Pseudoscience will be New Science and Mythology will be History now!

चित्र साभार: इंटरनेट


वर्तमान में विज्ञान और तर्क बेहद  नाज़ुक हालातों के दौर से गुज़र रहे हैं, जिसके परिणाम प्रतिगामी होंगे और यह देश और युवाओं को कई साल पीछे ले जाएगा।

AIPSN यानी ऑल इंडिया पीपल्स साइंस नेटवर्क ने देश के दो प्रतिष्ठित संस्थानों; आईआईटी मंडी और बीएचयू के हाल में अपने यहाँ बतौर, IKS( इण्डियन नॉलेज सिस्टम) के तहत् शामिल किए गये पुनर्जन्म( Reincarnation) और पारलौकिक अनुभव( Out of the body experiences) और भूतविद्या जैसे अवैज्ञानिक तर्कों के ज्ञान को अपने पाठ्यक्रम में 'अनिवार्य कोर्स' के रूप में शामिल किया है।AIPSN के अनुसार यह सारे छद्मविज्ञान( Pseudoscience) फैलाने वालों के लिए एक तरह का 'मुफ़्त भोज' सरीख़ा है।

विश्व की शीर्ष   विश्वविद्यालयों की सूची ( QS World University Ranking) में भारत का एक भी संस्थान शामिल नहीं है।मौजूदा हालातों के आधार पर तो यह भविष्य में हो भी नहीं पाएगा।ऐसा लगता है जैसे हमारे यहाँ की शीर्ष संस्थाएँ कितनी अवैज्ञानिक हो सकती है, इसकी प्रतिस्पर्धा चल रही है। पहले बीएचयू और आईआईटी मंडी!

इसके कारण क्या है?

कुछ कारण स्पष्ट तौर पर दिखते है पहला इन शीर्ष संस्थाओं में ऐसे प्रोफ़ेसर्स का आना जिनकी डिग्रियाँ भले ही कितनी ही बड़ी संस्थाओं की क्यों ना हो; पर उनका ज्ञान आज भी आदम दौर का है।

"मांस खाने से बाढ़ आ रही है।" और "हमने तो बंदर को इंसान बनते नहीं देखा है" वालें इन प्रोफ़ेसर्स को संस्थाओं का निदेशक तक बनाया जाना कितना घातक है, इस पर आने वाली पीढ़ियाँ एक दिन ज़रूर अफ़सोस करेंगी।

दूसरा सरकारों में भी कई मंत्री ऐसे वक्तव्य दे देते है कि लोगों को लगता है जनप्रतिनिधि कह रहा है तो सही ही होगा। तीसरा और सबसे अहम कारण है- इंटरनेट और पॉडकास्ट्स का यह नया दौर।

भले ही मीम्स के तौर पर ही सही पर बड़ी अवैज्ञानिक बातों को लोग शेयर कर रहे हैं। और कुछ पॉडकास्ट चैनल पर ऐसे अवैज्ञानिक ज्ञानदाताओं और बाबाओं की चाँदी हो गई है।रही सही कसर कुछ IITian बाबा भूत प्रेत और आत्मा का डर दिखाकर पूरा कर दे रहे है।

'कोर्ट केस छुटवाना है तो वहाँ कोक की बोतल ख़रीदकर वहीं  उड़ेल दो', कैंसर 'ठीक करना है तो गोबर-गोमूत्र का सेवन करो' जैसे और भी कई कुतर्क इंटरनेट पर बहुतायत जगह बनाये है। 'भविष्य बताने' वालों की नई फ़ौज नमूदार हो चुकी है।एक से बढ़कर एक अवैज्ञानिक तर्क देने वाले 'कथित विद्वान' इन चैनल्स पर रोज़ बुलाये जाने लगे है।जिनके लाखों में व्यूज़ है।फिर हमें क्यों संदेह होना चाहिए जब हमारे पड़ोस का कोई नौजवान हमसे विज्ञान को लेकर बहस करता है? क्यों आज के युवा इतिहास में ज़बरदस्ती मिथकों को घुसेड़ रहे है और मिथक को ही इतिहास मानने का दौर शुरू हो चुका है?

क्योंकि उन युवाओं ने इस छद्मविज्ञान को ही असल में विज्ञानऔर मिथक कहानियों को ही असली इतिहास  मान लिया है।

इन सभी उपरोक्त कृत्यों का उद्दयेश्य है पश्चिम के तार्किक ज्ञान को ठुकराकर अपने आदिम ज्ञान की सर्वोच्चता स्थापित करना।जिसकी शुरुआत धीरे धीरे राष्ट्रीय पाठ्यक्रमों में बदलाव करके और इण्डियन नॉलेज सिस्टम के तहत ऐसा छद्मविज्ञान डालकर की जा रही है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51A(h) यह घोषणा करता है नागरिकों में वैज्ञानिक तर्क और चिंतन को बढ़ावा मिले।पर शीर्ष संस्थान और मीडिया अब बिलकुल इसके विपरीत कर रहे हैं।

सरकारी सहायता प्राप्त किसी भी संस्थान में कोई भी धार्मिक अनुष्ठान या आयोजन नहीं हो सकते है पर इसके बरक़्स आज संस्थानों में हवन/यज्ञ जैसे  आयोजन किए जा रहे है, जिसके पीछे कई अवैज्ञानिक तर्कों का समर्थन किया जा रहा है।पुनर्जन्म किसी एक धर्म की मान्यता हो सकती है सबकी नहीं।यहाँ तक की भारतीय हिन्दू दर्शन में भी चार्वाक दर्शन आत्मा-परमात्मा को सीधे नकारता है।उसके बावजूद भी ऐसे ही काल्पनिक विषयों को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाकर सबके लिए ज़रूरी करना संविधान की मूलभावना के साथ तो खिलवाड़ है ही साथ ही यह इस वैज्ञानिक युग में हमें पीछे ले जाने वाला ही साबित होगा।अगर यह चलता रहा तो आप भविष्य में बहुत जल्द देखेंगे कि 'रोडवेज़ में भूत भगाने, गृह कलेश मुक्ति और सौतन से छुटकारा'  दिलाने वाले फ़लाँ बाबाओं के नीचे उनकी शैक्षणिक डिग्रियो में देश की शीर्ष वैज्ञानिक संस्थाओं का नाम भी चस्पा होगा।

टिप्पणियाँ

  1. हमारा दुर्भाग्य है कि हम इस समय को देख रहे हैं, इसके दूरगामी परिणामों को महसूस कर पा रहे हेैं परंतु यह कुचक्र इतने व्यवस्थित तरीके से बुना जा रहा है कि हम अपने करीबी में भी वैज्ञानिक चेतना जगाना चाहें तो तमाम मुश्किलें आएँ।

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