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मानव और पर्यावरण का एक अद्भुत सहजीवन

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  Kalij Peasant हॉलीवुड की मशहूर फ़िल्म है-इंटरस्टेलर। शुरुआत में ही एक संवाद होता है प्रोफ़ेसर ब्रैण्ड और नायक के बीच-"We don’t need Engineers, we need Farmers"  इन शब्दों के खेल की गहराई हम समझ पाए या नहीं, पर आज जब शहरों का तापमान दिन-ब-दिन नये रिकॉर्ड क़ायम कर रहा है तब लोगों की ज़ुबान पर स्वतः ही पर्यावरण और पारिस्थितिकी जैसे शब्द दस्तक देने लगे है। शहर लगातार कंक्रीट के जंगल में बदलते जा रहें है।किसी भी बड़े पहाड़ी शहर को किसी ऊँचाई के स्थान से देखिए, उसके बाद इसी का व्युत्क्रम किसी पहाड़ी गाँव में जाकर देखिए! मकानों और वृक्षों की संख्या एक दूसरे के विपरीत पायेंगे।साल दर साल यह हालात बद से बदतर होते जाएँगे।वृक्ष नहीं होंगे तो  जैव-विविधता स्वतः ही नष्ट हो जायेगी, और इसका विपरीत भी उसी अनुपात में सच होता नज़र आएगा। सरकारों और पूँजीवादियों से अगर आप इस उम्मीद में हैं कि वो इसके लिए सोच रहे हैं या होंगे तो आप आप बड़ी गफ़लत में हैं।बड़े शहरों या महानगरों में एक कमरे में चार-चार एसी लगाकर पर्यावरण पर बातचीत करने वाले वैज्ञानिक, प्रोफ़ेसर्स या मंत्री बस काग़ज़ी पर्यावरणविद है

छिपलाकेदार: कुमाऊँ का सबसे दुर्गम और ख़ूबसूरत ट्रैक

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  जब कभी आप कहीं लंबा निकलने की योजना बनाते हैं , तो अमूमन वह मुश्किल से ही पूरी हो पाती है। हम तीन दोस्तों के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। मई 2023 में जाने का प्लान था। मगर एक तो मंज़िल की ओर नज़र डालने पर बर्फ़ की सफ़ेद चादर तनी दिखाई पड़ती थी और दूसरे कोई न कोई मसला किसी न किसी के साथ ऐसा उलझता कि जाना स्थगित हो जाता था। बेशक जाना तीनों को साथ था- अनिल, प्रकाश और मुझे।       यह बात हमें पता थी कि सफ़र बहुत मुश्किल होगा। पर अहमद फ़राज़ की यह नसीहत भला किस ट्रैकर की जुबान में नहीं चढ़ी रहती है:       न मंज़िलों को , न हम रहगुज़र को देखते है       अजब सफ़र है कि बस हमसफ़र को देखते हैं       हमारी मुलाक़ात साल 2016 जुलाई में हुई थी , जब हम तीनों गणित के सहायक अध्यापक के तौर पर नियुक्त हुए थे। प्रकाश जौलजीबी और अनिल व मैं जीआईसी बरम में। तबसे हमारी दोस्ती क़ायम है। बहरहाल काफ़ी जद्दोजेहद और ख़ासकर मेरे व प्रकाश के बीच चले वाकयुद्धों का नतीजा यह निकला कि 05 अक्तूबर को विश्वविद्यालय की परीक्षा निपटाने के बाद तक़रीबन 04 बजे प्रकाश अपने कार्यस्थल से पिथौरागढ़ पहुँच गया। मैं भी सारा सामान- गर