Hard work always pay off!
मेहनत का कोई पर्याय नहीं होता। मेहनत करनी है इससे ज़्यादा ये मायने रखता है कि मेहनत कब करनी है।बहुत गरीब और निरक्षर घरों से निकले दो युवा लड़कों की कहानी मैं आपको आज सुना रहा हूँ।दोनों को मैं निजी तौर पर थोड़ा सा जानता हूँ।दोनों के गाँव ऐसी जगह हैं जहां पर आज भी सड़क नहीं पहुँची है।ज़िला मुख्यालय से दूरस्थ गाँवों के ये दो युवा अपने परिवारों की पहली पीढ़ी है, जो सरकारी नौकरी तक पहुँचे है।जब दोनों से मैं मिला था वर्ष 2012 में, उस समय मेरी तरह किराए पर मेरे बग़ल के कमरे पर आए और मौज मस्ती में ही दिखते थे पर उसके बाद जो उन्होंने अपने संघर्ष की दास्तान लिखी है, उसे मैं निजी तौर पर एक बड़ी उपलब्धि मानता हूँ।दोनों की कहानियाँ अपनी ज़ुबानी सुना रहा हूँ।
1.रवि
रवि के पिता का देहांत बचपन में हो चुका था, वो बताया करता था कि उसे याद नहीं अपने पिता की, कि उनका चेहरा देखा हो।उस समय वो गुज़र चुके थे।बड़े भाई अपनी बारहवीं करने के बाद ही प्राइवेट नौकरी करने चले गये।रवि ने अपनी पढ़ाई गाँव के प्राइमरी स्कूल से शुरू की जो कि (प्राo विo पइयाँ) जो कि गाँव से 3-4 Kms दूर था।कक्षा दसवीं राoउo माo विo अमस्यारी से किया जो लगभग 5 Kms की दूरी पर था। इंटर राoइo काo वज्युला से किया जो और दूर था ( लगभग 7-8 Kms) बारहवीं करने के बाद रवि ने ITI करने अल्मोडा का रुख़ किया। ITI के साथ ही प्राइवेट BA किया।रवि बताता है कि, ITI के तुरंत बाद नौकरी नहीं मिली तो भाई के साथ दिल्ली चला गया वहाँ कैंटीन में नौकरी मिली और साथ में गाड़ियाँ धोने का काम मिला।तनख़्वाह केवल 6000 महीना रुपये मिलती थी।उसके बाद रूद्रपुर सिडकुल में अशोका लेलैंड में नौकरी मिल गई।कभी दिन तो कभी रात की शिफ्ट।उसके साथ ही अपनी तैयारी करते रहा। वर्ष 2016 में जब मैं रवि के कमरे में गया था लालकुआँ, तो बिस्तर ज़मीन पर लगा होता था, बग़ल में किताबों का ढेर और खूँटी पर टंगी कंपनी की यूनिफार्म।जिस दिन मैं उसके साथ रुका तो मेरे सोने के बाद, कंपनी में नौकरी से आकर वो किताब पढ़ता था, ये मैंने ख़ुद देखा।आख़िरकार मेहनत रंग लायी और 2021 में Forest Guard में चयन हो गया।आज रवि अपने परिवार में इकलौता सरकारी नौकरी पर है। वो कहता है अभी रुकूँगा नहीं बल्कि तैयारी जारी रखूँगा।
2.राजू
राजू की कहानी भी लगभग ऐसी ही है।राजू का भी गाँव पइयाँ है।प्राइमरी से ही पढ़ने के बाद राजू ने भी बारहवीं राo इo काo वज्यूला से ही हुई कॉमर्स के साथ हुई।उसके बाद अल्मोडा से ITI और साथ में प्राइवेट BA. राजू बताता है कि तब घर से दो तीन महीने में खर्चा आता था। वो भी इतना नहीं कि अपना किराया और राशन का समय पर उधार दिया जा सके। कभी जब किसी का सिलिंडर भरकर ले आया तो उसने 50 रुपए दे दिए तो जेब खर्च निकल जाता था। वो आगे बताता है कि जब ITI के बाद सिडकुल में नौकरी करने गया तो वहाँ से पैसे मिले उससे अल्मोडा में किराया और दुकान का उधार चुकाया। कुछ समय बाद नौकरी छोड़ दी क्योंकि कभी दिन तो कभी रात की शिफ्ट में काम करना होता था साथ में क्योंकि 4-5 लोग कमरे में रहते थे तो पढ़ाई करना संभव नहीं हो पा रहा था। जितना समय होता था अपना रूटीन बनाया था।राजू कहता है कि जब उसके रूममेट सोते थे तो मैं सोचता था कि कैसे ये लोग इतने तसल्ली से सोते है? कंपनी ने छँटनी शुरू की तो वहाँ से भी निकाल दिये गए।ग्राम विकास अधिकारी का एग्जाम दिया, अच्छे मार्क्स आये सिलेक्शन तय था,पर पेपर लीक हो गया।फिर होटल लाइन पकड़ी।वहाँ भी दिन भर की नौकरी थी। जब घर वालों से कहा कि सरकारी नौकरी की भी तैयारी कर रहा हूँ तो उनका कहना था, “ हम लोगों की कहाँ नौकरी लगती है, उसके लिए बहुत पैसे लगते है, उसमे बड़े लोग लगते हैं” ये वो दौर था जब कोरोना के चलते होटल इंडस्ट्री बंद हो गई और सारे होटल में काम करने वाले लड़के पहाड़ लौट आये।माँ बाप अनपढ़ थे उन्हें समझाना मुश्किल था।अपने दोस्त के कहने पर एक जगह चौकीदार की नौकरी मिली। लगभग 8 महीने केवल रात की ड्यूटी! लेकिन साथ साथ पढ़ाई की। हाईट कम थी पटवारी भर्ती से पहले ही बाहर हो गया। उसके बाद फिर किसी होटल में वेटर का भी काम किया। लेकिन पढ़ाई नहीं छोड़ी और अख़िरकार Forest Guard की waiting में नंबर आ गया। और जब मेहनत के एक थ्रेशहोल्ड को आप पार कर जाते है फिर सफलता आपके क़दम चूमती है। अख़िरकार कुछ दिनों पहले कनिष्क सहायक का परिणाम आया और चयन हो गया। दोनों नौकरियाँ एक साथ एक साथ दस्तक दे गई।
ऊपरी दोनों कहानियाँ यूपीएससी के परिणाम आने के बाद की कहानियाँ नहीं है इसलिए अख़बारों के कोनों से भी महरूम है।पर इनका संघर्ष मुखर्जीनगर में सालों बिताकर CSE निकालने वालों से ज़्यादा मायने रखता है। ये उन घरों से ताल्लुक़ रखते है जहां, ‘ कहीं लग जाता’ वाली बात आम होती है।पर दोनों ने जो कर दिखाया वो ना केवल एक उपलब्धि है बल्कि अनेकों बच्चों के लिए प्रेरणास्रोत है, जो संपन्न साधनों के बाद भी अपनी क़िस्मत का रोना रोते है। इन दोनों की कहानी को कहने का मक़सद इक़बाल के इस शेर में दिख जाता है- “ मेरा तरीक़ अमीरी नहीं फ़क़ीरी है, खुदी ना बेच ग़रीबी में नाम पैदा कर” जो इन दोनों ने सच में कर दिखाया। दोनों के हौंसलों और जज़्बे को सलाम।
I salute their determination and perseverance
जवाब देंहटाएंसफलता अनवरत किये गए परिश्रम का परिणाम होती है । दोनों की सफलता की कहानी निश्चित रूप से प्रेणादायक है । विपरीत परिस्थितियों में पढ़ना और सफलता पाने की खुशी ही अलग होती है ।
जवाब देंहटाएंखुली आंखों से देखे गए इन लोगों के सपने पूरे हुए। जिनका हौंसला बुलंद हो और उम्मीद कभी ना टूटे, यही वो लोग हैं।
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