A real contribution to The Environment

शहतूत का पेड़

 विश्व पर्यावरण दिवस की सार्थकता सोशल मीडिया पर Happy Environment Day लिखने से कहीं अधिक इस बात में है, कि आपने धरातल में क्या किया है।

वर्ष 1998 की बात है तब मैं तीसरी कक्षा में पढ़ता था।गर्मियों में गाँव में किम(शहतूत) का एकमात्र पेड़ होता था।फल के दौर में दिन भर हमारा आशियाँ वही पेड़ होता था।झूला झूलने से लेकर कइयों के चोट लगने का एकमात्र गवाह वो ही पेड़ होता था।एक अनार सौ बीमार की कहावत एकदम उस पेड़ पर फिट बैठती थी।अर्थशास्त्र के मूल सिद्धांत 'Demand and Supply’ का असर हमारे बालमन पर भी होता था।जुलाई में आने वाले हरेला पर मैंने एक पेड़ लगाने की सोची।ये निःसंकोच मेरा स्वार्थ था कि, पेड़ उगेगा और हमें ज़्यादा शहतूत खाने को मिलेंगे।और उस पर 'मेरा बैट तो मेरा क्रिकेट' जैसा वर्चस्व! तो मैंने परंपरा अनुसार एक टहनी खेत के किनारे रोप दी।साल दर साल इसे बढ़ते देखकर जो ख़ुशी होती थी उसे बस महसूस ही किया जा सकता है।

आज तक़रीबन 25वें बरस के इस हरे भरे पेड़ को जो आप देख रहें है, उसी स्वार्थ का हासिल है।तब का निहित स्वार्थ, आज प्रसन्नता ला देता है।इसमें इतने शहतूत होते हैं, कि अप्रैल-मई में गाँव के बच्चों के साथ साथ दिन की चटनी का इंतज़ाम सारे गाँव के लिये हो जाता है।पक्षियों का ठिकाना तो है ही, साथ ही  उनके भोजन का भी इंतज़ाम काफ़ी हद तक इससे हो जाता है।मिट्टी का कटाव रुक जाता है।मवेशियों के लिए पत्ते हो जाते हैं।चिलचिलाती धूप में छाँव तो प्लस पॉइंट है ही। इसलिए एक पेड़ के लगाने से कैसे आप एक इकोसिस्टम में एक बड़ा योगदान दे सकते है, ये पेड़ इसका जीता जागता सुबूत है।

इसलिए सौ बात की एक बात,पेड़ अवश्य लगायें…चाहे वो फलदार हो या नहीं।फलदार हो तो और बढ़िया और ना भी हो तो कम से कम उस पेड़ से आपका फ़ायदा हो ना हो, कई 'पक्षियों का घर’ वो पेड़ ज़रूर हो जाएगा और ये आपका असल में प्रकृति के संरक्षण में योगदान होगा।

Red vented Bulbul on the same tree


टिप्पणियाँ

  1. बहुत सही और यथार्थता के साथ आपके आलेख ने पर्यावरण संरक्षण के महत्व को समझा दिया ।👍💐👏

    जवाब देंहटाएं
  2. One effective steps is always good for everyone

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

छिपलाकेदार: कुमाऊँ का सबसे दुर्गम और ख़ूबसूरत ट्रैक

अध्यापक के नाम पत्र: बारबियाना स्कूल के छात्र

Don’t Judge a book by its Cover