The Road Not Taken Often- NH 107B
Robert Frost की कविता The Road Not Taken, पता नहीं क्या सोचकर लिखी होगी उन्होंने पर ये बात NH -107 B के लिए भी लफ्ज़ दर लफ्ज़ एकदम फिट बैठती है। हर कोई जो जोशीमठ जाए उसकी डिफ़ॉल्ट चॉइस है- बद्रीनाथ फिर माणा और वो 'भारत की चाय की आखिरी दुकान ' पर NH -107 B से लोगो को कुछ गुरेज़ सा है। उसका कारण है - धर्म का चुम्बक जो हर दूसरी चीज़ से ज्यादा भारी है और आप मेरी बात से इंकार नहीं कर पाएंगे सोच कर देख लीजिये जहाँ कोई भी धार्मिक स्थान हो आप वहां किस दूसरी जगह को तवज्जो देते है?
जोशीमठ से 62 Kms मलारी हाँ वही मलारी जहाँ 5.2 Kgs का सोने का मुकुट मिला था बल! जो हमने परीक्षा वाणी में पढ़ा और 85 Kms दूर नीती। वैसे जब सुबह अपने होटल से बाहर निकले तो देखा कि हल्की बारिश और कोहरे के बीच पूरा जोशीमठ। एक दफा सोचा रहने देते है ऐसा भी क्या है। पर एक ज़िद थी आये है तो कुछ लेकर जायेंगे। क्राइममास्टर गोगो इसे पढ़ेगा तो सोचेगा मेरा कहना भी जायज़ ही रहा। तो मन तो था औली के बाद निकलकर वही रहने का पर बार बार अपने दो घंटे बर्बाद करने पर भी रास्ता गज़बजाने पर जब पता चला औली में कुछ देखा नहीं जा सकता क्योंकि कीचड़ है और बाइक जा नहीं सकती तो हमने NH -107 B का रुख कर लिया। हलकी बूँदाबारी के बीच बाइक, मैं और बिट्टू !
जोशीमठ के बाद अगला पड़ाव था तपोवन , जहाँ पिछले साल Glacial Outburst के कारण तबाही हुई थी और न जाने कितने मज़दूर उस टनल में दफ़न हो चुके थे। एक तपोवन धारचूला से आगे भी है और न जाने कितने तपोवन होंगे भारत में! ठीक ठाक बाजार... वहां से चाय और दो समोसे खाने और आगे की ठण्ड को भांपते हुए हमने ख़रीदे एक थर्मल और दस्ताने। उससे आगे जाने पर दिखा हरा बोर्ड- Hot Spring. देर हो सकती थी तो सोचा आकर देखेंगे खैर... अपनी एक अलग रौ में बहे जा रहे थे हम ,जा नहीं रहे थे बह रहे थे। एक अकेलापन होना महसूस होना शुरू हो चुका था सड़कें वीरान थी लेकिन एकदम पक्की। ये केवल कहने को NH नहीं था। आगे जगह पड़ी सुराईथोटा जो जोशीमठ से 31 Kms आगे थी। बहुत छोटी सी जगह जिसके आस पास केवल पहाड़ थे एकदम खाली से पेड़ न के बराबर। थे भी तो काफी ऊंचाई पर शंकु पेड़ ।
नीचे बहती नदी के आस पास दूसरे जो पेड़ आपका मन मोह लेते है वो है वो अनाम पीली पत्तियों वाले छोटे पेड़ जो बिलकुल नदी के साथ के शंकु पेड़ो के साथ अपनी पहचान बनाने में सफल ही नहीं शायद आगे भी निकल जाते है। बीच बीच में आते है वैली ब्रिज, जिसमे किसी पर अधिकतम गति 05 या फिर 10 लिखा है। आगे दूर आपको पहाड़ियों पर कुछ कुछ गाँव नज़र आते है जिन्हे देखकर आपको Postman in the Mountains जैसी चाइनीज़ फिल्मे याद आ जाती है। आगे सड़क के किनारे एक मज़दूर को देखा तो वो मुस्कुराया तो पूछ लिया कहाँ से हो भाई? जवाब- झारखण्ड। ये रिवर्स पलायन नहीं लगता ! पहाड़ के लोग शहरों में जा रहे है और दूसरे राज्यों के हमारे भाई यहाँ काम करने। वो अपने 'घर' कितने दिन जाते होंगे सोचा है? क्या ये अब उनका घर ही नहीं हो गया!
बस आ जाता है मलारी। गाँव की शुरुआत उन सफ़ेद पीले लाल पताकाओं से जो पूरे गाँव में बंधी थी। हमेशा रहती है या फिर छोटी राजजात के लिए थी कह नहीं सकता , पर हाँ देखकर अच्छा लगता है। रुकते हैं हम चाय पीते है और सोचा कुछ बात करूँ, बात क्या मन का वही सवाल- सोने का मुकुट उतना भारी मिला किस जगह पर! अंकल से पूछ ही लिया आख़िर। वो बताते है," यहाँ ऊपर मिला था कंकाल एक लगभग 7. 5 या 8 फ़ीट लम्बा और यहाँ जब भी खुदाई हुई है यहाँ गुफा रही है वहीँ वह मिला था " बाकी सब ठीक था पर इंसानी हाइट वहां के हिसाब से एकदम मुख़्तलिफ़ लगी क्योंकि इस ऊंचाई पर इतनी हाइट नहीं मिल सकती ! वैसे भी दन्त कथाये अतिशियोक्ति से भरी होती है जब दस सर एक इंसान के हो सकते है तो ये हाइट तो फिर भी इत्तफ़ाक़ रखती है।
वैसे तो ऐसी जगहों पर आपको पहले केवल दो चीजें मिलती थी - प्रकृति की ख़ूबसूरती और इंडियन आर्मी पर इस लिस्ट में जिसने खुद को जोड़ा है वह है- जियो के टावर ! इतने दूर तक फैले थे कि ऊँची जगह पर देखकर सोचा कि सामान कैसे ढोया होगा?
जितना इस घाटी में अंदर जा रहे थे उतना हम बादलों के बीच खुद को महसूस कर रहे थे सामने ऊँचे पहाड़ थे और ऊँची चोटियों पर हल्की बर्फ, है, हालाँकि अभी अक्टूबर शुरू हुआ है पर NDBR का ये क्षेत्र बर्फ़बारी के लिहाज़ से एकदम तैयार है। नीचे नदी जिसका पानी बिल्कुल हरा था उतना हरा जो बच्चे अपनी ड्राइंग की कॉपी में भरते है पानी दिखाने के लिए! इसके आगे कैलाशपुर, मेहरगाव ,बम्पा, फरकिया और गमशाली ,इनमे बम्पा और गमशाली सड़क पर है बाकि ऊपर चढ़ाई में। गमशाली में होम स्टे पता करने के बाद निकलते है हम उस अंतिम छोर के लिए - नीती , गमशाली से 6 किमी० दूर।
आखिरकार अब हम नीति में थे। बाइक रोककर जिसपर सबसे पहले नज़र पड़ी वो थी- ' भारत की चाय की पहली दुकान ' पढ़कर मन खुश हो गया पर दुखी भी क्योंकि दुकान बंद थी। आगे गाँव में जाकर एक घर से धुआं दिखा तो आवाज़ देने पर एक बूढी पर अपनी तबियत से जवान एक उम्रदराज़ महिला बाहर आयी। दुआ सलाम के बाद मैंने कहा," चाय मिलेगी आंटी ?" वो मुस्कुराई और जवाब था हाँ।
एक बड़ी गलत धारणा जो मैंने देखी लोगो में, अपने उत्तराखंड में वो ये कि गढ़वाल के लोगों में पूर्वाग्रह कि कुमाऊं के लोग ख़राब और कुमाऊं में कि गढ़वाल के ख़राब यही बात हर क्षेत्र, समुदाय, जाति और धर्म के लिए भी ! आप कितने लोगो से मिले है? कितनों के साथ रहे? कितने दिन? जिनके लिए ये 'दूसरे ख़राब है' है न आप देखेंगे कि वो बस एक अफवाह को सच मान बैठे है। मैं जहाँ भी लोगो से मिला सबने केवल प्यार ही दिया। उन आंटी ने न केवल चाय बल्कि कहा कि खाना नहीं खाया होगा खा लो बनाया है , मन हो तो आज यही रुक जाओ आज गाँव घूमो। इतनी सहृदयता जो आपको सोचने पर मजबूर करती है कि यहाँ अलग क्या है!
चाय पीकर और थोड़ा गाँव घूमने के बाद मैंने कहा चलते है, अपना ध्यान रखियेगा आप ,फिर मुलाक़ात होगी... रुकने का मन था पर समय की पाबन्दी। नौकरीपेशा लोगो के लिए अपनी मर्ज़ी क्या अपनी है?
निदा फ़ाज़ली की ग़ज़ल क्या हमारे लिए भी मौजूं नहीं है- "अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम है, रुख हवाओं का जिधर का है उधर के हम है" फिर भी मैंने कुछ हद तक इन हवाओ को मोड़ने की कोशिश की है। क्योंकि बाकी साथियों के तंज़ हो या उनकी टीस ," मजे करो यार " बहुत कुछ कहती है। उनकी ज़िन्दगी के चुनाव अपने है मेरे अपने! न खुद पर इसे लेकर कोई गुरूर है न उनके लिए अफ़सोस !
वापसी में अब गमशाली रुकना ही था - मिलना था किसी से, न मिलने पर ढूंढना था जब तक वो शख़्स न मिले। पलायन की कहानी कहती डाक्यूमेंट्री -यकुलांस जो उत्तराखंड के एक बैंड Pandavas ने बनाई थी गमशाली के प्लॉट पर और इतना मैं जानता था कि उसके मुख्य किरदार - श्री किशन सिंह कुंवर जी यही के है। मिलना था उनसे ये ख्वाहिश थी... आज मैं बड़ा भाग्यशाली था मेरा गाँव में घुसना उनका बाहर आना और मेरा कहना ," अंकल आप ही थे न वो वीडियो में ?" पहले ना -नुकर के बाद उन्होंने मुस्कुराकर कहा हाँ! मेरा दिन बन गया था। उन्होंने कहा चाय पियोगे? मैंने कहा हाँ पर वही यकुलांस वाली चाय - ज्या (नमकीन घी वाली चाय )
काफी बात हुई उनकी पत्नी ने साथ में सत्तू भी दिया। उन लोगो के प्रेम ने मुझे सच में भावुक कर दिया था ऐसा लगा अपने घर पर हूँ। पर उनसे मिलकर सलाम बॉम्बे के एक्टर शफ़ीक़ सय्यद का ध्यान आ गया। न फिल्म हिट होने के बाद उसके जीवन में कुछ बदला न किशन जी के जो मैं अनुमान लगा पाया। हाँ दिग्विजय परिहार का गाना 'रुपसा रा मोती' भी यही शूट हुआ है मैं उस जगह पर भी इत्तफ़ाक़ से ही पंहुचा था भटकते भटकते। ये भटकाव भी आपको कई दफा सही जगह पर ले जाकर छोड़ता है कमसकम आज मेरे लिए यही हो रहा था।
अलविदा फिर मिलेंगे कहकर मैं वापस आता हूँ। इस जगह से जो लेकर मैं वापस लेकर जा रहा था वो था -उन लोगो का प्यार , एक नयी स्फूर्ति और ढेर सारे जज़्बात ! उन लोगो ने अपनी जड़ें नहीं छोड़ी है बच्चे उनके भी बाहर है शायद कल के दिन वापस आये भी न रहने को पर फिर भी उन लोगो का अपने खेतों से जुड़ाव देखने लायक था। डोके या कंडी में घास और राजमा लाती महिलाएं - अपने पारम्परिक वेशभूषा में !
वापसी में जल्दी थी पर फिर भी जिसने रोका मुझे वो था चट्टान पर दिखा भरल या हिमालयन ताहर का वो झुण्ड जिसे देखकर मैं ख़ुशी से चिल्ला गया था ! अपने प्राकृतिक आवास में इन्हे देखने का जो सुकून था वो Zoo में तारबाड़ में मिल ही नहीं सकता आपको। सच में मेरा दिन बन गया था... मेरा सफ़र सच में सफल हो गया था।
तपोवन के पास गर्म कुंड में हम अँधेरे में पहुंचे। हाथ जला सकता है वो पानी उबलता पानी। Geothermal Energy जिसे आप ऊर्जा के प्रकारों में पढ़ते है। लेकिन आदमी जहाँ अपनी जहालत न दिखाएं तो वो आदमी कहाँ! शराब की बोतलें और अंडो के छिलके समझ गए होंगे आप लिखना लाज़िमी नहीं है।
लगभग अँधेरे में वापस जोशीमठ और एक सुकून कि आज जी कर लौटे है और जन्नत से आये है। फिर से कहूंगा उस खूबसूरती को बयां करने को मेरे पास लफ्ज़ नहीं है।
अक्सर वो सड़कें ज्यादा खूबसूरत होती है जो अनछुई है, और भीड़ से अलग है क्योंकि वो भीड़ का हिस्सा नहीं है उन्ही में एक नाम है -NH -107 B.
अतिसुंदर यात्रा वृतांत आपके द्वारा, आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं मेरा सौभाग्य है कि मैं आपका विद्यार्थी रहा हूं। प्रणाम गुरूजी को🙏
जवाब देंहटाएंThank You Kamal.
हटाएंIt's amazing sir 😍😍🙏🏻🙏🏻💐💐
जवाब देंहटाएंAap bhut acha likhte h sir
जवाब देंहटाएंयह ब्लॉग पढ़ कर सारी यादें ताज़ा हो गई दा, औली में रहते हुए 3—4 बार इन जगहों पर जाना हुआ। उत्तराखंडी अक्सर लद्दाख trip बुलेट में जाने की ख्वाहिश रखते है, पर मेरी गुज़ारिश उनसे यही रहेगी की वे उत्तराखंड के सीमांत क्षेत्रों को भी जरूर एक्सप्लोर कर लें, जहां कि विषम परिस्थितियों में वे एक अच्छी एडवेंचरस ride ka लुत्फ उठा सकते हैं । हालाकि BRO के सराहनीय काम से लोगों की राह अब काफ़ी आसान हो गई है।।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर यात्रा वृतांत को आपने एक्सप्लेन किया है। पढ़कर अच्छा महसूस हुआ काश मुझे भी घूमने का मौका मिले।
जवाब देंहटाएं🥰
जवाब देंहटाएंWonderful experience Sir
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार
जवाब देंहटाएंमैं कभी यहां गया नहीं पर इस वृत्तान्त को पढ़ कर जाने को कस्मसा रहा हूं । नये आयाम दिखाने के लिये धन्यवाद दा
जवाब देंहटाएंवाह मित्र! गजब का यात्रा वृतांत👌 पढ़कर ऐसा लगा जैसे की मैं खुद यात्रा कर रहा हूँ।
जवाब देंहटाएंVery Nice Sir 👌👍
जवाब देंहटाएंThank you so much friends for your valuable comments.
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