Casteism,Caste atrocities and reservation

 

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प्रकाश झा द्वारा निर्देशित फिल्म- आरक्षण का पहला सीन  -नायक ऑटो से उतरकर अपना इंटरव्यू देने जाता है। 

सामने इंटरव्यू लेने तीन लोग बैठे है। उनका पहला सवाल आपका नाम क्या है? "सर दीपक कुमार "

नहीं पूरा नाम बताइये, "सर बस दीपक कुमार " तीनो इंटरव्यू लेने वालो के चेहरे पर हताशा !

जब नायक बताता है कि  वह विश्वविद्यालय का गोल्ड मेडलिस्ट रहा है तो वो तीन कहते है हाँ वो सब छोड़ो अपना पारिवारिक स्टेटस बताओ फिर नायक को जलील किया जाता है। 

    "पूरा नाम बताइये " ये सवाल लगभग हर आदमी से पूछा जाता है खासकर जब आप किसी अच्छे पद पर चुनकर जाते है... ये मुझसे भी अक्सर पूछा जाता है और संयोग वश मेरा नाम भी आरक्षण के नायक जैसा है तो इतना कहते ही सामने वाले के भाव बदल जाते है। अब वो समझ जाते है इन्हे इज्जत नहीं देनी है क्योंकि ज्ञान जैसी चीजें उनकी बपौती है! हमारे विराट धर्म में ऐसी निचली जाति  कहे जाने वालों में अक्ल कहाँ है ? वो तो आंबेडकर जैसा कोई पैदा हो गया वरना इनकी क्या मजाल कि हमारे कंधे से कन्धा मिलकर खड़े हो सकें। उनका दुःख जायज़ है क्योंकि जब एक धर्म ने उनके पैदा होने मात्र से जो एक वैज्ञानिक घटना है , उनकी सबसे निकम्मी औलाद को भी  सर्वोच्च पद पर बिठा दिया है तो कोई तथाकथित निचली जाति  वाला विद्वान उनसे बेहतर कैसे हो सकता है ?

    हालिया दौर में हमने राजस्थान में एक शिक्षक द्वारा एक बच्चे की पिटाई के बाद मृत्यु की खबर पढ़ी है। कारण उस सवर्ण (निजी तौर पर  सबसे ख़राब शब्दों में,मैं  इस शब्द को मानता हूँ )  शिक्षक के मटके को छू  लेना। वर्ष  2016  में बागेश्वर के कांडा में एक गाँव में एक शिक्षक द्वारा चक्की में आटा छू लेने पर एक आदमी का गला काट दिया गया। हाल ही में एक पार्टी के विधायक का चुनाव लड़े एक निचली जाति  के युवक की हत्या केवल इसलिए कर दी गयी  क्योंकि उनकी बेटी  ने उस लड़के से विवाह कर लिया था। रोहित वेमुला की आत्महत्या हो या डॉक्टर पायल तड़वी की आत्महत्या ! यह तो आम बात है पर एक बॉलीवुड का नायक आत्महत्या कर ले तो उनका इलज़ाम नेपोटिस्म है पर रोहित और पायल की आत्महत्या के लिए जातिवाद नहीं?

    चम्पावत में हमने मध्यान्ह भोजन में सुनीता देवी का प्रकरण देखा जिसमे सवर्ण बच्चो द्वारा खाना  खाने से मना कर दिया गया क्योंकि तथाकथित सवर्ण बच्चो को  उनके मानसिक विकास के लिए माँ के दूध के साथ जातिवाद का होर्लिक्स भी रोजाना दिया जाता है। 

    उपरोक्त घटनाओ पर भी तथाकथित सवर्णो ने ये बात कही कि  कारण कुछ  होगा  हत्यारे की मानसिक  स्थिति ठीक नहीं होगी वरना  हमारे विराट धर्म में तो ऐसा कुछ है ही नहीं... वो तो Self proclaimed  महान हुआ !  

      ऐसी एक नहीं कई घटनाएं रोज घटती है जिसपर आरक्षण  के  खिलाफ रोज मीम पोस्ट करने वालों के आँखों में  मोतियाबिंद हो जाता है और कानों में शायद भूसा भर जाता है। 

    वर्ष 1998  में कक्षा 3  की बात है एक नयी मैडम स्कूल में आयी और उन्होंने सबसे परिचय पूछा तो एक लड़के ने अपना नाम बताया........ तो उन मोहतरमा ने जवाब दिया,"अरे वाह आप तो ठाकुरों में सबसे ऊँचे हुए !" उस मैडम को शायद उस दिन ये सुनकर मोक्ष प्राप्त हो गया था। पर उन्होंने ये नहीं सोचा होगा कि उसने उस बच्चे के अंदर वो जातीय घमंड और बाकी निचले तबके के बच्चों में एक हीनभावना भर दी है। क्या खुद को तथाकथित सवर्ण कहने वाले इस पीड़ा  को समझ सकते है? 

मेरी एक मुंहबोली बहन (तथाकथित सवर्ण) ने एक  पोस्ट में indirectly लिखा कि  आरक्षण के कारण कमअक्ल लोग नौकरियों में आ रहे है और इससे Quality ख़राब होती है। जब मैंने पूछा किस आधार या रिपोर्ट के आधार पर वह ये बात कह रही है ?तो उसके पास आधार केवल अपने निकम्मेपन और परीक्षा में असफल होने के इलावा आरक्षण को दोष देने के इलावा कुछ था नहीं। 

    Elsevier  में 2014 में प्रकाशित  Ashwini Deshpande  और Thomos E Weisskopf की भारतीय रेलवे पर  Does affirmative action affects productivity? नामक रिपोर्ट यह बतलाती है कि आरक्षण से quality कम नहीं होती बल्कि बढ़ती ही है। 

    वर्षो पहले NCERT  की एक  रिपोर्ट में मैंने पढ़ा था कैसे तथाकथित सवर्ण शिक्षक दलित बच्चों को भरसक गिराने का प्रयास करते है। यही बात नवीन जोशी जी द्वारा रचित टिकटशुदा रुक्का में दीवान के साथ हम भेदभाव में  देखते है। क्योंकि नवीन जी रिपोर्टर रहे है इसलिए मानता हूँ कि इस पात्र की प्रेरणा कहीं न कहीं वास्तविक हो सकती है। 

वर्ष 2021 में इंडियन एक्सप्रेस में छपी अनन्या भट्टाचार्य की रिपोर्ट बताती  है कैसे IITs  जैसे संस्थानों में जातिवाद की जड़ें बहुत गहरी है और प्रोफेसर्स द्वारा इन बच्चों के साथ भेदभाव किया जाता है। 

एक शहर के सरकारी महाविद्यालय में विभागों में प्रोफेसर्स की सूची पर ध्यान  देने पर मैंने पाया कि  हर विभाग में 80  प्रतिशत प्रोफेसर्स  एक ही जाति से  ताल्लुक रखते है इसका क्या अर्थ है? बाकी लोग काबिल नहीं है या फिर उनकी पहुंच नहीं है कि वो मुख्यालय के कॉलेज में आ पाएं। 

पूर्व की सेवा में, मेरे Class II  लेवल की नौकरी पर चयनित होने पर भी  पिथौरागढ़ जैसे  पढ़े लिखे शहर में रूम कितनी मुश्किलों के बाद मिला मैं ही जानता हूँ। ये सब पीड़ाएं क्या आरक्षण के खिलाफ बोलने वालों को नहीं दिखती?

    सरकारी बैंको को  एनपीए में धकेलने वालों सूची में कितने दलितों  का नाम आपने पढ़ा ? शहरों में कितनी दुकाने आपने दलितों की देखी है? संपत्ति  वितरण में शहरी और ग्रामीण में क्या अनुपात पर आपने ध्यान दिया है?

National  Crime  record  bureau (NCRB) 2020  का डाटा बतलाता  है कि दलितों पर अत्याचारों में 9.4  फ़ीसदी  इज़ाफ़ा हुआ है जिनमे उत्तराखंड का नाम भी है। 

अब खुद को सनातनी कहने में गर्व महसूस करने वालों में,मैं देखता हूँ कि वो  समाज के तथाकथित ऊपरी वर्णों  आते हैं। तो जब तुम्हे सारे विशेषाधिकार ख़ैरात में मिल गए तो आपको उसमे कमी या तो दिखेगी नहीं या आप मानेंगे नहीं!

मैं अक्सर अपने साथियों से कहता हूँ कि  आप मेरे सामने 10  बच्चे लाइए मैं उनमे से  तथाकथित निचली जाति के  छात्र पहचान कर अलग कर दूंगा। कैसे? केवल उनके low  confidence  को देखकर। ये  low  confidence उनको इस समाज  के तथाकथित सवर्ण लोगों , विद्वान शिक्षकों और इस महान  धर्म  की उस मजबूत पर खोखली नींव ने तोहफ़े में दिया  है। 

मेरे ही तथाकथित सवर्णो के घरों में जब भेदभाव किया जाता है तो वो उसे ये कहकर जायज़ ठहरा देते है कि क्या करें यार उन्होंने देखा ही ऐसा हुआ ! वो कैसे ऐसा स्वीकार करें रोटी बेटी का सम्बन्ध ? आखिर उनकी भी तो समाज में इज़्ज़त हुई !

ये ऐसा विषय है जिसपर मेरे पास डाटा से ज्यादा अनुभव है। और यही कहूंगा आप चाहे कितना भी दोगलापन दिखा लें पर लोहे का स्वाद वही घोडा जानता है जिसके मुंह में लगाम होती है। 

मैं जानता हूँ तथाकथित सवर्णो के पास बिना डेटा के कुतर्कों की भरमार होगी मेरे इस लेख के खिलाफ पर उनसे निवेदन है Newslaundary के लेख "यदि आरक्षण न होता तो पांडे जी का बेटा आईएएस बन जाता ?" जरूर पढ़ना चाहिए। 

References 

https://www.researchgate.net/publication/254396612_Affirmative_Action_and_Productivity_in_the_Indian_Railways

https://timesofindia.indiatimes.com/city/dehradun/in-village-where-dalit-man-killed-for-touching-flour-upper-caste-residents-pitch-in-with-support-to-his-family/articleshow/54768621.cms

https://qz.com/india/2001747/iit-kharagpur-professor-abusing-sc-st-students-is-not-a-one-off/

https://scroll.in/latest/1029176/sc-st-doctors-and-students-face-discrimination-at-delhi-aiims-alleges-parliamentary-panel

https://www.newindianexpress.com/nation/2021/sep/16/atrocities-against-scs-and-sts-increased-in-2020-ncrb-report-2359402.html

https://hindi.newslaundry.com/2018/04/04/myth-or-reality-reservation-is-cause-of-job-security



    





टिप्पणियाँ

  1. सर आपने जो लिखा है वह बिलकुल सही है क्योंकि आपने जो भी लिखा है उसमें जो तथ्य दिये हैं वो बिल्कुल सही है।

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  2. You have depicted the actual condition of the society .It is not important for them how talented you are . They will only judge you on the basis of your caste . If someone is in good position, they think it is only because of reservation . There is no value of talent if you belongs to Dalit and deprived communities.

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  3. Very nice presentation of caste system, atrocities ans reservation.

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  4. मुझे आज भी याद है जब B.Sc-2 वर्ष के प्रैक्टिकल में पापा का नाम पढ़कर प्रोफेसर साहब का यू कहना"अरे तुम्हें नंबरों की क्या आवश्यकता है।"

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    1. जब में पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही थी हल्द्वानी जैसे शहर हमको रूम बड़ी मुश्किल से मिला था, पहले लोग हां कहते ,फिर पूरा नाम पूछ कर ना कर देते थे,इतना ही नहीं एक बार हमारे मुहल्ले की महिला ने अपनी पानी की भरी गागर सिर्फ इसलिए खाली की क्योंकि उसके पास से होकर गुजरी थी ,
      सिर्फ इतना ही नहीं और भी बहुत कुछ होता है..

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  5. मैं जानता हूँ इसीलिए सभी opressed लोग इसे ख़ुद से relate कर पाये है….शब्द मेरे है पर भावनाएँ सभी है…बुरा लगता है पर इस बात से ज़्यादा कोफ़्त होती है कि हमारे दोस्त ही अपने घरों में सुधार नही कर पा रहे या करना नही चाहते

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