जितनी मिट्टी, उतना सोना- किताब समीक्षा
जितनी मिट्टी, उतना सोना…लपूझन्ना और तारीख़ में औरत सरीखी किताबों के लेखक अशोक पाण्डे जी की किताब है, जिसे हिन्द युग्म ने प्रकाशित किया है और क़ीमत 249 रुपये मात्र है।( किताब के डेटा के हिसाब से मात्र शब्द जानबूझकर लगाया है)
धारचूला में तीनों घाटियों- दारमा, व्यास और चौदास में रं समाज पर केंद्रित यह किताब, बहुत तफ़सील से नहीं पर अच्छे ख़ासे ब्यौरे के साथ आपको इस समाज की जीवनशैली, संस्कृति, पूजा पद्धतियों,ढेरों मिथकों,उनकी कहानियों से रूबरू करवाती है।
किताब पढ़ने से पहले मेरी ये राय है, आख़िरी पन्ने में हमारे मित्र विनोद उप्रेती जी द्वारा बनाये गये इन तीनों घाटियों के नक़्शे को ज़रूर देख लें, इससे लगभग 25 साल पहले की अकादमिक यात्रा पर निकलें, अशोक और ऑस्ट्रियन शोधार्थी सबीने के साथ आप ख़ुद को भी कदम दर कदम रास्तों पर पायेंगे।
अशोक जी का लेखन कितना आसान और मनोरंजक होता है ये लपूझन्ना पढ़े पाठक बख़ूबी जानते है! जिन्हें नहीं पता वो भी ये समझ लें, कि आपका कोई बढ़िया दोस्त आपको कहीं का कोई क़िस्सा सुना रहा है।
ये किताब आपको पिथौरागढ़ में धारचूला से आगे पहले दारमा घाटी यानी, दर,सोबला, नागलिंग , दाँतू होते हुए सिन-ला दर्रे को पार करते हुए जॉलिंगकोंग के आगे व्यास घाटी के गाँवों- गुंजी, कुटी, गर्ब्यांग आदि से चौदास में- सिरदंग, सिरखा, पांगू आदि पहुँचते है।
किताब में बेतहाशा जो शब्द आपके आगे नमूदार होगा वो है- च्यकती यानी घरों में स्वनिर्मित,मोटे अनाज की शराब। होने को व्यास घाटी में आने पर सिरदांग में सेब से बनी च्यकती का ज़िक्र है जिसके बारे में अशोक लिखते है कि सिरदांग की च्यकती को विश्व की सर्वश्रेष्ठ शराबों में रखा जा सकता है (मॉल्ट को समझने वाले ग्लेनफ़िडिख से तुलना कर सकते है)।पर्यावरणीय अनुकूलन के हिसाब से रं समाज के आम जीवन में च्यकती का ख़ासा रोल है, जैसे स्कॉटलैंड में मॉल्ट व्हिस्की या रुस में वोदका का! यहाँ शराब को आदमी-औरत के चरित्र से जोड़कर नहीं देखा जाता जैसा आम भारतीय समाज में धारणा है, जो इस समाज के प्रगतिशीलता को भी दिखाती है।
रं समाज यूँ तो अपने मिथकों से भरा हूँ है, तिब्बती लामाओं से लेकर ढेरों शक्ति-चमत्कारों की कहानी आपको हाल में आयी ‘कन्नड़ फ़िल्म कंतारा’ की याद दिला देगी।ये पूरा समाज बहुत सारे देवी देवता जैसे नमज्यूंग ह्या, पानी और समृद्धि की देवी न्युंगटांग, ह्या तादंग और भी बहुत सारे अपने देवी-देवताओं से धार्मिक रूप से जुड़ा हुआ है। ह्या का अर्थ बड़े भाई जैसा है! व्यास घाटी का नाम वेदव्यास और कुटी का नाम कुंती से आदि उस समाज को स्वयं का पाण्डवों से जुड़ाव बतलाता है।सभी सभ्यताओं का महाकाव्यों से जुड़ाव हम संपूर्ण भारत में देखते है।पूरी किताब मिथक कथाओं से लबरेज़ है,जिन्हें पढ़ना एक मज़ेदार अनुभव है, और ये कहानियाँ पीढ़ी दर पीढ़ी से चली आ रही है।
बहुत सारी प्रथाएँ आपको रं समाज की प्रगतिशीलता का बोध कराती है उदाहरण के लिए-झुमखो, जिसमें किसी भी अनुष्ठान में पूरा समाज खर्च उठाता है!दूसरा सारी प्रथाएँ प्रकृति से कहीं न कहीं जुड़ी हुई है। ऐसी बहुत सी बातें आप किताब में जानेंगे और रं समाज की ख़ूबसूरती को महसूस करेंगे, उस ढाँचे को जानेंगे जिसपर ये समाज आज भी उत्तराखंड और देश में क्यों अपनी विशिष्ट पहचान रखता है!
208 पन्नो की किताब, भाषा बड़ी सहज होने से आप सिंगल रीडिंग में इसे पूरी पढ़ जाते है।रं समाज और उनकी संस्कृति को जानने और कुमाऊँ के इस क्षेत्र के सामान्य ज्ञान को दुरुस्त करने के लिए भी आप इस किताब को पढ़ सकते है। आपका वक़्त और पैसा कुछ भी ज़ाया नहीं जाएगा, इसमें मैं शर्त लगा सकता हूँ।
बहुत ही उम्दा ओर सटीक समीक्षा।
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