कीड़ाजड़ी(अनिल यादव)- Book Review
कीड़ाजड़ी लगभग एक महीने पहले प्रकाशित हुई अनिल यादव जी की किताब है।अनिल जी का परिचय ‘वह भी कोई देस है महराज’ से भी लोगो को हो सकता है।
यह एक ट्रैवलॉग है, जिसमें लेखक पिंडर घाटी में जैकुनी और खाती में रहते हुए वहाँ आम लोगो के जीवन, जीवन शैली, उनकी संस्कृति, पर्यटन से लेकर अपने अनुभवों को साझा करते दिखते है।
क्योंकि मैं ख़ुद इसी साल जून में पिंडारी ग्लेशियर गया था इसलिए इसे पढ़ते वक़्त मेरे दिमाग़ में वो जगह, लोग, वहाँ का कठोर जीवन और सामने दिखती ‘मैकतोली का धवल शिखर’ मेरे दिमाग़ में अपनी स्पष्ट छवि बनाए था।
एक एनजीओ के द्वारा वहाँ बाक़ी अन्य सदस्यों के साथ लेखक का वहाँ आना, उनके बीच अच्छा ख़ासा वक़्त बिताना ख़ासकर पुराने लोगो, नई पीढ़ी और युवाओं,जो पोर्टर के साथ साथ कीड़ाजड़ी निकालने का काम भी बख़ूबी करते है किताब में अच्छा ख़ासा स्पेस रखती है।
अंकित 190 पन्नों में पहली बार कीड़ाजड़ी शब्द पेज संख्या 102 पर आता है, जिसके बाद उच्च हिमालयी क्षेत्रों में उसका पैदा होना,उसके पीछे का विज्ञान,बड़ा होना और उसका दोहन…दोहन के लिए क्षेत्रों का बँटवारा, कीड़ाजड़ी का पूरा इतिहास, कैसे यह तिब्बती चिकित्सा पद्धति से यह चीन के कोच चेन मा जुनरेन से होते हुए यूरोप में पहुँचता है, वो पढ़ना काफ़ी दिलचस्प है।
गाँव के लोगो, ख़ासकर जो पोर्टर और गाइड का काम करते है उनके कठिन जीवन और सुंदरढूँगा और मैकतोली पर्वतारोहण के दौरान हुए हादसों का वर्णन( जो की पोर्टरों और गाइड्स ने ख़ुद सुनाये) आपको एक सदमे में सा ले जा छोड़ता है। बेसिक और एडवांस्ड पर्वतारोहण के कोर्स कैसे अनुभवों के आगे घुटने टेक देते है, उनकी कहानियों से ये सोच कर विस्मित होता हूँ। मैकतोली का धवल शिखर काफ़ी बार चर्चा के बीच आता है, क्योंकि जैकुनी से वो सामने दिखता है। मैं भी जब गया था पूछा था ये किसी जानवर की पीठ जैसे कौनसी पहाड़ी है?
खाती गाँव-पिंडारी ट्रेक का आख़िरी गाँव |
Aapka book ka review logo ko book pdne k sathe sath vha jane k liye b motivate kr rha h☺
जवाब देंहटाएंसटीक रिव्यु। 80 पेज में पहुच गया हूं जल्द ही पूरी हो जाएगी।
जवाब देंहटाएंKhoobsurat review!
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