Rome wasn't built in a day

 





बीती रात 11:17 बजे व्हट्सएप पर मेरे एक पुराने छात्र का मैसेज आया, "सर बहुत दिनों से आपका लेख नहीं आया कोई। मेरी उम्र के युवाओं के लिए कुछ लिखिए  जो एक दिशा में नहीं सोच पाते "

    नाम लिखना इसलिए लाज़िमी नहीं है क्योंकि ये एक छात्र की नहीं बल्कि हर उस मध्य आयुवर्ग की समस्या है जो अनेकों चीजों से एक साथ जूझ रहा है। इस आयु वर्ग (17 -25) में स्थायित्व यानि स्टेबिलिटी बहुत कम होती है। उम्र का तकाज़ा कहें या हार्मोनल डिस्बैलेंस , पारिवारिक जिरहें  हो या  फटाफट 'settle' होने की चाह , यौनिकता का प्रभाव हो या निजी सम्बन्धो की अस्थिरता... कारण एक नहीं कई ज्यादा है और व्यक्तित्व इन्ही का फ़लसफ़ा है। 

इस उम्र में दो चीजों का प्रभाव बहुत ज्यादा हावी होता है। पहला है घरवालों या समाज के अनुरूप अपने कैरियर की दिशा और दूसरा है अपने निजी  सम्बन्ध। पहले का कारण  सामाजिक दबाव है तो दूसरे का हार्मोनल बदलाव। 

    एक बच्चे को पैदा होते ही पहली चीज विरासत में जबरदस्ती दी जाती है -उसकी पहचान , उसकी सामाजिक पहचान यानि उसकी जाति और धर्म और दूसरी  उसके कक्षा में प्रवेश होते ही उसे डॉक्टर या इंजीनियर या पायलट जैसे मुकाम हासिल करने की ज़िद। शायद ही कोई माँ बाप उसके जीवन का लक्ष्य एक बेहतर इंसान बनना तय करते है। भौतिकतावाद यानि materialism  इसी का हासिल है। शायद सामाजिक ढांचा ही ऐसा बन चुका है कि  आपकी पहचान आपकी तनख़्वाह और Living  Standard  से तय होने लगे है। अगर आप नौकरीपेशा है और 'शहर में घर नहीं बनाया ' की श्रेणी में है तो साहब आपकी तरफ नज़र-ए इनायत भी उसी अनुपात में होगी। जीवन का सबब एक खुशनुमा ज़िंदगी  नहीं वरन चीजें इकठ्ठा करना हो गया है।  इसलिए युवावर्ग की instability इन कारणों से ज्यादा प्रभावित  है। 

    दूसरा जो आज के दौर में मेरी अपनी समझ कहती है वो ये कि युवावर्ग रातोंरात अपनी सारी भौतिक जरूरतें  पूरी करना चाहता है जिसके लिए उन्हें धन चाहिए और वो भी जल्द से जल्द। इसी का नतीजा है कि उन्हें Youtube एक पैसा बनाने वाली मशीन लगती है। काफी ऐसे चैनल जिन्हे आप सरेआम सुन या देख नहीं सकते, वो युवाओं के लिए हरदिल अजीज़ बने हुए है। कुछ समय पहले कॉलेज में मेरे पास एक छात्र आया था किसी काम से तो उसने कहा मैं ज्यादा कॉलेज नहीं आ पाता।  पूछने पर बताया ,"सर मैं कंटेंट बनाता हूँ " मैंने कहा वाह ! दिखाओ भाई क्या चैनल है आपका ? तो उसने जवाब दिया कि सर वो ऐसे नहीं दिखा सकता आपको ,वो उस तरह का है जैसे Youtube पर .... मैं समझ गया था तो पूछा नहीं। ख़ास बात ये है कि  कंटेंट के नाम पर जो परोसा जा रहा है आपको उस चैनल के करोड़ों सब्सक्राइबर है इसलिए युवाओं को लगता है यही मुनाफे का सौदा है।  किताब में दिमाग  खपाने के बाद जब 8-10 हज़ार की नौकरी करनी है इससे अच्छा है यही सही तरीके है पैसा कमाने के। उन्होंने अर्थशास्त्र  का बेसिक -Demand and  Supply  पर ध्यान दिया है। लेकिन युवाओं को समझना चाहिए कि "Rome wasn't built in a day" उसमे वक़्त लगता है। 

    अब दूसरी बात पर आता हूँ वो है उनके अपने निजी सम्बन्ध। यहाँ समस्या हक़ जताने की ज्यादा है न कि दूसरे की निजता की। कुछ समय पहले फेसबुक पर किसी आर्टिकल में रविंद्रनाथ टैगोर की उस कहानी के बारे में पढ़ रहा था जिसमे एक युवती अपने प्रेमी से कहती है मैं तुमसे विवाह करने को तो राजी हूँ पर तुम झील के उस ओर  रहोगे मैं इस तरफ। प्रेमी के झल्लाने पर युवती का दिया जवाब 'प्रेम सम्बन्ध पर मेरे अब तक का पढ़ा गया सबसे बढ़िया दर्शन' है। वो कहानी हर युवा को पढ़नी चाहिए। मेरे कुछ पुराने छात्रों की समस्याएं इस विषय पर भी होती है और कारण  मैंने हमेशा Insecurity और 'इतना तो हक़ बनता है ' जैसी चीजें है। निजता उसमे दूर दूर तक नहीं है बस वहां दूसरा, अपनी मिल्कियत है। इससे फिर भावनात्मक अवसाद पैदा होता है और कई बार परिणाम बहुत खतरनाक दिखते  है जिसमे हिंसा और निजी चीजें सार्वजनिक करना एक दूषित मनोवृति की निशानी है। क्योंकि समाज  पितृसत्तात्मक है इसलिए महिलाओं को इसका खामियाज़ा 'उन्ही की  गलती है' ये कह दिया जाता है। 

    तीसरी चीज़ एक और है, वो है  तकनीक पर हमारी ज्यादा निर्भरता और अपने साथियों का अभाव। आज से 10-15 वर्ष पहले जब तकनीक इतनी हावी नहीं थी तो चर्चाएं  बैठ कर होती थी। निजी समस्या हो या कोई राजनीतिक परिचर्चा।  पर आज ये दायरा कम हुआ है।  ऑरकुट से शुरू हुआ यह वर्चुअल मित्रों का संसार आज व्हट्सएप पर है, कल ऑगमेंटेड रियलिटी और मेटा यूनिवर्स में पहुंचने वाला है। परस्पर बातों का दायरा लगातार सिमट रहा है। ये भी एक कारण है युवाओं की अपनी अस्थिरता का क्योंकि हर सोशल मीडिया उपयोग करने वाले को लगता है दूसरा इंसान बहुत खुश है क्योंकि वहां प्रचलन ही ऐसा दिखने का है। 

बीच में कहीं पढ़ा था हम क्या है ये तीन चीजें तय करती है - " the people you meet, the classes you take and the books you read" इसमें पहली और आखिरी चीज का आपके व्यक्तित्व में ख़ासा फ़रक पड़ता है ये मेरा निजी अनुभव है।  अच्छी किताबें आपकी समझ को दुरुस्त करती है और  और अच्छे लोग आपको बेहतर इंसान बनाने में मददगार साबित होते है। यही दो सबसे अहम् है जो आपको बनाते है और आप, अपना नजरिया तय करते है और वो नजरिया आपका जीवन बनाता है। 

    और आखिर में यही कि युवा खुद पर भरोसा रखें।  उस Rat  Race  का हिस्सा न बनें जहाँ भीड़ जा रही है । जब आपके दोनों हाथों  के  फिंगरप्रिंट एक से नहीं होते तो आप दूसरों जैसा बनना क्यों चाहते है? सब्र रखें। Slow  and steady wins the race में यकीन रखें।  यहाँ race  से मेरा मतलब ज़िन्दगी में बेहतरी से है,  बेहतर विचारों से है। हमेशा याद रखें   देर से मिलने वाली चीजें देर तक टिकती भी है। 



टिप्पणियाँ

  1. Big big thumbs-up for such type of masterpieces creation....🔥👍👍 बहुत ही शानदार लेख

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  2. बेहतरीन लेख गुरु जी 🙏हृदय से सराहनीय है।🙏🙏❤️❤️

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  3. आपके लेख और आपके अनुभव हम जैसे युवा वर्ग के लिए एक अभिभावक की तरह मार्गदर्शन करते हैं।
    आगे भी आप अपने जीवन के हमारे इस उम्र के पड़ाव के अनुभव को साझा करते रहे ताकि आगे हमारा मार्गदर्शन होते रहे।

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  4. I have no words..
    Ap wakai me bahut suljhe hue personality hain..
    Tabhi apke lekh itne ache hote hain..as always

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