किताबों की दुनिया
मेरी किताबें |
शिक्षण के पेशे से यूं तो कई वर्षों से राब्ता है पर आधिकारिक तौर पर वर्ष 2016 से इस पेशे में सरकार से इसके लिए तनख्वाह भी पाता हूँ। क्योंकि बचपन से ही किताबों से बदस्तूर इल्म रहा मेरा इसलिए अपने विषय के अतिरिक्त भी साहित्य और बाकी किताबों में रुचि कम नहीं हुई पर लगातार बढ़ी ही।
हाल में कहीं पढ़ा था मैंने कि "किताबें आपको वहां ले जा सकती है जहाँ आप खुद नहीं जा सकते " बिल्कुल सही बात है। आज़ादी मेरा ब्रांड पढ़ते हुए आप यूरोप घूम सकते हैं या स्टीफेन हॉकिंग्स को पढ़ते हुए आप समय की यात्रा कर सकते है।
उच्च शिक्षा में आने के बाद कुछ ही सही पर कुछ बेहतरीन लोगो से मिलने का मौका मिला और देखा कि पढ़ने वाले लोग अभी भी है समाज में , है ही नहीं बल्कि इसे आगे भी बढ़ा रहे है। आरम्भ स्टडी सर्किल पिथौरागढ़ इसका एक उम्दा उदाहरण है। कुछ समय पहले महेश पुनेठा सर से मिलने के बाद उनके प्रयासों से भी काफी कुछ सीखने को मिला मुझे पर जिनके घर जाकर उनकी किताबों से रूबरू होने का मौका मिला वो है कमलेश जी और चंद्र प्रकाश जी और डॉo सुंदर कुमार जी
कमलेश जी से जुड़ना एक संयोग रहा मेरा 2020 में, फिर उनके साथ कभी चाय पर तो कभी सड़क किनारे ही किताबों पर लम्बी बातचीत हो जाती है। होता ये है अगर आप पढ़ते है तो आपके पास बातें करने के लिए बहुत कुछ होता है। हमारा भी यही हाल है। संयोग से एक दिन कमलेश जी के घर जाना हुआ और उनकी किताबों की दुनिया को नजदीक से देखने का मौका मिला। उम्दा किस्म के साहित्य के इलावा जिस किताब पर निगाह रुकी वो थी - चिल्ड्रन नॉलेज बैंक। अपने स्कूल के दिन याद आ गए।
कमलेश जी आधी किताबें |
आज इतवार को आरम्भ की बुक मीट ख़त्म होने पर सोचा कहीं निकला जाए तो बैग में एक बिस्कुट का पैकेट , एक पानी की बोतल और एक उपन्यास लेकर मैं चल पड़ा एक अनाम रास्ते पर। सोचा था जहाँ धूप मिलेगी कहीं खुली जगह पर वही घास पर लेटकर वो उपन्यास पढ़ा जाएगा... पर थोड़ा आगे निकलने पर बोर्ड दिखा दूनाकोट 16 किमी ०। याद आया कि मित्र चंद्र प्रकाश जी वहां पर पोस्टेड है। बात हुई और निकल पड़ा मिलने। "सर , जहाँ पर रोड ख़त्म होगी वही पर मैं रहता हूँ " रास्ते से किसी बुजुर्ग ने लिफ्ट मांगी बैठाया और उनसे बतियाते ,वहां को जानते आखिरकार मैं पंहुचा -दूनाकोट।
कमरे में जाते ही सामने -किताबों से भरा रैक। दिल खुश होना मैं अपने लिए तो यही मानता हूँ। " सर किताबों में मुझे एक ख़ुशबू आती है " बटरोही जी का महर ठाकुरों का गाँव पढ़ने में व्यस्त थे चंद्र प्रकाश जी। उनके चाय बनाने तक मैंने उनकी सारी किताबें आँखों के बारकोड से स्कैन कर ली जिसमे भारतीय संविधान ,क्रोनिकल्स से लेकर Introduction to Indian Philosophy, और The seven moons of Maali Almeida (Booker 2022) जैसी किताबें भी मौजूद थी। 'जहाँ सड़क ख़त्म हो' जैसी जगह पर किसी शिक्षक के पास ऐसा संकलन होना सुकून देता है। यकीं होता है आज भी ऐसे शिक्षक है जो रोज़ाना पढ़ते है ,केवल 'नौकरी निकालने तक' नहीं पढ़ते... और मैं दावे के साथ कह सकता हूँ जो पढ़ते है वो बेहतर पढ़ाते भी है।
चंद्र प्रकाश जी की किताबें |
बहुतों को लगता है पढ़ने की जरुरत नहीं है क्योंकि वो खुद ही स्वयंभू है। किताबों पर पैसा खर्च करना उन्हें बस पैसे की बर्बादी लगती है। इसका नतीजा ये होता है कि फिर उनके ज्ञान का स्रोत व्हट्सप या फेसबुक के बचकाने और बेसिरपैर के फॉरवर्ड होते है। और ये फॉरवर्ड एक से होते हुए वहां पहुंचते है जिसमें एक सड़ा हुआ समाज अंकुरित होता है, कट्टर मष्तिष्क उभार लेते है और नतीजा - वापस उस आदिम दुनिया की ओर U -Turn
सर आपसे मुलाकात होना एक सुखद अनुभव था। किताबों पर आपसे बातें करते- करते समय का पता ही नही चला । न जाने कितने ही ऐसे अनुभव हैं , जो किताबे पढ़ कर हम महसूस करते हैं । आज के दिन को ख़ुशनुमा बनाने के लिए आपका आभार..💐💐
जवाब देंहटाएंदीपक सर जैसे व्यक्ति जिन्हे पढ़ने और पढ़ाने का शौक रहता है । कि प्रवृति के लोगों से जुड़कर मुझे भी अब साहित्य और दर्शन मैं रुचि आने लगी है। Big thank you sir👏🙏
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