच समझ के लिखा गया है। इसका कारण ये है कि अधिकांश युवा प्रेम भी सारे फ़ायदे और नुक़्स देखकर करते है। बॉलीवुड की फ़िल्मो में जिनमे प्रेम संबंधो को मुकम्मल होते देखा जाता है, उन्मे अभिनेता या अभिनेत्रियों के आँखों में एक दिव्य फ़िल्टर मौजूद होता है, जिसमे पहले से ही धर्म और जाति फ़िल्टर हो चुकी होती है। बस आर्थिक भिन्नता होती है।जो कि बहुत बड़ा ‘कारण’ नही कहा जा सकता।इसी की देखा देखी हमारे युवाओं ने भी की।मेरी कुछ लड़कियाँ (तथाकथित उच्च जाति) जो दोस्त रही उनका ये ख़ुद कहना था कि उनके घरवालों ने उनकी किशोरावस्था में ही उन्हें इस बात की चेतावनी दे दी थी कि प्रेम करना तो अपनी ही जाति में! ज़्यादा से ज़्यादा तुम ब्राह्मण हो तो ठाकुर तक चल जाएगा (अपवाद स्वरूप), उससे नीचे सोचना भी मत।
देश की असल हक़ीक़त नागराज मंजुले की ‘सैराट’ या ‘फ़ेंड्री’ जैसी फ़िल्में दिखाती है ना कि नामी निर्देशकों की फ़िल्में।और मौजूदा अंजाम भी सैराट जैसे ही दिखते है, जो तीन मामले मैंने ऊपर लिखे उन्मे आपको लाइव सैराट दिख जाएगी!
कमाल की बात है कि, इन्ही तथाकथित उच्च जाति के लोगों को अस्पताल में ज़रूरत पड़ने पर खून लेने में क़तई हिचकिचाहट नहीं होती।वहाँ पर कोई जाति या धर्म नहीं देखता।इन्हें केवल जिस्मानी संबंध बनाने से भी एतराज़ नहीं है।वहाँ पर बस शक्ल और शरीर दिखता है।पर जब बात विवाह की हो तो फिर अचानक से ब्राह्मणवाद का जिन्न प्रकट हो जाता है, और उनकी आँखों के आगे पड़ी धूल को अपने जातीय घमंड के वाइपर से साफ़ कर देता है।
अधिकतर तथाकथित उच्च जाति के युवाओं को इन बातों से क़तई लेना देना नहीं है क्योंकि उनका कहना होता है कि उन्हें ‘ सब शांति से हो’ चाहिए। उन्हें इसमें बहस करनी नहीं है, बस ऐसी घटनाओं को अनदेखा करना है।इस जातीय और धार्मिक कट्टरता के ख़िलाफ़ बोलता और लिखता आया हूँ, आगे भी लिखूँगा। क्योंकि जब यहाँ तथाकथित उच्च जाति के लोगों को अपना सरनेम चिल्ला चिल्ला कर बताने में शर्म नहीं आती तो, मुझे सच को सच लिखने से परहेज़ क्यों!
तर्क के आधार पर मेरी बातों को काउंटर करने वालों का स्वागत है।
Truth of India
जवाब देंहटाएंदुखद सामाजिक स्थिति का स्टिक आंकलन
जवाब देंहटाएंTruth
जवाब देंहटाएंऐसी घटनाएं शर्मनाक हैं| एसा नहीं है की सामाजिक सोच और स्थिति कुछ बदली नहीं हैं पर अभी इस पर बहुत काम होना जरूरी है| सबसे बड़ा दुश्मन समाज का अवसरवाद है जो हर जगह फिट हो जाता है | सच को स्वीकार करना उतना ही जरूरी है जितना सच को सामने लाना | और ये बात समाज और जीवन के हर सच पर लागू होती है उसपर भी हम कई जगह सेलेक्टिव हो लेते हैं अपनी सुविधा अनुसार| लिखते रहें |
जवाब देंहटाएंकटु सत्य
जवाब देंहटाएंअच्छा विश्लेषण