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Water droplets: the science behind this beauty!

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       उपरोक्त फोटो अगर आपको सुंदर लग रही है तो आइए इसके पीछे का विज्ञान भी समझे।प्रकृति ऐसे खूबसूरत दृश्यों से भरी हुई है पर इसके पीछे का विज्ञान कहीं और ज़्यादा ख़ूबसूरत है।आपने अक्सर गौर किया होगा कि, मकड़ी के जालों, या आजकल ठंडियों में पत्तियों के ऊपर दिखने वाली ओस की बूँदे गोल ही क्यों होती हैं? वे लंबी, चपटी या डिब्बेनुमा क्यों नहीं होती?  तो इसका जवाब है- पृष्ट तनाव( Surface Tension)।आइये पृष्ट तनाव को समझते है।आपने ग़ौर किया होगा कि अगर हम एक रंग भरने वाली कूची( Paint brush) को जब पानी के भीतर डुबाते है तो वो फैल जाती है, जबकि जैसे ही उसे बाहर निकालते है, पूरी कूची के बाल आपस में चिपक जाते है और ख़ुद को आपस में समेट लेते है। आइये एक पानी की गोल बूँद के बारे में सोचे,जैसा ऊपर पत्तियों में दिख रही है।बूँद के भीतर पानी है और बाहर केवल हवा।कल्पना कीजिए कि पानी के भीतर पानी का एक अणु जैसे कोई खूब सारे हाथों वाला जानवर हो! वो अपने सारे हाथों से बाक़ी को पकड़ कर खींच रहा हो।ऐसे उस बूँद के भीतर के सभी कण एक दूसरे को खींचेंगे।पर जो कण सतह( surface) पर होंगे वो अंदर वालों को तो खींचेंगे

जीवन के मायने क्या?

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  जाड़ों  में इंसान ही नहीं, जानवर और पक्षी जगत भी सुबह की नर्म धूप के लिए आतुर रहता है।जंगल बाब्लर आजकल घरों के आस पास ख़ूब दिखाई देने लगी है।और ये झुंड में रहती है।या तो छोटे पेड़ो पर फ़ुरसत से या फिर जमीन में कुछ ढूँढते-खोजते आपको दिखाई देगी। पर इन पक्षियों से इंसान क्या सीख सकता है? जवाब-जीवंतता। गुलज़ार साहब की लिखी एक बेहतरीन नज़्म की लाइनें कुछ यूँ है-" ज़िंदगी क्या है जानने के लिए…ज़िंदा रहना बहुत ज़रूरी है।"केवल साँसें लेना भर जीना नहीं कहा जा सकता,न कहा जाना चाहिए। हम इंसान अपने वर्तमान को ना सोच, भविष्य के लिए परेशान रहते हैं।इसमें अधिकांश लोग यही 'ज़िंदा रहना' भूल जाते है।एक मशीनी जीवन बनकर वही रोज़ के कामों में घिसते है और उनकी कहानी भी ऐसे ही किसी रोज़ एकाएक ख़त्म हो जाती है। अंग्रेज़ी के लेखक फ़्रेंज़ काफ़्का ने Existentialism के भाव पर अपना मशहूर उपन्यास ‘Metamorphosis' लिखा। जिसमें इंसानी यांत्रिक जीवन को ही केंद्र पर रखा गया है। दूसरों  की, जिसमें अपने करीबी भी शामिल है; उनकी ख्वाहिशें पूरी करते करते कब हम जीना बंद कर एक यांत्रिक जीवन जीना शुरू क