अमिट स्याही ( Indelible Ink)

 

अमिट स्याही( Indelible Ink)

7 नवम्बर को हुए विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनाव में अपनी ड्यूटी के दौरान आख़िर में स्याही की वॉयल बंद करते वक़्त ढक्कन में लगी स्याही मेरे हाथों पर अपनी पहचान गढ़ गई।इसलिए सोचा कि इससे जुड़ी जानकारी साँझा की जाये।


इस स्याही का पूरा रासायनिक फ़ार्मूला किसी को नहीं पता सिवाय सीएसइआर(CSIR) के। बस इतना पता है कि इसमें सिल्वर नाइट्रेट (AgNO3) होता है।यह यौगिक फोटोसेंसिटिव होता है, यानी धूप में आते ही इसमें कुछ रासायनिक बदलाव होते है।इसीलिए चुनाव की स्याही लगने के बाद आपने इसके रंग में बैंगनी से इसे गहरा होता देखा होगा।तक़रीबन 35 से ज़्यादा देशों में इसका निर्यात किया जाता है जिसमें हमारे पड़ोसी देश भी शामिल है।लगभग 10 दिन तक किसी भी रसायन से इसे साफ़ नहीं किया जा सकता उसके बाद ये ख़ुद फ़ीकी होने लगती है।

अगर इसके इतिहास पर नज़र डालें तो, पहले सामान्य चुनावों(1951-52) के दौरान कई लोगों के एक से अधिक बार वोट डालने की धांधली सामने आई।इसी के एवज़ चुनाव आयोग ने National Physical Laboratory(NPL) Delhi, से इस बात की माँग की, कि कुछ ऐसा बनाया जाये जिससे ये समस्या ठीक हो।NPL ने ये स्याही ईज़ाद की और इसके निर्माण का ठेका दिया- Mysore Paints and Varnish Ltd. को।ये कंपनी 1937 में महाराजा कृष्णराज वाडियार चतुर्थ ने बनाई थी जो तब रंग रोगन का सामान बनाया करती थी।1947 में देश के आज़ाद होने के बाद ये एक पब्लिक सेक्टर कंपनी बनी और आज भी अमिट स्याही (indelible ink) बनाने का एकाधिकार इसी के पास है।कर्नाटक सरकार के पास लगभग 91.39% share है और क्योंकि ये limited company है इसलिए लगभग 1000 शेयर कुछ लोगों के पास है।

पहली दफ़ा इस स्याही का इस्तेमाल वर्ष 1962 के आम चुनावों में किया गया।तबसे आजतक इसका इस्तेमाल सांसद चुनने से लेकर छात्रसंघ चुनावों तक में किया जाता है। 

इसीलिए उँगलियों पर लगी ये कोई आम स्याही(ink) नहीं है।ये बड़ी ख़ास स्याही है, ख़ास इस मायने में की अगर आम चुनावों( General Elections) की बात की जाए तो हर उँगली पर लगी ये स्याही इस बात की गवाह है कि संविधान की नज़र में सब नागरिक बराबर है।ये स्याही किसी भी धार्मिक, जातिगत, सामाजिक या आर्थिक ग़ैरबरबारी से ऊपर उठकर ये संदेश देती है कि यहाँ सब बराबर है। डॉo अंबेडकर के शब्दों में , "In politics, we will be recognising the principle of one man one vote, and one vote one value. In our social and economic life, we shall, by reason of our social and economic structure, continue to deny the principle of one man one value."

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