ख़ुद का ख़ुद से मिलना: Trek to Khaliya Top Munsyari (3709 Mts)
होने को यहाँ प्लान अचानक बनते है पर फिर भी उम्मीद थी कि इस ट्रिप में प्रकाश बाबू साथ होंगे पर शादीशुदा दोस्तों की आम ज़िन्दगी और अपनी मेंटोस! ऐन वक़्त पर दग़ाबाज़ी और हम हुए कहे के पक्के, चाहे किसी और से कहा या ख़ुद से...
तो अपना ट्रैक गियर तैयार किया, बाइक में बाँधा और निकल गए मुनस्यारी। सोचा था इस बार का ये सोलो ट्रिप ही सही। मौसम ख़राब होने की परवाह किये बिना अरुण और वरुण प्रूफ जैकेट पहनकर मैं निकल पड़ा मंज़िल की ओर।
यहां से 25 Kms थल। सानदेव रिज़र्व फॉरेस्ट एरिया का घना जंगल और पाले से लबालब सड़क। तकरीबन एक घंटे चलने के बाद मैं था थल में। सर्दियों में ये जगह कुहरे से भरी होती है। अगर इस समय कोई बच्चा पैदा होते ही बड़ा हो जाए तो सोचेगा कि वो बादलों के बीच जन्मा फरिश्ता है ! इस कदर कोहरे में डूबा रहता है ये क़स्बा। यहाँ से 12 Kms आगे है नाचनी। सोचा ब्रेकफास्ट कर लेता हूँ आगे खाने के लिए वक़्त होगा नहीं। जिस दुकान में नाश्ते के लिए रुका सामने एक बोर्ड पर लिखा था - हिन्दू हेयर कटिंग ! अब कैंची तुर्किश शब्द है और उस्तरा भी हिंदी या संस्कृत का तो नहीं है शायद। इसलिए वो भाई बाल और दाढ़ी किन हथियारों से बनाता होगा वो ही जाने !
सियासत रिआया की नंगी पीठ पर जब मज़हब के कोड़े बरसाती है तो आदमी खून की नहीं बल्कि नफरत की उल्टी करने लगता है। कोड़े खाने वाली पीठें लिए एक भीड़ खड़ी है ,सियासतदानों के पास चाबुक कम पड़ गए है।अब 'हर एक बात पे कहते हो तुम के तू क्या है...' जैसी ग़ालिब की ग़ज़लें दिन-ब -दिन ज्यादा मौजूं हो चली है।
ख़ैर, हम चल रहे हैं रामगंगा के किनारे किनारे, मतलब मैं और मेरे साथ आप मेरे पाठक।
नाचनी ठीक-ठाक बाजार है। इसके आगे है तेजम...तेजम से मैं दो जोड़े गर्म मौजे ले लेता हूँ। क्योंकि मेरे अपने मौजों में बात बन नहीं रही...सड़क अच्छी है ,संकरी जरूर है पर शायद नई है इसलिए सही है। नदी के उस पार ज्यादा जगह खाली सी है।
फिर आता है क्वीटी ,उसके बाद डोर और फिर बिर्थी। बिर्थी में झरना देखने लायक है। मैंने तो इससे ऊँचा झरना नहीं देखा है सामने। 20 मीटर दूर भी पानी के छींटे आप तक आ जाते है। 20 रूपये चार्ज है। गाँव वाले लेते है साफ़ सफाई के लिए।
इसके आगे है गिरगांव और यहाँ से होता है सफ़र चढ़ाई का, कालामुनि तक !
मुनस्यारी को बाकी दुनिया से जोड़ने वाली मुख्य सड़क है ये। पर हालत इतनी खराब कि कार या बाइक चलाने वालों को सफलतापूर्वक गाड़ी चलाने के बाद वीरता पुरूस्कार दिया जाना चाहिए। वैसे अगर RTO को लाइसेंस देना ही है तो इसी रोड पर टेस्ट लिया जा सकता है। अगर इस पर चला दी गाड़ी तो आदमी कील पर भी चला सकता है !
हाँ एक बात और. रास्ते में कई जगह स्मृति पत्थर लगे थे ,हादसों में गुजरने वालों की याद में। हादसे सब गाड़ी के एक्सीडेंट वाले है। कुछ दिन पहले एक जगह हुए हाल के हादसों के बारे में एक विज्ञान के शिक्षक ने मुझसे कहा कि वहां 'मंदिर बना देना चाहिए।' बाकी का समझ आता है पर एक विज्ञान का शिक्षक जब ऐसी बेतुकी बातें करता है तो मुझे सरप्राइज होता है कि उसने कक्षा 11 में या तो अभिकेंद्रीय बल, घर्षण गुणांक, मोड़ों पर न्यूनतम वेग कितना होना चाहिए , बॉडी कब ऑर्बिट से बाहर निकल जाती है ? या तो पढ़ी नहीं या समझी नहीं।
ऐसे लोग जब ये तर्क देते है की वहां पर इतने हादसे हुए है तो ये शायद उन गाड़ियों को नहीं देखते जो वहां से सफलतापूर्वक रोज गुजरती है। प्रायिकता के आधार पर देखें तो ये हादसे इकाई प्रतिशत में होंगे जिसे आधुनिक विज्ञान Statistical Noise कहता है। पढ़ने वाले पाठक इस बात पर जरूर गौर करें।
आखिरकार मैं पंहुचा खलिया द्वार। 20 रूपये एंट्री और कैंपिंग के लिए न्योता देते लोग और उनके चार्जेज। ठहरना था ही सो एक से बात की और चल पड़ा पैदल। कैंप वाले ही त्रिलोक जी साथ थे। "सर आपका बैग ले लूँ ?" नहीं। मैं खुद ले जाऊंगा , मैंने जवाब दिया। मैं खड़ी चढ़ाई पर चल रहा था । रास्ते में उनसे उनके बारे में पूछते हुए कुछ अपने बारे में बताते हैं ,"तीन बेटियाँ है सर …लड़के के चक्कर में हो गए, पर अब सोचता हूँ कि इन्हे ही पढ़ाना लिखाना है आगे बढ़ाना है... ये बातें सुनकर अच्छा लगा कि लोगो में बदलाव आ रहा है। कम से काम कुछ हद तक ही सही।और भी काफी कुछ बातें हुई।
जगह जगह पर दूरी और इन देवदार के तख्तों पर पर्यावरण बचाव के लिए लिखा गया है.. ये तख़्त भी खूबसूरत लगते हैं। लगभग 2.5 Km पर आ जाता है बेस कैंप और KMVN Guest house. पीले,हरे,नारंगी टेंट।
जाते ही त्रिलोक जी कहते है सर चाय लाता हूँ , और कुछ? "मैगी हो सके तो"मैंने कहा। तो कुछ देर में चाय और मैगी तैयार थी। भूख का तकाज़ा था या जगह का स्वाद, लाजवाब था। लगभग 3 बज रहे थे। मैंने सोचा ठहरकर किया भी क्या जाए ! ऊपर घूम कर आता हूँ।
"सर अँधेरा जल्दी हो जाता है आजकल सवा चार तक वापस आ जाना नीचे को आप" प्रकाश नेगी जो त्रिलोक जी के सहायक है वो कहते है। 'पूरा नाम ' इन्ही का लिखा क्योंकि इन्होने ही अपना ऐसा नाम बताया और मुझसे पूछा भी। काफी लोगो को लगता है कि उनका कद उनके उपनाम (Surname) से होता है। वो भी ऐसे ही थे शायद !
खैर मैं अकेले चल पड़ता हूँ। आसमान में कुछ बादल घिरे थे। लगभग 800 मीटर ऊपर चढ़ने पर आपके सामने पूरा बुग्याल (Meadows) खुला होता है। मैं आगे चलता जाता हूँ।
अचानक एक अकेले आदमी के दीदार हुए। दोनों मुस्कुराये। " हेलो मैं दीपक "मैंने हाथ बढाकर कहा। 'मैं हिमांशु , गुजरात से " वो भी solo ट्रिप पर था। थोड़ा बातें हुई। "मैं The Himalayan Traveler नाम से ब्लॉग लिखता हूँ।" बातें करते हुए मैंने कहा। "वाह बड़ा अच्छा है" उसने कहा और फिर दोनों 180 डिग्री पर चल दिए।
थोड़ा आगे जाकर दो लोग और मिले। रॉबिन जो दिल्ली से हैं और अभी शिकागो में काम करते है और पियूष जो हल्द्वानी से है। अच्छा लगता है नए लोगो से मिलकर... आप रोज की काम भरी दुनिया से दूर कुछ नया अनुभव करते हैं।
जीरो पॉइंट से लगभग 1 Km नीचे मैं कुछ पत्थरों के बीच जाकर मैं बैठ गया। बैग से पानी की बोतल और poetry की किताब 'अब पहुंची हो तुम' जो की पहाड़ी जीवन पर लिखी कई उम्दा कविताओं का संकलन है जो महेश पुनेठा जी द्वारा रचित हैं। एक्टर पंकज त्रिपाठी वाले ' कोई पहाड़ी कवि...सड़क तुम अब पहुंची हो गाँव ' वाले महेश पुनेठा जी। अपने अभी तक के जीवन में बेहतरीन लोगो में से एक है महेश जी, जिनसे मैं मिला हूँ । एक कविता पाठ में उनसे मिला तबसे जुड़ा हूँ। कुछ कवितायेँ पढ़ी। डायरी में कुछ लिखा...फिर नीचे चल दिया। टेंट साइट से थोड़ा ऊपर था तो मिल गए आदित्य और योगी भाई...
" अभी से क्या करेंगे नीचे जाकर ? चलो ऊपर चलते है। फ्रिस्बी खेलेंगे ऊपर। बात ठीक ही थी तो अब हम तीनो चल दिए ऊपर। आदित्य गोपेश्वर (उत्तराखंड) से है योगी, हरियाणा से। दोनों की 10 साल पुरानी दोस्ती है। दिल्ली विश्वविद्यालय के दिनों से। अभी दोनों कॉर्पोरेट जॉब में हैं।क्योंकि हम सभी हॉस्टलर्स थे और मुझे लगता है कि हॉस्टलर्स के बीच जुड़ना सबसे आसान काम होता है, क्योंकि होस्टल्स में बिना कॉपरेशन के आपका काम चल नहीं सकता है।
मैं जितने भी लोगो से मिला अपने इस ट्रेक पर ,उनमे से एक भी मुझे सरकारी नौकरी वाला नहीं मिला। क्योंकि सरकारी नौकरी वालो की दुनिया नौकरी लगते ही 'सही उम्र में शादी करने' फिर जल्दी बच्चे पैदा करने ,लोन लेकर किसी शहर में मुट्ठी भर ज़मीन खरीदने और मकान बनाने , फिर ताउम्र उसका लोन चुकाने में है। ज़िन्दगी असल मायनों में कॉर्पोरेट के लोग जी रहे है। मैं घाटे या मुनाफे ,सिक्योरिटी या अनसिक्योरिटीन की नहीं 'जीवन जीने' की बात कर रहा हूँ। हो सकता है आप मुझसे इस बारे में इत्तफ़ाक़ न रक्खें ! मैंने मैंने वो लोग ज्यादा ख़ुश और ज़िंदादिल देखे ,महसूस किये।
सनसेट यहाँ से देखने लायक होता है और विंटर लाइन भी खूबसूरत।
अँधेरा होने पर हम नीचे आये इस वादे के साथ कि कल सुबह 4 बजे चलेंगे ऊपर और सनराइज टॉप पर देखेंगे। नीचे पहुंचने पर देखा वहां अलग महफ़िल जमी है। बोनफ़ायर में गाते कुछ और जिंदादिल लोग। वो लखनऊ से थे। मेरी तरह के हिंदी, अंगेजी के साथ दक्षिण भारत का म्यूजिक सुनने वाले। ये अंदाज़ा मुझे उनके स्पीकर में बजते मलयालम फिल्म 'हृदयम' के गाने बजते देखकर लगा। कुछ देर उनसे म्यूजिक को लेकर काफी बातें हुई। और फिर जल्दी ही खाना खाकर मैं सो गया ,लेकिन नींद नहीं आयी...टेंट में 2014 के बाद सो रहा था शायद इसलिए। रात करवट बदलने में ही गुज़री।
सुबह उठा मैं 5:22 पर। फोन लगाया आदि -योगी को और फ़टाफ़ट हम निकले ऊपर को चढ़ाई में। सर पर अपने हेडलैंप बांधे। सबसे आगे मैं, बीच में योगी आखिर में आदि।
सुबह तापमान कम और वायुदाब कम होने से ऊपर चढ़ने में थकान ज्यादा लग रही थी। आखिरकार पहुंचे मिड बुग्याल में। सूर्योदय हुआ नहीं था। आदि ने अपना रिकॉर्डर तो मैंने ट्राइपॉड में अपना फोन हाइपरलैप्स में लगा दिया। लगभग 7 :11 पर सूरज निकला। कमाल का वीडियो शूट हुआ था।
उसके बाद हम चल पड़े जीरो पॉइंट की ओर। लेकिन मेरा दिल खुश किया धूप सेंकने आये snow partridge के झुण्ड ने। हमें देखकर वो मेरे आगे आगे चलने लगे जैसे मुझे रास्ता दिखा रहे हो। उन्हें बर्फ में चलते देखना सुकून देने वाला था। कुछ वीडियो बनाये उनके।
ऊपर पहुंचकर कुछ फोटो लिए। और कविता- 'पहाड़ का जीवन ' का पाठ किया। लेखक मंच का कहना है कि क़िस्सागोई और बज़्मों के लिए मेरी आवाज़ बड़ी मुफ़ीद है। इसी के कारण शायद। सामने जब 180 डिग्री में बर्फ से लदे पहाड़ दिखे तो कविता और खूबसूरत हो जाती है।
उसके बाद हम बढ़ते है नीचे की ओर। वहां नाश्ता तैयार था। चाय पीकर और नाश्ता करके मैं अपना बैग लिए नीचे उतरता हूँ। नीचे से ऊपर चढ़ते राहगीर। "भाई कितना ऊपर है? बर्फ है क्या ऊपर ? कितना टाइम लगेगा ?"
ऐसे ही सबके सवाल। सबको तसल्ली देता मैं। लेकिन खुद से मेरा सवाल," हर आदमी को कितनी जल्दी है मंज़िल तक पहुंचने की !" प्रकृति को कोई महसूस करना ही नहीं चाहता। इतने पेड़ , पक्षी ,बहुत कुछ है रास्तों में देखने को।
यही जीवन का भी है। सबको फटाफट 'सेटल होना' है। जीवन को लोगो ने एक रैट रेस बना दिया है। लेकिन वो कहते है न कि चूहों की दौड़ में आप फर्स्ट भी आ गए तो आप रहेंगे चूहे ही! इंसान बनने के लिए खुद से मिलना बड़ा जरुरी है। बुग्याल में बैठे एक पंक्ति अनायास आ पड़ी मेरे मन में " कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है पर खुद से मिलने के लिए खुद को खोना पड़ता है " अपने आप से मिलने के लिए अपने पुराने 'मैं' को खोना पड़ता है।
आखिरकार नीचे उतरकर मैं परचा वापस कर अपना हेलमेट उठाये विदा लेता हूँ , आदि-योगी से, खलिया द्वार के लोगो से और इस खूबसूरत शहर मुनस्यारी से...कभी किसी से सुना था कुमाउँनी में - "सौ संसार एक मुन्स्यार " है भी हक़ीक़त।
होने को कुछ और जगहें भी है जो वापस आकर अब याद आ रहा है देखनी थी -लाइकेन पार्क। शायद संजीव चतुर्वेदी जैसे अफ़सरों की बदौलत। थामरी कुंड या नंदा देवी टेम्पल भी जा सकते हैं। नीचे शहर और सामने पंचाचूली की श्रेणियाँ।
वापसी में कालामुनि से एक बिस्किट का पैकेट खरीदता हूँ। गिरगाव के पास मिले उन बच्चो के लिए जिनके लिए नहीं था कल कुछ भी मेरे पास। पर आज वो बच्चे नहीं थे। हर बार छूटा हुआ वापस नहीं मिलता...न सफर में,न ज़िन्दगी में... पर ज़िन्दगी चलते रहने का नाम है। ज़िन्दगी जीने का नाम है।
Wow🥳
जवाब देंहटाएंDeepak G. Khalyatop ki trakiilng ke ley Thanks.
जवाब देंहटाएंSir khaliya top journey ki photos or videos ne story ko jiwant kr diya
जवाब देंहटाएं.... Esa lga aapke sath hm b wha gum aaye.
बहुत खूब 🔥🔥🙏
जवाब देंहटाएंAwesome sir 🔥🔥
जवाब देंहटाएंदीपक भाई वहॉ पर के लोगों से द्दुई वार्ता के अधिकतर भाग डालने का प्रयास करें जिससे वहाँ जाने के बारे में रूचि बढ़े और उस क्षेत्र की ज्यादा से ज्यादा जानकारी हो सके।बहुत अच्छा लेख ।अति सुन्दर।
जवाब देंहटाएंSure sir, from next time I'll take this into account.
हटाएंउम्दा यात्रा विर्तान्नत गुरु जी
जवाब देंहटाएंलगा में स्वयं यात्रा में हूँ
जवाब देंहटाएंWah bhai maja agaya
जवाब देंहटाएंThank you so much all for the appreciation and kind words.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन यात्रा व्रतांत
जवाब देंहटाएंशानदार यात्रा वृत्तांत सर
जवाब देंहटाएंBeautiful language and pictures🎈🧡
जवाब देंहटाएंMy hometown 😍
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