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10 Books You can read in 2023

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  बेहतरीन  ज़िन्दगी का रास्ता बेहतरीन किताबों से होकर जाता है। और ये बात एकदम सही कही गयी है। आप जितने भी अपने अध्यापकों से प्रभावित रहे होंगे आप ग़ौर  करने पर पाएंगे कि उनके व्यक्तित्व में किताबों का बड़ा योगदान रहा है।  ज्ञान की कोई सीमा नहीं है ,आप जितना जान लें उतना कम लगता है।      आज वर्षांत पर अपने शग़ल पर ही कुछ लिखने का मन  हुआ तो सोचा क्यों न किताबों पर बात कही जाए।  अपने ख़ज़ाने पर सरसरी निग़ाह डालने पर कुछ किताबें चुनी जिन्हे आप सभी 2023 में अपने रीडिंग लिस्ट में शरीक़ कर सकते हैं।  1. सोफ़ी  का संसार   मूलतः किताब अंग्रेजी में है पर इसका हिंदी तर्ज़ुमा भी अच्छा अनुवादित है। कहानी एक गुमनाम पत्रों  शुरू से होती है जो एक 15 साल की लड़की  सोफ़ी को दर्शन (पाश्चात्य) सिखाने के लिए भेजे गए है।  प्रश्नों के माध्यम से डेमोक्रिटस के अणु  सिद्धांत  से लेकर बिग बैंग तक दर्शन का ज़िक्र है जो बेहद आसान भाषा में लिखा गया है।  2 . वोल्गा से गंगा   राहुल सांकृत्यायन द्वारा  लिखा गया बेहद चर्चित संग्रह है जिसमे  पश्चिम से लेकर यहाँ तक की कहानियों के माध्यम से मानव विकास कैसे आगे बढ़ा और  संस्कृतियाँ कैस

ख़ुद का ख़ुद से मिलना: Trek to Khaliya Top Munsyari (3709 Mts)

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  प्लान था दो का, हुआ एक का.... और आख़िरकार बन गया तीन का ! होने को यहाँ प्लान अचानक बनते है पर फिर भी उम्मीद थी कि  इस ट्रिप में प्रकाश बाबू साथ होंगे पर शादीशुदा दोस्तों की आम ज़िन्दगी और अपनी मेंटोस!  ऐन वक़्त पर दग़ाबाज़ी और हम हुए कहे के पक्के, चाहे किसी और से कहा या  ख़ुद  से... तो अपना ट्रैक गियर तैयार किया, बाइक में बाँधा और निकल गए मुनस्यारी।  सोचा था इस बार का ये सोलो ट्रिप ही सही। मौसम ख़राब होने की परवाह किये बिना अरुण  और वरुण प्रूफ जैकेट पहनकर मैं निकल पड़ा मंज़िल की ओर।      यहां से 25  Kms  थल।  सानदेव रिज़र्व फॉरेस्ट एरिया का घना  जंगल और  पाले से लबालब सड़क। तकरीबन एक घंटे चलने के बाद मैं था थल में।  सर्दियों में ये जगह कुहरे से भरी होती है। अगर इस समय कोई बच्चा पैदा होते ही बड़ा हो जाए तो सोचेगा कि  वो बादलों के बीच जन्मा फरिश्ता है ! इस कदर कोहरे में डूबा रहता है ये क़स्बा। यहाँ से 12 Kms आगे है नाचनी। सोचा ब्रेकफास्ट कर लेता हूँ आगे खाने के लिए वक़्त होगा नहीं। जिस  दुकान में नाश्ते के लिए रुका सामने एक बोर्ड पर लिखा था - हिन्दू हेयर कटिंग ! अब कैंची तुर्किश शब्द है और उस्तरा भी

किताबों की दुनिया

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  मेरी किताबें  कल यूट्यूब पर एक वीडियो देखा था जिसमे डॉ विकास दिव्यकीर्ति बताते है कि  किसी मानसिकता को सुधारना है तो,"बस पढ़ा दीजिये"...पर समस्या ये है कि  जब पढ़ाने वाले लोग ही नहीं पढ़ते तो बाकी को पढ़ाएं कौन? शिक्षण के पेशे से यूं तो कई वर्षों से राब्ता है पर आधिकारिक तौर पर वर्ष 2016  से इस पेशे में सरकार से  इसके लिए तनख्वाह भी पाता हूँ। क्योंकि बचपन से ही किताबों से बदस्तूर इल्म रहा मेरा इसलिए अपने विषय के अतिरिक्त भी साहित्य और बाकी किताबों में रुचि कम नहीं हुई पर लगातार बढ़ी ही।       हाल में कहीं पढ़ा था मैंने कि "किताबें आपको वहां ले जा सकती है जहाँ आप खुद नहीं जा सकते "  बिल्कुल सही बात है। आज़ादी मेरा ब्रांड पढ़ते हुए आप यूरोप  घूम सकते हैं या स्टीफेन हॉकिंग्स को पढ़ते हुए आप समय की यात्रा कर सकते है।      उच्च शिक्षा में आने के बाद कुछ ही सही पर कुछ बेहतरीन लोगो से मिलने का मौका मिला और देखा कि पढ़ने वाले लोग अभी भी है समाज में , है ही नहीं बल्कि इसे आगे भी बढ़ा रहे है। आरम्भ स्टडी सर्किल पिथौरागढ़ इसका एक उम्दा उदाहरण  है। कुछ समय पहले महेश पुनेठा सर से मिलने के

Casteism,Caste atrocities and reservation

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  reddit.com प्रकाश झा द्वारा निर्देशित फिल्म- आरक्षण का पहला सीन  -नायक ऑटो से उतरकर अपना इंटरव्यू देने जाता है।  सामने इंटरव्यू लेने तीन लोग बैठे है। उनका पहला सवाल आपका नाम क्या है? "सर दीपक कुमार " नहीं पूरा नाम बताइये, "सर बस दीपक कुमार " तीनो इंटरव्यू लेने वालो के चेहरे पर हताशा ! जब नायक बताता है कि  वह विश्वविद्यालय का गोल्ड मेडलिस्ट रहा है तो वो तीन कहते है हाँ वो सब छोड़ो अपना पारिवारिक स्टेटस बताओ फिर नायक को जलील किया जाता है।      "पूरा नाम बताइये " ये सवाल लगभग हर आदमी से पूछा जाता है खासकर जब आप किसी अच्छे पद पर चुनकर जाते है... ये मुझसे भी अक्सर पूछा जाता है और संयोग वश मेरा नाम भी आरक्षण के नायक जैसा है तो इतना कहते ही सामने वाले के भाव बदल जाते है। अब वो समझ जाते है इन्हे इज्जत नहीं देनी है क्योंकि ज्ञान जैसी चीजें उनकी बपौती है! हमारे विराट धर्म में ऐसी निचली जाति  कहे जाने वालों में अक्ल कहाँ है ? वो तो आंबेडकर जैसा कोई पैदा हो गया वरना इनकी क्या मजाल कि हमारे कंधे से कन्धा मिलकर खड़े हो सकें। उनका दुःख जायज़ है क्योंकि जब एक धर्म ने उनके