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Still Your caste matters above everything

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  आपकी पहचान आज भी आपकी जाति से है ना कि, आपके कर्मों से, पेशे से या आपकी आर्थिक स्थिति से।जब भी सोचता हूँ इस बारे में लिखना छोड़ दूँ, कोई ना कोई वाक़या आस पास ऐसा हो ही जाता है कि रोहित वेमुला के वो शब्द मेरे ज़ेहन में फिर से ज़िंदा हो जाते है-"My birth was my mistake” मेरे एक करीबी रिश्तेदार का चयन एक बैंक में कुछ समय पहले हुआ, अपने प्रोबेशन पीरियड के बाद जब उसका तबादला बागेश्वर जैसे शहर में हुआ तो स्वाभाविक तौर पर उसने ख़ुद तो कमरे के लिये ढूँढना शुरू किया ही, मेरे परिचित हो सकते है इसलिए मुझसे भी इस काम में मदद करने को कहा।स्वाभाविक तौर पर मैंने अपने मित्रों से कमरा ढूँढने को कहा। नतीजा फिर वही ढाक के तीन पात! किसी को इस बात से मतलब नहीं है कि वो आदमी एक शिक्षक है,बैंक मैनेजर है या कोई प्रशासनिक अधिकारी।बस जाति से मतलब है या यूँ कहूँ कि बस ‘surname’ से ।अगर surname में थोड़ा doubt हुआ तो सीधे पूछ लेते है-“आप क्या हुए?” और बस आपके वर्षों की मेहनत, आपके जीवन का struggle गया भाड़ में। एक निचली जाति(जो तुम्हारी वर्णव्यवस्था की देन है) क्या जानवरों से भी गई गुजरी है? आप अपने कुत्ते...

Valley of flowers at a Glance :June 2023

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       The valley of flowers National  Park is situated in Chamoli district of Uttarakhand.You can visit there between June to September but the best time to see picturesque beauty you should go in July last to August first week.It is an integral part of Nanda Devi Biosphere Reserve and have an area about 87 Sq Kms aa mentioned in Uttarakhand’s tourism official website.It was declared a national park in 1982 and UNESCO’s world heritage site in 2005. Pushpawati river flows side to the valley though you can find some water channels in the valley.It can be reached by NH58( Badrinath Highway) upto Govindghat. Then either you can walk on the feet or on shared Taxi or on your vehicle to Pulna which is 4 Kms from Govindghat.Here you can park your vehicle with a minimum parking rate. Then you have to climb 10 Kms trek to Ghangharia, from where one way goes to Valley of Flowers and other is to Hemkund Sahib. Hotels and huts are for lodging at rent. Almost every shop is h...

A real contribution to The Environment

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शहतूत का पेड़  विश्व पर्यावरण दिवस की सार्थकता सोशल मीडिया पर Happy Environment Day लिखने से कहीं अधिक इस बात में है, कि आपने धरातल में क्या किया है। वर्ष 1998 की बात है तब मैं तीसरी कक्षा में पढ़ता था।गर्मियों में गाँव में किम(शहतूत) का एकमात्र पेड़ होता था।फल के दौर में दिन भर हमारा आशियाँ वही पेड़ होता था।झूला झूलने से लेकर कइयों के चोट लगने का एकमात्र गवाह वो ही पेड़ होता था।एक अनार सौ बीमार की कहावत एकदम उस पेड़ पर फिट बैठती थी।अर्थशास्त्र के मूल सिद्धांत 'Demand and Supply’ का असर हमारे बालमन पर भी होता था।जुलाई में आने वाले हरेला पर मैंने एक पेड़ लगाने की सोची।ये निःसंकोच मेरा स्वार्थ था कि, पेड़ उगेगा और हमें ज़्यादा शहतूत खाने को मिलेंगे।और उस पर 'मेरा बैट तो मेरा क्रिकेट' जैसा वर्चस्व! तो मैंने परंपरा अनुसार एक टहनी खेत के किनारे रोप दी।साल दर साल इसे बढ़ते देखकर जो ख़ुशी होती थी उसे बस महसूस ही किया जा सकता है। आज तक़रीबन 25वें बरस के इस हरे भरे पेड़ को जो आप देख रहें है, उसी स्वार्थ का हासिल है।तब का निहित स्वार्थ, आज प्रसन्नता ला देता है।इसमें इतने शहतूत होते ह...