मानव और पर्यावरण का एक अद्भुत सहजीवन
Kalij Peasant |
हॉलीवुड की मशहूर फ़िल्म है-इंटरस्टेलर। शुरुआत में ही एक संवाद होता है प्रोफ़ेसर ब्रैण्ड और नायक के बीच-"We don’t need Engineers, we need Farmers"
इन शब्दों के खेल की गहराई हम समझ पाए या नहीं, पर आज जब शहरों का तापमान दिन-ब-दिन नये रिकॉर्ड क़ायम कर रहा है तब लोगों की ज़ुबान पर स्वतः ही पर्यावरण और पारिस्थितिकी जैसे शब्द दस्तक देने लगे है।
शहर लगातार कंक्रीट के जंगल में बदलते जा रहें है।किसी भी बड़े पहाड़ी शहर को किसी ऊँचाई के स्थान से देखिए, उसके बाद इसी का व्युत्क्रम किसी पहाड़ी गाँव में जाकर देखिए! मकानों और वृक्षों की संख्या एक दूसरे के विपरीत पायेंगे।साल दर साल यह हालात बद से बदतर होते जाएँगे।वृक्ष नहीं होंगे तो जैव-विविधता स्वतः ही नष्ट हो जायेगी, और इसका विपरीत भी उसी अनुपात में सच होता नज़र आएगा।
सरकारों और पूँजीवादियों से अगर आप इस उम्मीद में हैं कि वो इसके लिए सोच रहे हैं या होंगे तो आप आप बड़ी गफ़लत में हैं।बड़े शहरों या महानगरों में एक कमरे में चार-चार एसी लगाकर पर्यावरण पर बातचीत करने वाले वैज्ञानिक, प्रोफ़ेसर्स या मंत्री बस काग़ज़ी पर्यावरणविद है। न उन्हें ज़मीनी हक़ीक़त पता है ना इसकी बेहतरी में उनकी कोई दिलचस्पी है।उन्हें बस बजट खपाना भर है।
प्रयास आम लोगों, आपके मेरे जैसे लोगों को ही करने होंगे।कुछ बेहतरीन लोग जो असल में ज़मीन पर कार्य कर रहें हैं जिनमें Chandan Nayal जैसे युवा है तो Tarun Mahara जैसे हमारे हमउम्र मित्र भी।बीती रोज़ हमारे मित्र Jagdish Bhattजी के बताये एक स्थान Kaaphal Hill Home Stay पर जाने का मौक़ा मिला।Surendra Dhami ji जी ने भी इसका ज़िक्र किया था।इस स्थान को देखकर मैं स्तब्ध था।
बेरिनाग से लगभग 6 Km की दूरी पर उडीयारी बैंड से पहले यह जगह है। पारिस्थितिकी और मानव का ऐसा समावेश मैंने तो इससे पहले कहीं नहीं देखा था।
तरुण जी और उनके परिवार ने इस जंगल को संरक्षित करने का जो कार्य किया है वह क़ाबिल-ए-ग़ौर है। कोई बाहरी एलियन स्पीशीज वहाँ नहीं रोपी वरन् मौसम के अनुकूल प्राकृतिक वृक्षों और वनस्पतियों को ही लगाने और संरक्षित करने का कार्य किया।आपको आश्चर्य होगा कि यह जंगल मैन मेड है।इतनी गर्मी में भी उस कमरे में कोई पंखा नहीं था न ही कोई आवश्यकता थी।
Kalij Peasant जैसी जंगल में रहने वाली पक्षी उनसे और उनके परिवार से इतनी घुली-मिली है कि उनके लिए उनका घर अपना घर है। Striated Laughing thrush, Koklas जैसी दुर्लभ पक्षियों का भी वह घर है। एक टूटी हुई चोंच वाली Jungle Babbler को तरुण जी का परिवार 'अम्मा ' बुलाता है।उसका ख़ास ख़याल रखना पड़ता है क्योंकि वो आसानी से खाना नहीं खा सकती।बाक़ी पक्षियों के भी घरेलू नाम रखे गये है। पंखों की आवाज़ और चहचहाहट से वो भीतर बैठे भी जान जाते है कि कौनसी पक्षी है और उसे क्या चाहिए।
जानवरों और इंसानों का ऐसा सहजीवन आपने बस फ़िल्मों में देखा होगा या कहानियों में सुना होगा।
तरुण जी चाहते है कि जो असल में पर्यावरण की फ़िक्र करते हैं वो उन्हीं के इस मॉडल को और जगहों पर भी replicate करें।ताकि पर्यावरण बचा रहे।इस छोटी सी जगह पर आपको तक़रीबन 40 से अधिक पक्षियों की प्रजातियाँ मिल जायेंगी।और उनसे ज़्यादा आपको सीखने को मिलेगा कि प्राकृतिक आवासों को यथावत रखने के साथ-साथ भी जीवन कैसे ख़ुशनुमा बनाया जा सकता है।
जिन्हें प्रकृति से असल में प्रेम है और इसकी फ़िक्र है उन्हें एक बार इस जगह पर अवश्य जाना चाहिए। अगर संभव हो सकें तो छोटे बच्चों को ज़रूर ले जायें, पर्यावरण को समझने की उनकी समझ और दुरुस्त होगी।
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