Duishen:पहला अध्यापक ( A Review)




 किर्गीज़ लेखक चिंगीज़ आइत्मातोव का लिखा 105 पन्नो  का लघु उपन्यास - दुइशेन  जिसका हिंदी तर्ज़ुमा है - पहला अध्यापक, जिसे पढ़कर लगता है कि हिंदी रूपांतरण में शीर्षक ज्यादा प्रभावी है। नॉवेल  को गार्गी प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। अनुवाद भीष्म साहनी ने किया है। 

    उपन्यास में मुख्य किरदार में है -आल्तीनाई सुलैमानोव्ना जो कि एक  अकादमीशियन है , पर उसके यहाँ तक आने का सफ़र  और उसमे उसके पहले अध्यापक ,उस गाँव के पहले अध्यापक दुइशेन, और दोनों के कल और आज पर लिखा ये लघु उपन्यास अपने आप में एक मुकम्मल क़िताब  हैं। 

    कहानी की शुरुआत होती है , एक दौर के बाद अपने हमवतन लौटी आल्तीनाई से ,जिसे उस गाँव के एक नए स्कूल के उद्घाटन के लिए बुलाया जाता है।बूढ़ा  दुइशेन जो कि आज गाँव का  सामूहिक डाकिया है और जिसके बारे में,"बड़ा कानून कायदे वाला आदमी है। अपना काम पूरा  करने पर ही किसी दूसरे काम में दिलचस्पी लेने वाला आदमी है। "  कुछ दिन बिता कर जाऊंगी सोचने वाली आल्तीनाई  जब अगले दिन लौटने के बाद एक पत्र लिखती है , जिसे वह चाहती है कि सब पढ़ें। 

    पत्र में कहानी शुरू होती है सोवियत संघ के विघटन के पहले से और लेनिन के दौर से जब वहां की कम्युनिस्ट सरकार ने बच्चो की पढाई के लिए एक फौजी  ग्रेटकोट पहने  व्यक्ति - दुइशेन को भेजा है, जो खुद भी बहुत ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं है पर पढ़ा सकता है।  उस दौर में गाँव वालों के लिए स्कूल और पढाई किसी दूसरी दुनिया की चीज़ है। लोग खुद भी पढ़े लिखे नहीं है और न अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं। 

    सरकारी फरमान के एवज़ जब लोग लड़कियों को पढ़ाने के लिए तैयार होते है , तो पुराने जमींदार के अस्तबल में स्कूल शुरू होता है ,सभी नयी मुहिमें ऐसी ही छोटी -छोटी  पहलों से शुरू होती है। छात्रों में खासकर आल्तीनाई जो कि एक यतीम है और जिसकी चाची जितने जुल्म उसपर ढाये उतने कम! 

" देखो मैं कितनी मानिनी हूँ। मैं पढूंगी हाँ मैं स्कूल जाऊंगी अपने साथ औरों को भी ले आऊंगी " स्पष्ट तौर पर शिक्षा के प्रति बालमन की  सुलभता को इंगित करता है। 

    स्कूल की दीवार पर एकमात्र 'दुइशेन वाला लेनिन का चित्र' होना दर्शाता है कि हम सभी के अपने अपने नायक होते है ,पर हमारा आने वाला भविष्य इस पर निर्भर करता है कि हमने अपने नायक बनायें कौन है? लेखक के शब्दों में लेनिन का वो छायाचित्र जैसे कह रहा हो," काश तुम जानते बच्चों , कैसा उज्जवल भविष्य तुम्हारी राह देख रहा है" काफी हद तक एक नायक की दृष्टि को रेखांकित करता है। 

    "मैं जो भी जानता हूँ तुम्हे सिखा दूंगा...एक साल बाद तुम्हे 'क्रांति' लिखना सिखा दूंगा " क्रांति चाहे सामाजिक हो ,आर्थिक या वैचारिक उन्हें बढ़ने में  समय लगता है पर वो बढ़ती है ,बढ़ाना पड़ता है। चे ग्वेरा के शब्दों में ,"Revolution is not an apple that falls when it is ripe! You have to make it fall" क्रांति हमेशा शुरू जैसे दुइशेन ने की, नतीजा आल्तीनाई जैसे लोग होते है। 

    जबरदस्ती आल्तीनाई को अपने से उम्रदराज़ आदमी 'लालमुँहे ' के साथ ब्याह देना कैसे 'महिलाओं का  महिलाओं के लिए  पितृसत्तात्मक व्यवहार' को दिखाता है जो आज भी बदस्तूर जारी है।  उसके बाद भी आल्तीनाई लड़कर विश्वविद्यालय तक पहुँचती है, ये  दर्शाता है कि कैसे आपका जज़्बा आपको मंज़िल तक पहुंचाता है बस हिम्मत न हारें।  दो पोपलर के पेड़ रोपते समय दुइशेन पेड़ नहीं लगाता एक विचार लगाता है, जिसे वर्षों बाद आल्तीनाई देखती है और भावुक हो जाती है। सालों बाद भी उसके  मन में 'मास्टर जी ' के लिए वो सम्मान और प्यार बदलता नहीं है। 

    कैसे प्रेम के सही मायने अपने साथी को उसके लक्ष्य तक पहुंचाने, उसके जीवन को उठाने में हैं, जब आपका प्रेम सही मायनों में निस्वार्थ होता है ,प्रेम की पूर्णता को दर्शाता  है। वो पूर्णता जब आप खुद को शून्य करके भी अपने प्रेम को अनंत पर ले जाते है। वही प्रेम दुइशेन और आल्तीनाई का है। 

    पहला अध्यापक आपको आज भी समाज में ऐसे शिक्षकों की याद दिलाएगा जो सच में समाज को आगे बढ़ाने और एक विचार को आगे ले जाने का काम कर रहें हैं। उपेक्षित वर्गों और महिला शिक्षा जैसे मूलभूत विचारों को आगे बढ़ाने का काम कर  रहे हैं। 

    टॉल्स्टोय  और चेखोव के बाद आइत्मातोव  को पढ़ना एक सुखद अनुभव रहा है। समय हो तो यह उपन्यास जरूर पढ़ा जाना चाहिए। 

टिप्पणियाँ

  1. मेरे द्वारा पढ़ी गयी बेहतरीन किताबों में से एक। दुइसेन का शिक्षा के प्रति समर्पण काबिले तारीफ है।मुझे लगता है, यह किताब पाठ्यक्रम का हिस्सा होनी चाहिए । एक बेहरीन समीक्षा के लिए आपका आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी प्रेरणा से ही यह किताब मैंने भी पढ़ी। शानदार किताब है। शानदार एहसास है।

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी समीक्षा से यह स्पष्ट होता है कि आपकी गहरी समझ और व्यक्तिगत दृष्टिकोण के साथ किताब के अंदर के संदेश को उजागर किया गया है। धन्यवाद कि आपने हमें इस उत्कृष्ट समीक्षा के बारे में जानकारी दी!

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

छिपलाकेदार: कुमाऊँ का सबसे दुर्गम और ख़ूबसूरत ट्रैक

अध्यापक के नाम पत्र: बारबियाना स्कूल के छात्र

Don’t Judge a book by its Cover