Savitribai Phule: India’s First Female Teacher

 


जिस उम्र में आज लड़कियाँ अपनी पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पाती, उस उम्र में सावित्रीबाई फुले ने ब्राह्मणवादी सोच के घोर विरोध के बावजूद, बालिकाओं को पढ़ाना शुरू कर दिया था।

  “ हम भी दरिया है हमें अपना हुनर मालूम है…जिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे,रास्ता हो जाएगा” बशीर बद्र जी ने ये नज़्म, क्या सोच के लिखी होगी, कह नहीं सकता…पर हर दौर में सावित्रीबाई जैसी शख़्सियतों के लिए ये मौजूँ है।

  हमारे घरों में कपोल कल्पित देवियों की असंख्य तस्वीरे दीवारों पर दस्तक देती है, पर सही मायनों में जिस महिला की पूजा की जानी चाहिए उसका नाम तक आज महिलायें और छात्रायें तक नहीं जानती है।उसका एक कारण यह कि एक तो इतिहास ने महिलाओं को कभी बतौर नायक, एक तख़्त देना गवारा समझा नहीं…ऊपर से यदि वो निचले तबके से आती हो तो फिर तो क्या ही कहें!

  3 जनवरी 1831 को जन्मी इस महिला का महज़ 9 साल की उम्र में सावित्रीबाई फुले का विवाह, ज्योतिबाफुले से हुआ। वही ज्योतिबा जिन्हें डॉ अंबेडकर ने अपना गुरु माना और गुलामगिरि जैसी क़िताब लिखी। क्योंकि ज्योतिबा समझ चुके थे कि आगे बढ़ने का रास्ता केवल शिक्षा की सड़क से होकर जाएगा…तो उन्होंने शादी के बाद अपनी बीवी को पढ़ाना शुरू किया। जब ज्योतिबा के पिता से उस समय के ‘धर्म के ठेकेदारों’ ने इस तबके के पढ़ने लिखने को जघन्य अपराध घोषित कर दिया तो, बाप ने घर से इस दंपत्ति को निकाल दिया…तब आसरा मिला, उस्मान शेख़ और फ़ातिमा शेख़ जैसे लोगो का!

फ़ातिमा के घर पर ही रहकर पढ़ाई शुरू की और बाद में देश में ‘महिलाओं के लिए पहला स्कूल खोला गया और पहली शिक्षिका बनी सावित्री बाई फुले’ । इस स्कूल में शुरुआत केवल 9 बच्चों से हुई, जिसमें महार जाति की बालिकाएँ पढ़ने आती थी।धर्म के ठेकेदारों को इससे ज़्यादा तकलीफ़ किस बात से हो सकती थी! एक तो निचला तबका ख़ुद पढ़े और पढ़ाने की जुर्रत करे।जब लोग आपसे तर्क में हार जाते है फिर वो आपको निजी तौर पर पहले मानसिक और फिर शारीरिक हिंसा से हराने की कोशिश करते हैं।

सावित्री के साथ भी यही हुआ…जब वो पढ़ाने जाती, तो ब्राह्मणवादी सोच उन के ऊपर फब्तियाँ कसते…बाद में यह सिलसिला पत्थर और गोबर फेंकने तक शुरू हो गया…एक समय सावित्रीबाई ने सोचा छोड़ देती हूँ  पढ़ाना अब, पर ज्योतिबा जैसा हमसफ़र साथ था! ज्योतिबा ने दो साड़ियाँ देकर स्कूल भेजना शुरू किया ताकि गोबर फेंकने पर भी दूसरी साड़ी से काम चलाया जा सके। 

सावित्रीबाई का स्कूल उस समय पुणे के सबसे अच्छे स्कूलों में था, और स्कूलों में धर्म की पढ़ाई के बरक़्स सावित्री के स्कूल में गणित,विज्ञान जैसी पढ़ाई करवायी जाती थी!

  उस दौर में क्योंकि समाज के क़ानून मनुस्मृति जैसी किताबों से तय होते थे इसलिए विधवाओं के लिए सर मुँड़ाकर और जितना भद्दा हो सके उतना दिखो ताकि कोई पुरुष उनपर निगाह तक न ले जाये। हाँ यौन शोषण के लिए इन महिलाओं का भरपूर इस्तेमाल किया जाता था, जैसा कि हम दीपा मेहता की फ़िल्म ‘Water’में देख चुके है। पर ऐसी फ़िल्में बैन कर दी जाती है, ताकि लोग अपने कर्मकांडों को स्वयंभू समझते रहें और अपनी संस्कृति पर गर्व करते रहें।

बाद में सावित्री और ज्योतिबा ने ऐसी महिलाओं के लिए नारी निकेतन सरीखी जगहों की भी व्यवस्था की।अपने पुत्र यशवंत का अंतरजातीय विवाह तक करवाया जो शायद तब हिंदुस्तान का पहला अंतरजातीय विवाह रहा हो!

यहाँ तक पति ज्योतिबा की मृत्यु के बाद चिता को मुखाग्नि तक सावित्री ने ख़ुद दी।

मुझे अफ़सोस होता है, कि आजकल छात्र-छात्रा इस महिला को जानते तक नहीं है।जिसने उस दौर में अपना जीवन महिलाओं के लिये समर्पित कर दिया।अब शिक्षक ख़ुद ही जब सावित्रीबाई जैसी महिलाओं से परिचित नहीं होंगे तो वो बतायेंगे भी क्या? 


    

टिप्पणियाँ

  1. हमें याद रखना चाहिए की उस दौर में उन्होंने एक बेहतर भविष्य की कामना करते हुए हार नहीं मानी, हम कोशिश करेंगे की हम इस बेहद मॉडर्न समाज को एक अच्छी दिशा दे पाए।खुद पढ़ कर और दूसरो को पढ़ा कर। सादर नमन, भारत की पहली शिक्षिका को और उनके जज्बे को।😊

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  2. Unhone women education ki importance us samay samjai... Jab samaj ne unhein support b nhi kiya.
    Education k karan hi hm gender equality ki bat aaj kr pa rhe h sabhi... Shiksha hi ek matra madhyam h smaj ki soch ko bdlne ka

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