Rudranath : The most difficult trek I ever faced.

 


इस यात्रा वृत्तांत की शुरुआत में डिस्क्लेमर दे दूँ कि ट्रेक का मतलब मेरे लिये प्रकृति के क़रीब होना और जैव विविधता से मुख़ातिब होना होता है, और क्योंकि रुद्रनाथ जैसे ट्रेक में अधिकांश लोग आस्थावश जाते है, पर मेरा धार्मिक स्थानों से दूर दूर तक कोई वास्ता है नहीं! इसलिए रुद्रनाथ ट्रेक में आपको धार्मिक जानकारी के इलावा सब मिलेगा।

फिर वही कहानी फिर एक बार…प्लान था तीन दोस्तों का और गए केवल दो लोग; मैं और प्रकाश! मेरे द्वारा सबसे जलील किए जाने वाला सीधा और सरल दोस्त प्रकाश।

अचानक पहली रात को तय होने के बाद मिलन स्थल तय हुआ- सिमली बैंड, प्रकाश को आना था भीमताल से मुझे जाना था गरुड़ से।बाइक में बोझा लादकर मैं घर से निकला ही था कि रास्ते में दिखा Yellow throated martin का जोड़ा।तत्काल कैमरे के कुछ असफल प्रयासों के बाद जब कोई ठीक तस्वीर ना निकली तो रवाना हुआ आगे को।ग्वालदम से आगे थोड़ा रुका तो गले में कैमरा टाँगे कोई तस्वीर लेना चाह रहा था, कोई नवीन जी नमूदार हुए।मुझे कोई देसी पर्यटक समझ हैलो कहने के बाद जब बताया मैं लोकल ही हूँ तो भाई ने भी ज़्यादा वैल्यू देने से परहेज़ कर लिया।काफ़ी बातचीत हुई, बताया कि उन्होंने उड़ीसा में काफ़ी वक़्त बिताया है, और वो वहाँ बताते थे कि वो बद्रीनाथ से है तो लोग नतमस्तक हो जाते थे।ये है धार्मिक होने का प्रभाव! 

उनसे विदा लेकर आगे बढ़ा तो तितलियों  का झुंड दिखा पर सोचा वापसी में फ़ुरसत से मिलूँगा इनसे…तो आगे निकल पड़ा, अचानक मुझे दिखा मेरी सबसे पसंदीदा तितली- orange oakleaf का एक जोड़ा।तत्काल बाइक रोककर उनके गुरुत्वाकर्षण ने मुझे खींच लिया।फोटो लिए जो ये है।

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फिर सीधे निकल पड़ा अपने मिलन स्थल की ओर।हेमकुंड की ओर जाने वाले जत्थे के पीछे से प्रकट हुआ प्रकाश! दुआ सलाम और ख़ैर-खबर के बाद बिना देर किए हम लोग चले पड़े कर्णप्रयाग की ओर।यहाँ पिंडारी ग्लेशियर से आने वाली पिंडर और सतोपंथ ग्लेशियर से आने वाली अलकनंदा का संगम है। अब हमारे साथ साथ अपनी 100 CC की बाइक पर बैठे दो दो सरदारों और उनके सामान का हुजूम भी चल रहा था। हर बाइक पर आगे खंडे वाला गेरुआ झण्डा और फ़र्राटा भरती उनकी बाइक!

थोड़े आगे जाने पर सड़क किनारे लंगर…और सिख भाइयों की दरख़्वास्त कि, “आओ जी लंगर छक के जाओ”। जो सेवाभाव आपको सिखों में दिखेगा वो किसी और धर्म में नहीं दिखेगा..ये बात मेरे अगले वृत्तांत में ज़्यादा क्लियर हो जाएगी ( हेमकुंड यात्रा वृत्तांत)। शर्बत पीने के बाद हम तलाश में थे किसी छाँव की, जहां खाना खाया जा सके। तक़रीबन 4:00 बजे हम लोगो का सड़क किनारे पेड़ की छाँव में लंच हो रहा था। जैसे ही इससे फ़ारिग होकर आगे बढ़े थे बारिश…बेहिसाब बारिश। कोटद्वार के एक टेलर भाई ने बैठने के लिए दुकान में स्टूल लाकर दिया।कितने अच्छे लोग है दुनिया में और सरल! बस थोड़ा मीठा ही तो बोलना है। 

रुद्रनाथ के लिए आपको नेशनल हाईवे 58 जो कि, बद्रीनाथ माणा हाईवे पर चमोली तक जाना होगा जहां से आप 10 Kms गोपेश्वर और फिर वहाँ से 4 Km सगर गाँव जाना होगा। होने को इसके दो रास्ते और भी है।

गोपेश्वर पहुँचकर थोड़ी ख़रीददारी करनी थी,प्रकाश को पावरबैंक और तीन फोल्ड वाली छाता, जो उसे हमारे एक घंटा ख़राब करने पर भी नहीं मिली! अंधेरा होने को था…एक होमस्टे वाले से यहीं से किसी दुकानदार ने बात कर दी थी, इसलिए ठिकाना मिल गया था रहने का। लेकिन रहने खाने में होमस्टे वाले की नक्सेबाज़ी देखकर हमें महसूस हुआ सगर में रुकना बड़ा बेवक़ूफ़ी भरा फ़ैसला रहा। 

सगर गाँव रुद्रनाथ मंदिर या ट्रेक का द्वार है।यहाँ होमस्टे और होटल दोनों बने हुए है रुका यहाँ भी जा सकता है, अगर आप शाम को पहुँचे तो या तो यही रुक जाये या गाँव के थोड़े ऊपर कुछ huts में क्योंकि उसके बाद आपको सीधे रुकने की जगह पुंग बुग्याल में मिलेगी, वो भी जगह हुई तो क्योंकि केवल एक हट वहाँ पर मौजूद है।

ख़ैर हम सुबह 6:00 बजे अपनी यात्रा शुरू करते है, द्वार से निकलने के कुछ दूरी में रहने और खाने के लिए huts थी जिसके मालिक ने जय भोले, आइये चाय पीजिए, नाश्ता करिए कह कहकर कानों में इतना दर्द कर दिया था कि मुझे झल्लाहट होने लगी थी।उन्हें पार करते ही जंगल शुरू हो चुका था, अचानक सुनाई  पड़ी तीतर की आवाज़।नज़र दौड़ाने पर खेत किनारे मेटिंग के लिए मादाओं को पुकारता एक ब्लैक फ़्रैंकोलिन (काला तीतर) दिखा उसी की देखा देखी में एक और दिशा में उसी के नक़्श-ए-क़दम दुहराता दूसरा।तस्वीर लेने के बाद आगे बढ़े।बता दूँ यह हरियाणा का राज्य पक्षी भी है।

Black Francolin

अब अच्छा ख़ासा घना जंगल शुरू हो चुका था, उतीस और बाज के पेड़ो से घिरा खड़ंजा, तक़रीबन 45 डिग्री के स्लोप वाला टेढ़ा मेढ़ा रास्ता जिस पर अपनी आधुनिकता बघारते स्पीकर पर कोई मॉडर्न भजन बजाते युवा। मेरी नज़रें खोज रही थी पक्षियों, तितलियों और जानवरों को…अचानक दिखा पीज़ेंट कलीज़ का एक जोड़ा, होने को दोनों उसमे नर थे…पक्षियों में नर और मादा पहचानना बड़ा आसान है, नर चटख रंग वाले होते है और मादा फीके रंगों वाली, हो सकता है इसके कुछ अपवाद हो, पीरियाडिक टेबल में क्रोमियम और कॉपर की तरह! देसी युवाओं ने पूछा, क्या दिखा? “कलीज़, आप जंगली मुर्गी समझ लो” उन्होंने मुँह टेढ़ा करके दोहराया हम्  मुर्गी! 

Peasant Kalij Male

क़रीब 2 घंटे चढ़ने के बाद एक छोटा घास का मैदान दिखा, घने जंगल के बीच में - पुंग बुग्याल।यहाँ पर केवल एक दुकान थी जहां पर ख़ाना मिल जाएगा।रहने के लिए भी।रेट है -300 रुपये में रहना और रात का ख़ाना दोनों। अगर हमें इसका पता होता तो हम यहीं रुकते। दुकानदार भले इंसान लगे मुझे जब तक उन्होंने एक जाति विशेष की तुच्छता सिद्ध नहीं की थी, तब मुझे लगा कि लोगों की धारणाएँ बदली नहीं है, उनके लिए आज भी महज़ आपका जन्म ही सब कुछ है। आपका ओहदा और बाक़ी चीजें सब गौण । ख़ैर जब पढ़े लिखे लोग ही नहीं समझते तो एक अनपढ़ दुकानदार से मैं क्या उम्मीद कर सकता था।पैसे दिये और आगे बढ़े। 

पुंग बुग्याल


इसके बाद रास्ता और कठिन होता जाता है।स्लोप लगातार बढ़ता जाता है। लगभग 1 घंटा फिर चढ़ने के बाद हम पहुँचते है घिमघिमा पानी, जहां से प्रकाश लेता है कुछ टॉफ़ियाँ जो किसी भी ट्रेक में बड़ी कारगर होती है। केवल एक दुकान है ।आप रह और खा यहाँ भी सकते है।जंगल और घने होते जाते है।नेटवर्क है पर मैंने अपना फ़ोन फ्लाइट मोड में रखा है, मैं प्रकृति और अपने बीच व्यवधान नहीं चाहता।

घिमघिमा पानी

स्लोप लगातार 90 डिग्री की ओर बढ़ रहा है।थकान ऐसी हो गई है कि चार कदम चलने पर हम उकताने लगे हैं। आगे बढ़ते जाते है, थकान बढ़ने लगी है।पीठ पर भारी बैग है पर स्टिक ने कुछ हद तक बोझ कम करने में अपनी हिस्सेदारी बख़ूबी निभाई है।लगभग एक घंटा फिर चढ़ने के बाद मौली खर्क और वहाँ से डेढ़ दो घंटा चढ़ने के बाद फिर एक छोटे बुग्याल- ल्वीटी बुग्याल में हम लोग थे।रुकने खाने के लिए किशन जी का होटल है, जो गूगल मैप में भी दिखता है। बुरांश का जूस पीना हमें कोल्डड्रिंक पीने से ज़्यादा मुफ़ीद लगा, आर्थिक और शारीरिक दोनों हिसाब से।मूल्य था तीस रुपये प्रति गिलास।पर इतना बढ़िया बुरांश का जूस मैंने पहली बार पिया था।तारीफ़ सुनकर किशन जी गदगद हो उठे और बताने लगे कैसे उन्होंने ख़ुद अपने सामने वो बनवाया था। चाहकर भी हम तेज नहीं चल पा रहें है।ल्वीटी के बाद पानी आपको सीधे पंचगंगा धारा में मिलेगा जो यहाँ से दो घंटे लगभग की दूरी पर होगा।

ल्वीटी बुग्याल में किशन जी की दुकान

ल्वीटी से थोड़ा पहले कुछ दूरी पर ग्रामीण महिलाओं का एक जत्था दिखलाई पड़ता है, वो हमें बिस्कुट ऑफर करती है और प्रकाश बदले में अपने पेड़ो से लाये हुए खुबानी, पुलम और आडू।उनकी एक तस्वीर लेने के बाद हम आगे बढ़ने लगते है।



आगे बढ़ने पर कुछ लोग मिलते है जो आज पनार बुग्याल में रुकने की सलाह देते है जो अभी एक डेढ़ किलोमीटर ऊपर है।दिन के दो बज चुके है। इतनी ऊँचाई पर केवल एक तितली- कॉमन सटायर बारंबार दिखती है।हम तेज़ जाने की कोशिश करते है।अख़िरकार इस उम्मीद में कि अब चढ़ाई ख़त्म होगी…पर नतीजा सिफ़र।लेकिन पनार बुग्याल दिखता बड़ा सुंदर है।यह सही में बुग्याल कहलाने लायक़ था, इससे पहले पुंग और ल्वीटी को ज़बरदस्ती बुग्याल कहलाया गया है, ये मेरा मानना है। यहाँ वन विभाग की चौकी है जो रुद्रनाथ द्वार सगर में बनवाये आपके नंदादेवी बायोस्फेर रिज़र्व के पास चेक करते है। इसलिए पास बनवाकर ही आगे बढ़े।

पनार बुग्याल


पनार से पितृधार तक अब भी चढ़ाई है पर स्लोप थोड़ा कम ज़रूर है।पितृधार से आपको सामने नीलकंठ और बद्रीनाथ की चोटियाँ साफ़ दिखाई देने लगती है और आप सच में इनपर मोहित होते जाते है।बार बार “भाई बस एक फोटो प्लीज़” सुन सुनकर मेरे सब्र का इम्तिहान प्रकाश कई बार ले चुका है।

पितृधार

पितृधार से अब आप नीचे उतरना शुरू करते है क्योंकि रुद्रनाथ नीचे घाटी में है। अब आप बुग्याल के बीच में हैं। नीचे घाटियों में बर्फ से तिरछा सफ़ेद-बैगनी बुरांश दिख रहा है।यहाँ से रुद्रनाथ अभी भी ढाई तीन घंटे की दूरी पर है।मौसम ख़राब होने की संभावना लगती है और हम तेज़ कदमों से आगे बढ़ना शुरू करते हैं।तक़रीबन एक किलोमीटर चलने के बाद पानी मिलता है, यहाँ पाँच धाराएँ थोड़ी थोड़ी दूरी पर हैं इसलिए इन्हें पंचगंगा नाम दिया गया है। हम सुबह के पैक करवाये पराँठे से अपना लंच करते है । पानी ऊपर स्रोतो से आ रहा है और काफ़ी ठंडा है।पर इसे पीने की अपनी कैफ़ियत है। कुछ दूरी के बाद ऊपर बर्फ की चोटियों की जड़ में दिखता है रुद्रनाथ मंदिर।लगता नज़दीक है पर यहाँ पहुँचने में भी लगभग डेढ़ घंटे का समय लगा होगा। लगभग दिन भर चलने के बाद छह बजे शाम हम मंदिर पहुँचे।मंदिर से थोड़े पहले धर्मशालाएँ है।पर अब हल्की बूँदाबारी शुरू हो चुकी है। धर्मशाला में पहुँचते ही बारिश और छोटे छोटे ओले जो बर्फ का संकेत है…गिरने लगते हैं।ठंड बढ़ने लगी है।एक कमरे में अपना सामान रखकर हम एक फोम बेड माँग लेते है।कंबल पूजा के बाद मिलेगा ऐसा कहा गया है।

धर्मशालाएँ और मंदिर

प्रकाश आरती में शामिल होने चला गया है।मैं धर्मशाला में ही अंधेरे में बैठा हुआ हूँ।कुछ समय बाद कैमरे लेकर एक दो शॉट लेने मैं भी चल पड़ता हूँ। घंटियों और दूसरे वाद्ययंत्रों का करतल ज़ोर शोर से गुंजायमान है। मंदिर के बाहर सब हाथ जोड़े खड़े है।पैर नंगे है और ठंड सुइयों सी तलवे को भेद रही है। मैं कुछ शॉट लेने के बाद वापस आ जाता हूँ और लेट जाता हूँ।प्रकाश पूरी भक्तिभाव से आरती में लीन है।

रुद्रनाथ मंदिर, pc: प्रकाश भाई

तक़रीबन एक घंटे बाद वो काँपता वापस आता है।उसके शरीर की ठिठुरन गवाह है कि नंगे पाँव किस तल्लीनता से वो उस ठंड में खड़ा रहा होगा। हम खाना खाने जाते है और फिर अपने आधार कार्ड को जमा करवाकर दो कंबल ले आते है।जिनका मूल्य 100 रुपये प्रति कंबल है।ऊबड़खाबड़ जमीन पर एक फोम में लेटते ही नींद आ जाती है।रात को शायद एक या दो बजे दो लड़के आते है उसी कमरे में।सर उठाने की हिम्मत नहीं है और अंधेरा अलग है।समझ गया था कि वो रास्ते में कितना भीगें होंगे।

सुबह साढ़े पाँच के लगभग उठा तो प्रकाश पहले ही उठ चुका था और नित्यकर्म से फ़ारिग हो चुका था। उन दो लड़कों ने बताया कैसे रास्ते में बारिश और ओलों ने उनके हौंसले पस्त किए और अपना ख़ाना कही खाकर वो गिरते पड़ते देर रात यहाँ पहुँचे।

प्रकाश  कैमरा लेकर कुछ तस्वीरे खिंचवाने मंदिर जाता है और मैं अपना बैग लेकर नित्यकर्म और हाथ मुँह धोने जो धर्मशाला से लगभग 200 मीo दूर है।लगभग  सुबह साढ़े छः पर हम वापस निकलते है।धूप निकल चुकी थी और शाम के ओलों से पूरे बुग्याल में बर्फ गिरी महसूस हो रही है।हम बस चलते जा रहे हैं और प्रकाश का “भाई बस्स एक फोटो यार” का अलाप फिर शुरू हो चुका है।

रुद्रनाथ के ठीक ऊपर की चोटी
प्रकाश भाई की ‘बस एक फोटो’ में से एक फोटो


वापसी में ट्रेक या दर्शन के लिए जाते लोगों को देख हमारे मन में एक विजेता वाला गर्व है कि इतना मुश्किल ट्रेक हमने एक दिन में पूरा किया था, जिसे हर औसत पर्यटक दो दिन में करता है।एक अकेली महिला को अपने बेटे के साथ ट्रेक पर देख संतोष होता है, उस महिला ने शायद अपनी ज़िंदगी को केवल चूल्हे चौंके तक ही सीमित नहीं किया। ख़ैर ज़िंदगी सबके लिए चुनाव नहीं होती बल्कि मजबूरी भी होती है। कुछ के लिए चुनाव हो सकती थी पर उन्होंने इसे बना मजबूरी लिया है।ख़ैर सबके लिए इसके मायने अलग अलग है।निदा फ़ाज़ली की लिखी ग़ज़ल-कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता…कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता क्या सबके लिए फिट नहीं बैठता!


शहरयार की लिखी “जुस्तुजू जिसकी थी उसको तो ना पाया हमने” जैसी लाइन मेरे मन में लगातार गूंज रही थी क्योंकि  ना कोई जानवर ही दिखा ना कोई मोनाल जैसी पक्षी। इसलिए मैं निराश था।ऊपर से थकान से तोड़ देने वाली चढ़ाई।वापसी में एक यंग बाबा दिखे जिनका पोट्रेट खींचने  का मेरा बड़ा मन किया।उनकी स्वीकृति के बाद ही यह तस्वीर ली। 



कुछेक और लोग मिले जिनकी, “ कैमरे से साफ़ फोटो आती है ,फोटो खींच दीजिए, हमें व्टासॉप कर दीजियेगा” की आरज़ू थी, उनकी तस्वीरें ली। जिनमे एक दल “हम गया (बिहार) के ब्राह्मण है” वालों का दल भी था।समझ नहीं आता कि क्यों अपनी जाति और क्षेत्रीयता का घमंड लोगों के सर पर होता है जबकि हर इंसान कार्बन और अन्य तत्वों का ही तो एक ढाँचा है, बाक़ी जानवरो की तरह! क्या प्रवासी पक्षी भी बाक़ी पक्षियों के सामने बताने में गर्व करते होंगे हम तो फ़लाँ जगह के है इसलिए हमें ज़्यादा तवज्जो दो! 

ख़ैर पंचकेदारों में  सबसे कठिन माना जाने वाला ये ट्रेक सच में कठिन है और पूरी ताक़त निचोड़ देने वाला है।अगर आप बहुत लंबा चलने के आदी नहीं है तो इसे दो दिन में करें। हर जगह इसकी लंबाई 16-18 Kms लिखी है पर चलने में ये 24-25 Kms से कम महसूस नहीं होता, ये हर ट्रेकर का कहना था। इससे आगे की यात्रा अगले ब्लॉग में जारी रहेगी…

ट्रेक की कुछ अन्य तस्वीरें










टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुन्दर वर्णन किया है दीपक जी..शुभकामनाएँ।

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  2. बेहद शानदार भाई, गोपेश्वर महाविद्यालय में पढ़ाई के दौरान अपने मित्रो संग दो बार हमे भी रुद्रनाथ के खूबसूरत बुग्यालों से रूबरू होने का अवसर मिला ,ओर हमने भी दोनों बार एक ही दिन मैं ये ट्रेक पूरा किया ,आपके यात्रा वृतांत से 10 ,12 वर्ष पहले की वही यादें फिर जेहन में ताजा हो गई,

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  3. ईश्वर जब किसी के जीवन में शब्दों को भरता है तो कुछ कारण होता जरूर है। शायद जीवन की एक नई शुरुआत है ये । जिसके बाद आने वाली पीढ़ी और हम गर्व कर सकें इन वृतांतों से

    यूंही तरक्की करो यही प्रार्थना हूं । परम मित्र

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  4. बहुत ही शानदार यात्रा वृतांत रहा

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  5. Bhaut badiya Deepak sir agar atri Muni ya anusuya se vapas aate tho sayad mere ko lagata hai aapko or Jada aacha lagta ye trek .

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  6. वाह बहुत शानदार

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  7. सहज लेखन शैली के साथ ही बेहद रोमांचक यात्रा का वर्णन । आपके ब्लॉग के माध्यम से हमें बहुत सारी जानकारी मिल पाती है ,आशा करते है और भी मिले ।धन्यवाद🙏 एवं शुभकामनायें 😊💐

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  8. बहुत ही विस्तृत और रमणीय ट्रैक का वृतांत सरल शब्दों में।

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  9. Aapke blog ko pdna bda achcha lgta h Sir... Sath m aapke dwaara li gyi photos& videos... Really just Amazing💕😍👏

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  10. " जुस्तजू जिसकी थी उसको तो..."👌यात्रा चित्र

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