Privilege

 

Film: The boy in the striped Pajamas


आख़िर साहित्य या सिनेमा का मक़सद है क्या? मनोरंजन, सूचना या और भी कुछ?

मुझे लगता है सामाजिक बदलाव प्रत्यक्ष ना सही पर परोक्ष रूप से इसका एक मक़सद होगा या होना चाहिए। हाल में मैंने जो फ़िल्म देखी वो थी - हॉलीवुड कि फ़िल्म The boy in the striped Pajamas  जो कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान हुए Holocaust पर आधारित है और एक ही उम्र के (8 साल) दो बच्चो (ब्रूनो और श्मूल) की स्थिति को बयाँ करती है।उस फ़िल्म को देखने के बाद ही कुछ विचार मन में कौंधे।

क्या समाज में privilege वर्ग को कभी महसूस होता भी है कि वो privilege स्थिति में है? एक देश में जैसे जिस धर्म की majority हो उसे कभी ये समझ नहीं आता वो minority से privilege है। एक धर्म विशेष में तथाकथित ऊँचे वर्ण को अपना privilege कभी महसूस नहीं होता। पुरुषों को महिलाओं के ऊपर अपना privilege नही दिखता और महिला और पुरुष दोनों को थर्ड जेंडर के ऊपर अपना privilege नज़र नहीं आता।

उपरोक्त फ़िल्म का एक दृश्य है जिसका चित्र नीचे डाला जा रहा है


 पॉवेल एक बूढ़ा व्यक्ति है, जिसने डॉक्टर बनने की practice की है पर नाज़ियों द्वारा उसे अपने घरों में रसोई का काम सौंपा जाता है जिससे एक 8 साल के बच्चे ब्रूनो को  लगता है, कि गलती पॉवेल की है कि उसने ख़ुशी से ये नया पेशा अपनाया है। ऐसे ही काम हमारे देश में भी थोपे गये अपने से निचले वर्गों पर, और ऊपर के वर्गों को लगता है कि ये काम, उन निचले वर्गों के लोग अपनी ख़ुशी से करते है।

उदाहरण के लिए सड़क के किनारे बैठकर जूते सीने का काम करना।उन्हें देखकर किसी ऊँचे वर्ग को अपना privilege महसूस हुआ हो ऐसा कम ही हुआ होगा। बहुत सारे लोगो का अब कहना होगा कि, वो पढ़ाई नहीं करेंगे तो ऐसा ही होगा! पर क्या हम कभी उस कोण से भी देखने की सोच सकते है जिस हालात में वे समाज में निम्न समझे जाने वाले ऐसे कामों को करने को मजबूर हुए?

उनके दादा को विद्यालय नसीब नहीं हुआ, पिता पाँचवी तक स्कूल जा पाये और वो, बमुश्किल दसवीं तक। पढ़ाई और competition ऐसा कि आगे पढ़ना ना आर्थिक तौर पर मयस्सर हो पाया ना दिमाग़ी स्तर पर। उसके बाद भी दोष उनके ही सर।

जब एक बार अपने पुराने ब्लॉग में मैंने सफ़ाई वाले काम के लिए एक वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व होने पर अफ़सोस जताया था और जाति व्यवस्था को ज़िम्मेदार ठहराया था तो, मेरे कुछ अज़ीज़ मित्रों का कहना था कि मेरे आँकड़े ग़लत है और अब तो तथाकथित ऊँचे वर्ण वाले भी उसके लिए apply कर रहे है।पर अख़बारों को थोड़ा खंगालने पर जो सामने आया वो दिलचस्प था। समाज के तथाकथित ऊँचे वर्ण वाले उन नौकरियों के लिए apply तो कर रहे थे पर उसके बाद उसी काम के लिए कुछ पैसे देकर उन्हीं तथाकथित निचले वर्गों को रख रहे थे। जब इसकी शिकायत वहाँ प्रशासन से की गई, उसका कहना था कि, तुम्हें काम चाहिए उससे मतलब रखो…गुठलियाँ क्यों गिनते हो? क्योंकि उन स्वघोषित ऊँचे वर्णों को अपना privilege नही खोना है, जो उनके जन्म मात्र ने उन्हें विरासत में दिया है।

फ़िल्म The boy in the striped Pajamas में  privilege बालक ब्रूनो अपने पिता से पूछता है, वो लोग (यहूदी) ही वहाँ झोपड़ी बनाने का काम क्यों करते है, क्योंकि वो उसमे expert है? ये बिल्कुल वही बात है जैसा भारत में कोई privilege बालक अपने पिता से पूछे कि सीवर साफ़ करने वाले वो काम इसलिए करते हैं क्योंकि वो गटर साफ़ करने में expert है? या कोई भी बच्चा थर्ड जेंडर के लिये कहे कि उन्हें तो बस औरों के यहाँ जाकर पैसे माँगने में expertise है, इसीलिए वो ये सब कर रहे है!

लड़कों को ये समझ नहीं आता कभी कि वो, अपनी ही बहनों से कितने ज़्यादा privilege है।क्योंकि मेहमानों के आने पर उनकी मेज़बानी का जिम्मा कभी लड़कों के ज़िम्मे नहीं आता, और लड़कों को इस एवज़ ज़्यादा समय की उपलब्धता होती है।यहीं privilege सामाजिक स्तर पर एक गरीब पर ऊँचे वर्ग के उस व्यक्ति को है जो एक मध्यमवर्गीय पर निचले वर्ग के इंसान के पास नहीं है।पर ये उन्हें कभी महसूस नहीं होता, क्योंकि उनके लिए वो privilege, granted है।इसलिए वो उसे कभी देख नहीं पाते।



समाज में privilege वो पतली लकीर है, जो दिखाई नहीं देती पर है, और ढंग से स्थापित है ताकि वो मिट ना पाये। धर्म, जाति, लिंग के आधार पर संविधान ज़रूर विभेद ना करता हो पर कट्टर और रूढ़िवादी दिमाग़ कहीं भी इन विभेदों से अछूते नहीं रहते, उन्हें लगता है कि वो उनके लिए granted है। वो उनका हक़ है।ऊपर बताई फ़िल्म में यहीं privilege वो काँटों वाली तारबाड़ है, जो एक सैन्य अधिकारी के बेटे ब्रूनो और यहूदी बच्चे श्मूल को अलग करती है।जब ब्रूनो के पूछे जाने पर कि तुम सब पैजामे क्यों पहनते हो ? श्मूल का जवाब क्योंकि - सैनिक हमारे दूसरे कपड़े उतरवा लेते है, तो ब्रूनो का कहना, कि नहीं मेरे पिता ऐसे सैनिक नहीं है, ये वो बात है जैसे यहाँ तथाकथित ऊँचे वर्णों का कहना नहीं हमारे घरवाले तो जातिवादी नहीं है, हाँ लेकिन लोग होते है।

इसलिए सिनेमा या साहित्य का मकसद, एक बेहतर समाज का निर्माण भी होता है, केवल मनोरंजन मात्र नहीं।The boy in the striped  Pajamas जैसी फ़िल्में आपको ऐसे ही अपने privilege में झाँकने और ख़ुद को बेहतर इंसान बनाने में मददगार साबित होती है।और बेहतर नागरिकों से ही एक स्वस्थ समाज का निर्माण होता है।Classless Society बनाना शायद कभी संभव ना हो पाए पर जो लकीरें हमने अपने फ़ायदे के लिए बहुत गहरी अपने मन की ज़मीन पर उकेरी हुई है, कम से कम  उन्हें भरकर तो हम बेहतर बनने का प्रयास कर ही सकते है।



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