Kausani: Beyond the majestic Himalayas

 

चित्र: euttranchal.com
गांधी जी के द्वारा 'भारत का स्विट्ज़रलैंड' कहा गया ये नगर कौसानी यूँ तो सामने दिखती कत्यूर घाटी एवं सामने दृश्य हिमालयी चोटियों के लिए ज़्यादा ख़ास जगह रखता है, पर कुछ और भी है जो इसे और ज़्यादा अद्भुत बनाता है। बारी बारी से तीनों पर बात करते है।

1. लक्ष्मी आश्रम अथवा सरला आश्रम



इसका मूल नाम कस्तूरबा महिला उत्थान मण्डल है परंतु यह लक्ष्मी आश्रम या सरला आश्रम के नाम से ज़्यादा जाना जाता है।इंटरनेट से प्राप्त सूचना मिलने पर पता चला कि, शुरुआत में यहाँ 4 कमरों में जिस स्कूल की शुरुआत हुई उसके लिए ज़मीन एक लोकल सिविल सर्विस ऑफिसर ने मुहैया कराई, जिनकी पत्नी का नाम लक्ष्मी था इसलिए यह लक्ष्मी आश्रम कहा गया, पर कालांतर में 5 दिसंबर 1946 को सरला बहन( मूल नाम Catherine Mary Heilemann) द्वारा जब यहाँ कस्तूरबा महिला उत्थान मण्डल की स्थापना की गई तब से लोग इसे सरला आश्रम के नाम से भी जानते है।मुख्य कौसानी बाज़ार से लगभग 200-300 मी० की दूरी पर जंगल के बीच सुरम्य स्थान पर यह स्थित है।



सरला बहन, का जन्म 1901 में लंदन में हुआ। उनकी अपनी पढ़ाई लिखाई लंदन में ही हुई, बाक़ायदा उनके स्कूल के सर्टिफिकेट आप कौसानी में स्थित सरला संग्रहालय में देख सकते है, और उनकी प्रोग्रेस रिपोर्ट भी।1927 में लंदन में भारतीय विद्यार्थियों से गांधी जी को जाना और 1929 में भारत आने का निर्णय और 1932 में भारत आ गई।1941 में सोमेश्वर(उत्तराखण्ड) में चनौदा, गांधी आश्रम पहुँची,  और अख़िरकार 5 दिसंबर 1946 से कस्तूरबा महिला उत्थान मंडल की शुरुआत।अपना सारा जीवन गांधी जी के आदर्शों पर चलते हुए, बिताया और 1982 में उनका निधन हो गया।
अगर लक्ष्मी आश्रम की बात करूँ तो यहाँ पर वर्तमान में लगभग 40-45 बालिकाएँ पढ़ती है। धीरज जी, जो यहाँ का एकाउंट्स का काम देखते है; बताते है," यहाँ सर्वधर्म संभाव की नीति पर कार्य होता है।बच्चे और माताएँ मिलकर ख़ाना बनाती है।अलग अलग लोग अपने हिसाब से विषय पढ़ाते है।कभी कभी कुछ मेहमान जैसे आजकल क्लाइव जो इंग्लैंड से आये है English पढ़ा देते है।कुछ लोग बच्चों को स्पॉन्सर करते है तो कुछ लोग धन या कुछ खाद्यान्न आदि भी डोनेट करते है।आश्रम में गाय भी पाली गई है जिनके प्रतिमाह दूध आदि का डेटा बालिकाएँ ख़ुद मैनेज करती है और उगने वाली साग-सब्ज़ी का भी।दिन में एक बजे प्रार्थना होती है, और बुनाई कताई, क्राफ्ट आदि जो गांधी जी की बुनियादी शिक्षा अथवा नयी तालीम है, उसपर कार्य होता है" अप्रैल माह में यहाँ लड़कियों के एडमिशन होते है।



अभी यहाँ की संचालक राधा बहन है, जो नही मौजूद थी तो मैं नहीं मिल पाया उनसे और ना डेविड जी से जो शायद 50 वर्ष से वहाँ रह रहे है, मुझे इसका अफ़सोस है।बालिकाएँ अपनी बुनाई के प्रशिक्षण में व्यस्त थी इसलिए उनसे बातचीत भी नहीं हो पायी।पर इतनी सुंदर जगह में वहाँ माताओं और बहनों ने जितना अच्छा वातावरण तैयार किया है उसकी जितनी तारीफ़ की जाये कम है।बाद में गीता जी से मिलकर कुछ तुलसी ( basil)  और राधा जी द्वारा लिखी एक किताब ख़रीदी। रूई कातने की लकड़ी की मशीन, आटा चक्की और मौसम प्रयोगशाला भी वहाँ मौजूद है, रोज़ तापमान रिकॉर्ड किया जाता है।रूई कातने और दन इत्यादि बनाने की मशीन(हैंडलूम) भी दिखी पर गीता जी कहती है कि, बाज़ार में जब लोगो को कम क़ीमत पर मशीन का सामान मिल रहा है,तो लोग यहाँ के बुने सामान को कम प्राथिमकता देते है।आपसी सहयोग के साथ जीने का एक बेहतरीन उदाहरण है लक्ष्मी आश्रम या सरला आश्रम।
लक्ष्मी आश्रम की ही एक अन्य शाखा, धरमघर में भी है, जहां हिमदर्शन कुटीर है।

2. पंत संग्रहालय या पंतवीथिका
सुमित्रानंदन पंत छायावाद के कवि रहे जिनका जन्म कौसानी में ही हुआ।वर्ष 1968 में हिंदी काव्य संग्रह चिदम्बरा के लिए ज्ञानपीठ पुरुस्कार से सम्मानित किए है, जो की हिंदी भाषा में प्रथम बार किसी साहित्यकार को दिया गया था।
कौसानी बाज़ार से महज़ 20 मीo दूरी पर इनके पुराने घर को ही संग्रहालय के रूप में विकसित किया जा रहा है। फ़िलहाल उनकी मृत्यु(1977) के पश्चात बनाये गये घर में उनकी पुस्तकें एवं अन्य संग्रह, उनकी चारपाई, कुर्सी टेबल, एक अटैची एक वेस्टकोट और कोट संजो कर रखा हुआ है। केयरटेकर से पूछकर मैंने एक फोटो उतार ली, इसके एहतियादन कि मैं चारपाई और कुर्सी पर ना बैठूँ।ख़ैर इतनी मेरी जुर्रत भी नहीं कि मैं ऐसा आपराधिक कदम उठाता!

3. अनासक्ति आश्रम 
वर्ष 1915 में दक्षिण अफ़्रीका से वापस भारत आने के बाद जब गांधी जी ने भारत भ्रमण कि निर्णय किया, उसी क्रम में वर्ष 1929 में वे कौसानी आये। थकान मिटाने के उद्दयेश्य से चाय बाग़ान मलिक के अतिथि गृह में रुके और यहाँ से दिखती हिमालय की चोटियों से विस्मृत हुए बिना नहीं रह पाये, जैसा कि हर पर्यटक होता है।14 दिन यहाँ निवास के दौरान उन्होंने गीता पर टीका (समीक्षा) लिखी।


अनासक्ति आश्रम में प्रार्थना कक्ष है, जिसमें गांधी जी की दुर्लभ तस्वीरों का बेहद अद्भुत संकलन है।जिसमे दक्षिण अफ़्रीका के फ़ीनिक्स आश्रम से लेकर, आज़ादी के बाद नोआखली में दंगों के बाद रोते हुए लोगो के बीच तक की उनकी तस्वीरों का संकलन है।अनासक्ति आश्रम से ही हिमालय की चोटियों के सबसे सुंदर दर्शन होते है।बग़ल में ही एक खादी की दुकान भी थी, जिसके संचालक उस समय उपलब्ध नहीं थे, पिछली दफ़ा उनसे मिला था।
कौसानी हमेशा पर्यटकों के बीच, हिमालय की रमणीक चोटियों, चाय बागानों, होटल और कॉटेज़ के लिए अपनी एक ख़ास, पहचान रखता है।अगर आप ऐतिहासिक स्थानों में भी दिलचस्पी रखते है, गांधी और गांधी के विचारों को आज भी जीवंत देखना चाहते है, तो लक्ष्मी आश्रम या सरला आश्रम के कर्मचारियों, बालिकाओं और वहाँ के रहन सहन से वाक़िफ़ होकर आप जानेंगे कि, 'गांधी'  एक विचार है जो कभी मरते नहीं, शाश्वत रहते है।


टिप्पणियाँ

  1. Jgh ki khashiyat use special bna deti h👏👏

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  2. ग्रामीण परिवेश में इन ऐतिहासिक स्थल व स्त्रियों के जीवनशैली का ताना बाना का सुंदर चित्रण।

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