Lakhudiyar Caves- A Paleolithic age Caves In AlmoraUttarakhand
होने को ASI के दायरे में ये जगह है पर ख़्याल रखने वाला कोई दिखता नहीं!
गुजरते हुए, जब लखुडियार की ओर से आते हुए एक परिवार से मैंने पूछा, कितनी दूरी पर है? मैं जानता था पर बस अनायास ये मुँह से निकल पड़ा तो जवाब था, “पता नहीं भाईसाहब।”
जबकि ये गुफा भित्तिचित्र( Cave rock paintings) सड़क से महज़ कुछ कदमों की दूरी पर है!
वो परिवार उसी के ऊपर बैठकर शायद पिकनिक मनाकर आ रहा था।लेकिन उन चित्रों से मुख़ातिब नही था।पुरा-पाषाण(paleolithic) दौर में आदिमानव वहाँ रहने की तलाश में गया होगा, आधुनिक दौर में लोग मौजमस्ती के लिए।
भारत में इतिहास की किताबों में हम भीमबेटका (मध्य प्रदेश) में भित्ति चित्रों के बारे में पढ़ा है , कक्षा 11 की NCERT की Fine Arts की किताब में लखुडियार का ज़िक्र है। पर अल्मोडा के लोगो को भी इसके बारे में ज़्यादा पता या रुचि नहीं है।
बिल्कुल ऐसे ही भित्ति चित्र आपको अल्मोडा में ही, उदयशंकर नाट्य अकादमी के पास भी दिख जाएँगे, जिनकी पहचान ख़ाली पड़ी जगह में पड़े पत्थरों से ज़्यादा कुछ नहीं है।
जब बात संस्कृति और उसे सहेजने की आती है, तो मैं देखता हूँ कि आर्कियोलॉजिकल चीजों से जुड़ाव या लोगो का ध्यान तब जाता है जब उसमे कोई धार्मिक बिंब दिखे! क्योंकि हमारा नज़रिया ही ऐसा बन चुका है।
ये भित्ति चित्र उस दौर के है, जब इंसान ने कोई भी भाषा नहीं सीखी थी और लिपि चित्रात्मक(Pictorial) हुआ करती थी।यानी ये चित्र सिंधु सभ्यता से भी पूर्व के है!10000 साल से भी पुराने है।तब मनुष्य ने अपने मनोभावों को दिखाने के लिए शायद चित्रों का सहारा लिया होगा। कलायें ऐसे ही प्रकाश में आती है।
आज के दौर के मशहूर इतिहासकार युवाल नोवा हरारी की किताब ‘sapiens’ के पहले पाठ संज्ञानात्मक क्रांति के मुखपृष्ठ पर एक चित्र है जो दक्षिण फ़्रांस की शोवे-पों-द-अख गुफा में लगभग 30000 साल पहले एक मनुष्य के हाथ की छाप है।शायद वो कहना चाहता था, “ मैं यहाँ था!” लखुडियार में अपनी कलाकारी दिखाते वक़्त तब के इंसान ज़हन में भी यही बात होगी, की देखने वालों! हम यहाँ थे कभी।
इसलिए आप कभी अल्मोडा से अगर पिथौरागढ़ की ओर बढ़े तो 10 मिनट जाकर इस स्थान को देखें ज़रूर…इसी को कहते है विरासत!
वीडियो के लिये नीचे दिये लिंक पर जा सकते हैं-
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